अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद पहली बार अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन देश को संबोधित किया। उन्होंने कहा- अफगानिस्तान में हालात अचानक बदल गए। इसका असर दूसरे देशों पर भी पड़ा है। लेकिन, आतंकवाद के खिलाफ हमारी लड़ाई जारी रहेगी। बाइडेन का यह संबोधन भारतीय समय के अनुसार सोमवार और मंगलवार की दरमियानी रात करीब 1.30 बजे हुआ।
उन्होंने कहा- हमारे सैनिकों ने बहुत त्याग किए हैं। अफगानिस्तान में भरोसे का संकट है। हम कोशिश कर रहे हैं कि अमेरिका का हर नागरिक वहां से सुरक्षित लौटे। लोग हम पर सवाल उठा रह हैं। उन्हें अफगानिस्तान छोड़कर जाने वाले उनके राष्ट्रपति अशरफ गनी से भी सवाल करने चाहिए। हमारी सेना और जोखिम नहीं उठा सकती थी। उम्मीद है कि वहां हालात फिर बेहतर होंगे।
अफगानिस्तान से सेना बुलाने के फैसले का बचाव
अपने सैनिकों को अफगानिस्तान से बुलाने के फैसले का बचाव करते हुए बाइडेन ने कहा- हमारे पास दो विकल्प थे। पहला- हम तालिबान से हुआ समझौता लागू करते और फोर्स वापस बुलाते। दूसरा- कई हजार सैनिक और वहां भेजते और जंग चलती रहती। अफगानिस्तान के नेताओं ने हथियार डाल दिए और देश से भाग गए। 20 साल की ट्रेनिंग के बाद भी वहां की फौज ने सरेंडर कर दिया।
बाइडेन की स्पीच की अहम बातें…
- मेरी नेशनल सिक्योरिटी टीम और मैं खुद हालात पर पैनी नजर रख रहे हैं। हमें ये देखना होगा कि अमेरिका वहां क्यों गया था। हम वहां 20 साल रहे। हमने अल कायदा को नेस्तनाबूद किया। ओसामा बिन लादेन को खत्म किया। अफगानिस्तान को बनाने के लिए हर मुमकिन कोशिश की। अमेरिका ने अल-कायदा को खत्म करने के अपने लक्ष्य को हासिल करने में कामयाबी हासिल की है।
- जब मैंने सत्ता संभाली तो उससे पहले डोनाल्ड ट्रम्प तालिबान से बातचीत कर रहे थे। 1 मई के बाद हमारे पास ज्यादा विकल्प नहीं थे। या तो हम वहीं रहते और तालिबान से लड़ते या फिर अमेरिकी सैनिकों को वापस लाते। मैं अपने प्लान पर कायम रहा।
- मैं मानता हूं कि तालिबान बहुत जल्द काबिज हो गए। अफगान लीडरशिप ने बहुत जल्द हथियार डाल दिए। हमने वहां अरबों डॉलर खर्च किए। अफगान फोर्स को ट्रेंड किया। इतनी बड़ी फौज और हथियारों से लैस लोगों ने हार कैसे मान ली। यह सोचना होगा। यह गंभीर मुद्दा है।
- अमेरिकी सेना वहां कितना और रुकती। एक साल या पांच साल। इससे क्या हालात बदल जाते? मैंने अशरफ गनी से जून में बात की थी। उनसे कहा था कि वे प्रशासन में करप्शन को खत्म करें। गनी को भरोसा था कि उनकी फौज तालिबान का मुकाबला कर लेगी।
- मैं वो गलतियां नहीं कर सकता था जो पहले के लोगों ने कीं। इसलिए अपने प्लान पर जमा रहा। अफगान लोगों को अपना भविष्य तय करने का अधिकार है। वहां की फौज हमारे कई नाटो सहयोगियों से ज्यादा है। उनके पास हथियार भी थे। फिर ये क्यों हुआ? तालिबान तो संख्या में भी कम थे।
- मैंने खुद वहां तैनात अपने सैनिकों से बातचीत की। फिर ये तय किया कि इस मामले को डिप्लोमैटिक तरीके से हल करना होगा। आखिरकार मुझे अमेरिका के हित भी देखने थे।
- फिलहाल, हमने 6 हजार सैनिक वहां भेजे हैं। ताकि वे हमारे और अपने सहयोगी देशों के लोगों को निकाल सकें। वे वहां दिन रात काम कर रहे हैं। मैं चाहता हूं कि वहां से हमारे सभी सिविलियन वहां से सुरक्षित लौटें।
