लखनऊ। कानपुर के बहुचर्चित बिकरू कांड के मुख्य आरोपी हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे और उसके पांच साथियों को ढेर करने वाली पुलिस टीम पर फर्जी मुठभेड़ के गंभीर आरोप तो लगाए गए पर खुद विकास दुबे की पत्नी रिचा दुबे भी अपने कहे पर आगे नहीं आईं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर गठित न्यायिक आयोग की जांच में पुलिस के बयानों और मेडिकल परीक्षण रिपोर्ट से उसकी थ्योरी में कहीं कोई छेद नहीं पाया गया। हां, पुलिस व प्रशासन के गठजोड़ से एक अपराधी के फलने-फूलने से लेकर खाकी में छिपे गद्दारों की कहानी ने जरूर बड़े सवाल लिए खड़ी है। फिर कोई विकास दुबे न पनप सके, इसके लिए न्यायिक आयोग ने पुलिस सुधार की कई महत्वपूर्ण सिफारिशें भी की हैं।
सुुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश बीएस चौहान की अध्यक्षता में गठित तीन सदस्यीय न्यायिक आयोग की रिपोर्ट गुरुवार को उत्तर प्रदेश विधानसभा के पटल पर रखी गई। रिपोर्ट के सार्वजनिक होने के बाद अब तक गंभीर आरोपों से घिरी रही पुलिस को बड़ी राहत मिली है। न्यायिक आयोग में हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति शशिकांत अग्रवाल व सेवानिवृत्त डीजीपी केएल गुप्ता बतौर सदस्य शामिल थे।
दो जुलाई 2020 की रात कानपुर के बिकरू गांव में सीओ समेत आठ पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी गई थी। इस जघन्य कांड के बाद पुलिस ने तीन से 10 जुलाई 2020 के मध्य हिस्ट्रीशीटर अपराधी विकास दुबे, उसके साथी प्रेम प्रकाश पांडेय, अतुल दुबे, अमर दुबे, प्रवीण दुबे उर्फ बउवा व प्रभात को मुठभेड़ में मार गिराया था। आयोग ने 10 जुलाई 2020 को कानपुर में मुख्य आरोपी विकास दुबे के पुलिस मुठभेड़ में मारे जाने की घटना समेत कुल आठ बिंदुओं पर जांच की। इनमें विकास दुबे के रसूख से लेकर ऐसी दुस्साहसिक घटना की पुनरावृत्ति को रोकने से जुड़े सुझाव भी शामिल थे।
आयोग की जांच में यह भी आया सामने
- विकास दुबे व गिरोह को स्थानीय पुलिस से लेकर राजस्व व प्रशासनिक अधिकारियों का संरक्षण था।
- कुख्यात के विरुद्ध शिकायत करने वाले को उल्टा पुलिस प्रताड़ित करती थी।
- विकास का नाम सर्किल के टाप 10 अपराधियों में तो था, लेकिन जिले की टाप 10 सूची में नहीं।
- विकास के गुर्गे शांति समिति तक में शामिल थे।
- विकास की पत्नी जिला पंचायत सदस्य व भाई की पत्नी प्रधान चुनी गई थीं, लेकिन दोनों लखनऊ में रहती थीं। क्षेत्र के किसी व्यक्ति को किसी मामले में मदद के लिए विकास दुबे से ही मिलना पड़ता था।
- कुख्यात के विरुद्ध दर्ज मुकदमों में संगीन आरोप विवेचना में ही निपटा दिये जाते थे। आरोपपत्र का हिस्सा नहीं बनते थे।
- विकास के विरुद्ध 64 मुकदमे होने के बावजूद उसके मामलों के लिए कभी विशेष अभियोजन अधिकारी नियुक्त कराने को कोई प्रयास नहीं हुआ।
- उसकी जमानत रद कराने का भी कोई गंभीर प्रयास नहीं किया गया।
- हत्या के मामले में सेशन कोर्ट से सजा होने के बाद हाई कोर्ट से उसकी जमानत हो गई और सरकारी वकील को सुना तक नहीं गया। पुलिस ने जमानत रद कराने का कोई प्रयास नहीं किया और न ही सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई।
- स्थानीय खुफिया तंत्र पूरी तरह से फेल पाया गया।
- पुलिसकर्मियों ने ही विकास दुबे को उसके घर दबिश पडऩे की पूर्व सूचना दे दी।
- बिकरू गांव दबिश देने गए 38 से 40 पुलिसकर्मियों में से केवल 18 के पास ही असलहे थे। एक ने भी बुलेट प्रूफ जैकेट नहीं पहन रखी थी।
इनके दर्ज किए गए थे बयान : आयोग ने बिकरू गांव समेत छह स्थानों का निरीक्षण करने के बाद तत्कालीन आइजी कानपुर रेंज मोहित अग्रवाल, एसएसपी दिनेश कुमार पी, पूर्व एसएसपी अनंत देव समेत अन्य पुलिसकर्मियों व अधिकारियों, बिकरू कांड में घायल हुए पुलिसकर्मियों, चौबेपुर थाने के तत्कालीन एसओ विनय तिवारी, उपनिरीक्षक कृष्ण कुमार शर्मा, घटना में पकड़े गए 32 आरोपितों व बड़ी संख्या में गवाहों के बयान दर्ज किए थे। आयोग ने बिकरू कांड की जांच के लिए अपर मुख्य सचिव संजय भूसरेड्डी की अध्यक्षता में गठित एसआइटी की रिपोर्ट का भी अध्ययन किया और संजय भूसरेड्डी, तत्कालीन डीजीपी हितेश चंद्र अवस्थी व एडीजी अभियोजन आशुतोष पांडेय से विभिन्न बिंदुओं पर चर्चा भी की थी।