अफगानिस्तान में तालिबान का शासन लौट आया है। साथ लौटा है इस्लामी कट्टरपंथ का दौर। औरतों के अधिकारों का दमन। सरेआम आम नागरिकों पर फायरिंग, बुर्का नहीं पहनने पर हत्या, सेक्स स्लेव बनाने के लिए लड़कियों को घरों से उठाने की खबरें लगातार आ रही हैं। जान बचाने के लिए अफगानी नागरिक किसी भी कीमत पर मुल्क से निकलना चाहते हैं। दूसरी ओर देवबंद से प्रभावित बताए जाने वाले तालिबान के मुरीद भारत में बढ़ते जा रहे हैं।
सपा के सांसद हों या ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता या फिर देवबंद के मुफ्ती अथवा मंत्री रहे मौलाना, सब के सब तालिबान की खुलकर प्रशंसा करने में लगे हैं। तालिबान की पीठ थपथपाने वाले ताजा नाम हैं- देवबंद के मुफ्ती और फतवा ऑनलाइन के चेयरमैन मौलाना अरशद फारुकी और पूर्व मंत्री मौलाना मसूद मदनी।
फारुकी ने तालिबान पर गर्व करते हुए कहा कि जिस तरीके से तालिबान ने अफगानिस्तान में अपनी सत्ता स्थापित कर ली है वह बड़े ताज्जुब की बात है। उन्होंने कहा कि तालिबानियों की संख्या साठ से पैंसठ हजार है, लेकिन सामने साढ़े तीन लाख अफगानियों की एक ऐसी फ़ौज थी जिसे अमेरिका ने ट्रेनिंग दी थी, ऐसे में अमेरिका और अफगानी फौजों की हार यह बताती है कि तालिबान में कुछ न कुछ बात तो है।
पूर्व मंत्री मौलाना मसूद मदनी ने भी तालिबान का समर्थन किया है और कहा है कि तालिबान इस बार बदलकर आए हुए हैं। मदनी यह कहना चाह रहे थे कि इस बार जो तालिबान अफगानिस्तान में है वह पहले से अलग है। इसके अलावा मदनी ने यह भी कहा कि भारत को तालिबान से बात करनी चाहिए और उनको मान्यता देनी चाहिए। मदनी ने काबुल एयरपोर्ट पर देखे गए भगदड़ के दृश्यों पर कहा कि कुछ लोगों ने इस घटना का हौव्वा बना दिया है और एयरपोर्ट पर जो भी हुआ उसकी जिम्मेदारी अमेरिका की है।
सपा सांसद शफीकुर्रहमान बर्क तो और भी आगे निकल गए और उन्होंने तालिबानियों की तुलना भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों से कर डाली। बर्क ने कहा था, ”तालिबान एक ऐसी ताकत है, जिसने रूस और अमेरिका जैसे शक्तिशाली देशों को भी अपने देश पर कब्जा नहीं करने दिया। अब तालिबान अपने देश को आजाद कर उसे चलाना चाहता है, यह उसका आंतरिक मामला है। भारत में भी अंग्रेजों से पूरे देश ने लड़ाई लड़ी थी।”
आपको बता दें कि देवबंद में ही ‘दारुल उलूम’ स्थापित है, जहाँ से इस्लामी देवबंदी अभियान शुरू हुआ था। तालिबान को भी इसी विचारधारा से प्रेरित बताया जाता है। देवबंदी स्कॉलर समी-उल-हक को ‘फादर ऑफ तालिबान’ कहा जाता है और यही समी-उल-हक, दारुल उलूम हक्कानिया के दूसरे चांसलर थे। दारुल उलूम हक्कानिया की स्थापना भी देवबंदी विचारधारा के आधार पर हुई थी।