- कुछ लोग सवाल उठा रहे हैं कि हमने अफगानिस्तान के कुछ हमारे मददगारों को क्यों नहीं निकाला। लेकिन, वे खुद यहां नहीं आना चाहते। उन्हें हालात सुधरने का भरोसा है। अब तक अमेरिका के चार राष्ट्रपति अफगानिस्तान संकट झेल चुके हैं। मैं नहीं चाहता कि पांचवा राष्ट्रपति भी यही सब देखे।
- हमने ओसामा बिन लादेन का एक दशक तक पीछा किया और उसे ढेर किया। मुझे अपने फैसले पर कोई अफसोस नहीं है, क्योंकि यह अमेरिका के हित में है। अपनी सेना को वहां रखना हमारे राष्ट्रीय सुरक्षा हित में भी नहीं था।
- हमने तालिबान को साफ कर दिया है कि अगर हमारे सैनिकों पर हमला हुआ तो हम बहुत सख्त और बहुत तेज एक्शन लेंगे। अमेरिकी सैनिक वहां से जा रहे हैं लेकिन हम वहां पूरी तरह नजर रख रहे हैं।
- हमने कई देशों में आतंकवाद विरोधी मिशन पूरी कामयाबी से पूरे किए। अफगानिस्तान में भी यही किया। मैं कई साल से कहता आया हूं कि हमारे मिशन आतंकवाद के खिलाफ होना चाहिए। घुसपैठ रोकना या राष्ट्र निर्माण हमारा काम नहीं था। अफगानिस्तान में हमारा लक्ष्य यह था कि वहां से अमेरिका पर कोई हमला नहीं हो पाए। हम इसमें कामयाब रहे। 20 साल पहले जब हम अफगानिस्तान गए थे तो हमारा मकसद बिल्कुल साफ था। हम उन लोगों को सजा देना चाहते थे जिन्होंने अमेरिका पर हमला किया था।
बाइडेन के रुख पर उठ रहे सवाल
अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे को लेकर अमेरिकी मीडिया समेत विपक्ष ने बाइडेन के रुख पर सवाल उठाए हैं। रविवार और सोमवार को व्हाइट हाउस के बाहर लोगों ने अफगानिस्तान से सैन्य वापसी के खिलाफ प्रदर्शन किए थे।
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और कुछ डेमोक्रेटिक सीनेटर्स भी बाइडेन एडमिनिस्ट्रेशन पर आरोप लगा रहे हैं कि वे अफगानिस्तान के मामले को ठीक से हैंडल करने में नाकाम रहे। इस वजह से अफगानिस्तान में अमेरिका को एक शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा।
बाइडेन शुक्रवार से वॉशिंगटन से बाहर थे
जब तालिबान अफगानिस्तान की राजधानी और सबसे सुरक्षित शहर काबुल पर कब्जा कर रहा था, उस वक्त भी जो बाइडेन वॉशिंगटन में नहीं थे। अमेरिकी राष्ट्रपति शुक्रवार से ही कैम्प डेविड में थे। इसी दौरान तालिबान ने कंधार पर भी कब्जा किया था। वे कुछ देर पहले ही व्हाइट हाउस पहुंचे हैं।
ट्रम्प का तंज- क्या लोग मुझे याद कर रहे हैं?
अफगानिस्तान में तेजी से बिगड़े हालात और वहां तालिबान के कब्जे के बाद पूर्व राष्ट्रपति ट्रम्प ने बाइडेन पर तंज किया। ट्रम्प ने अमेरिकी लोगों से पूछा- अफगानिस्तान में हालात देखकर क्या आप मुझे याद कर रहे हैं? हालांकि, इसके पहले भी ट्रम्प बाइडेन के इस फैसले पर सवाल उठा चुके हैं। दोनों के बीच पिछले साल नवंबर में भी इस मुद्दे पर काफी बयानबाजी हुई थी। हालांकि, तब वहां राष्ट्रपति चुनाव चल रहा था।
अमेरिकी विदेश मंत्री बोले- अफगानी खुद मुकाबला करें
अब तक अफगानिस्तान में मौजूद अमेरिकी फौजों की वापसी के साथ ही तालिबान ने अपना असर बढ़ाना शुरू कर दिया था। इस पर सवाल उठे, तो अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कहा था- अफगानिस्तान के लोगों को अपनी तकदीर का फैसला अब खुद करना होगा।
अमेरिका में बाइडेन प्रशासन के खिलाफ प्रदर्शन
अमेरिका के कई शहरों में रविवार के बाद सोमवार को भी अफगानिस्तान के हालात और अमेरिका की भूमिका को लेकर विरोध प्रदर्शन हुए। व्हाइट हाउस के बाहर भी कई प्रदर्शनकारी बैनर और पोस्टर लेकर पहुंचे। इन लोगों का आरोप है कि अमेरिका ने अफगानिस्तान को उसके हाल पर छोड़ दिया और तालिबान को रोकने के लिए कोई रणनीति नहीं बनाई।