एक मंदिर जिसे इस्लामिक आक्रांताओं ने तोड़ा, जहाँ खिलजी ने इस्लाम नहीं कबूल करने पर कर दी थी 1200 छात्र-शिक्षकों की हत्या

ओम द्विवेदी

मध्य प्रदेश के धार जिले में स्थित है भोजशाला सरस्वती मंदिर। काशी विश्वनाथ और श्री कृष्णजन्मभूमि जैसे कई ऐसे मंदिर हैं जिन्हें मुस्लिम आक्रांताओं ने नष्ट कर अथवा उसी के हिस्सों का प्रयोग कर उन्हें मस्जिद में बदल दिया। भोजशाला भी उनमें से एक है जहाँ वर्तमान समय में बसंत पंचमी का उत्सव भी मनाया जाता है और शुक्रवार की नमाज भी पढ़ी जाती है और यह सब हुआ इस्लामिक कट्टरपंथी अलाउद्दीन खिलजी के द्वारा मंदिर को नष्ट किए जाने बाद।

इतिहास

परमार राजवंश के शासक राजा भोज ने धार में एक महाविद्यालय की स्थापना की थी जिसे बाद में भोजशाला के रूप में जाना जाने लगा। राजा भोज माता सरस्वती के महान उपासक थे और संभवतः यही कारण था कि उनकी रूचि शिक्षा एवं साहित्य में बहुत ज्यादा थी। राजा भोज ने ही सन् 1034 में भोजशाला के रूप में एक भव्य पाठशाला का निर्माण किया और यहाँ माता सरस्वती की एक प्रतिमा स्थापित की। इसे तब सरस्वती सदन कहा था। भोजशाला को माता सरस्वती का प्राकट्य स्थान भी माना जाता है।

भोजशाला मंदिर से प्राप्त कई शिलालेख 11वीं से 13वीं शताब्दी के हैं। इन शिलालेखों में संस्कृत में व्याकरण के विषय में वर्णन किया गया है। इसके अलावा कुछ शिलालेखों में राजा भोज के बाद शासन सँभालने वाले राजाओं की स्तुति की गई। कुछ ऐसे भी शिलालेख भी हैं जिनमें शास्त्रीय संस्कृत में नाटकीय रचनाएँ उत्कीर्णित हैं। माता सरस्वती के इस मंदिर को कवि मदन ने अपनी रचनाओं में वर्णित किया था। यहाँ प्राप्त हुई माता सरस्वती की मूल प्रतिमा वर्तमान में लन्दन के संग्रहालय में है।

माता सरस्वती का मंदिर होने के साथ भोजशाला भारत के सबसे बड़े विश्वविद्यालयों में से एक था। इसके आलावा यह स्थान विश्व का प्रथम संस्कृत अध्ययन केंद्र भी था। इस विश्वविद्यालयमें देश-विदेश के हजारों विद्वान आध्यात्म, राजनीति, आयुर्वेद, व्याकरण, ज्योतिष, कला, नाट्य, संगीत, योग, दर्शन आदि विषयों का ज्ञान प्राप्त करने के लिए आते थे। इसके अतिरिक्त इस शिक्षा केंद्र में वायुयान, जलयान तथा कई अन्य स्वचालित (ऑटोमैटिक) यंत्रों के विषय में भी अध्ययन किया जाता था।

इस्लामिक आक्रमण

ऐतिहासिक तथ्यों के मुताबिक सन् 1305 में मुस्लिम आक्रांता अलाउद्दीन खिलजी ने भोजशाला पर आक्रमण किया और उसे नष्ट कर दिया। बाद में सन् 1401 में दिलावर खां ने भोजशाला के एक भाग में मस्जिद का निर्माण करा दिया। अंततः सन् 1514 में महमूद शाह खिलजी ने भोजशाला के शेष बचे हिस्से पर मस्जिद का निर्माण करा दिया। समय के साथ यहाँ विवाद बढ़ता गया और अंग्रेजी हुकूमत के दौरान भोजशाला को संरक्षित स्मारक घोषित कर दिया गया।

हिन्दू जनजागृति समिति की एक रिपोर्ट के अनुसार सन् 1305 में अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय भोजशाला के शिक्षकों और विद्यार्थियों ने भी खिलजी की इस्लामिक सेना का विरोध किया था। खिलजी द्वारा लगभग 1,200 छात्र-शिक्षकों को बंदी बनाकर उनसे इस्लाम कबूल करने के लिए कहा गया लेकिन इन सभी ने इस्लाम स्वीकार करने से मना कर दिया। इसके बाद इन विद्वानों की हत्या कर दी गई थी और उनके शव को भोजशाला के ही विशाल हवन कुंड में फेंक दिया गया था।

इस तरह एक और हिन्दू मंदिर इस्लामिक कट्टरपंथ की भेंट चढ़ गया। बसंत पंचमी के दिन हिन्दू यहाँ माता सरस्वती की उपासना करने के लिए आते हैं, लेकिन यह पूजा-पाठ भी कानून के दायरे में रहकर और भीषण सुरक्षा-व्यवस्था के बीच संपन्न होती है। सन् 2013 में बसंत पंचमी, शुक्रवार के दिन ही थी जिसके कारण भोजशाला में सांप्रदायिक तनाव की स्थिति निर्मित हो गई थी और पुलिस को यहाँ कार्रवाई करनी पड़ी थी।

कैसे पहुँचे?

इंदौर का देवी अहिल्याबाई हवाईअड्डा, धार का नजदीकी हवाईअड्डा है जो भोजशाला मंदिर से मात्र 65 किमी की दूरी पर है। हालाँकि धार में रेल सुविधा का अभाव है। ऐसे में इंदौर रेलवे जंक्शन ही धार का नजदीकी रेलवे स्टेशन है जो यहाँ से लगभग 60 किमी दूर है। सड़क मार्ग से धार पहुँचना आसान है क्योंकि सड़क मार्ग से यह इंदौर, भोपाल और उज्जैन जैसे शहरों से जुड़ा हुआ है और यहाँ से धार के लिए अनेकों परिवहन के साधन उपलब्ध हैं।

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