टोक्यो ओलिंपिक की ओपनिंग सेरेमनी चल रही थी। स्टेडियम में अपने देश के खिलाड़ियों को चीयर करने के लिए इस बार दर्शक नहीं थे। खिलाड़ी अपने-अपने देश का झंडा लेकर कैमरों के सामने लहराते हुए आगे बढ़ने की तैयारी कर रहे थे कि अचानक स्टेडियम की लाइट बंद कर दी गई। अगले पल मद्धिम ब्लू लाइट जली और बैकग्राउंड से एक आवाज गूंजी-
“हम ओलिंपिक में हमने खोया। आइए उनकी याद में खड़े हो जाएं।”
अगले दिन इजराइल के अखबार द टाइम्स ऑफ इजराइल ने लिखा- 49 साल बाद पहली बार हमारे खिलाड़ियों का सम्मान हुआ, जिन्हें ‘म्यूनिख मैसकर’ में बेरहमी से मार दिया गया था। मैसकर का मतलब होता है कत्लेआम या सामूहिक हत्या।
ये हेडलाइन 3 सवाल खड़े करती है, जिनको जानना जरूरी है। पहला कि म्यूनिख मैसकर क्या था? आखिर कैसे दुनिया के सबसे बड़े स्पोर्ट्स इवेंट में खिलाड़ियों की और कोच की हत्या कर दी गई। दूसरा कि 49 सालों तक ओलिंपिक ने उन्हें श्रद्धांजलि क्यों नहीं दी? तीसरा कि 2021 में ऐसा क्या हुआ जो ओलिंपिक कमेटी ने ये कदम उठाया।
हम तीनों सवालों के जवाब की तरफ एक-एक कर के चलते हैं, लेकिन बस इतना बताना चाहते हैं कि जब कभी पूरी दुनिया की अभी तक की सबसे खौफनाक दास्तानों की बात आएगी तो इस कहानी को टॉप 5 में रखा जाएगा।
सुबह के 4 बजे आतंकी ओलिंपिक विलेज में घुसे
5 सितंबर, 1972। दिन मंगलवार। सुबह के 4 बजे थे। जर्मनी के म्यूनिख शहर में बने ओलिंपिक विलेज में इजराइली खिलाड़ी और स्टाफ गहरी नींद में थे। सिर्फ कुश्ती के रेफरी योसेफ गतफ्रायंद करवटें बदल रहे थे। उन्हें लगा कि दरवाजे को कोई खुरच रहा है। आंखे मलकर देखा तो दरवाजे के एक कोने से बंदूक की नाल झांक रही थी।
6 फुट 3 इंच ऊंचे और 140 किलो के उस रेफरी ने लपक कर दरवाजे को अपने पूरे जी-जान से दबा दिया और हिब्रू में चिलाने लगा- “चेवरे तिस तात्रू – चेवरे तिस तात्रू”, यानी लड़कों बचो, भाग जाओ यहां से, लेकिन वो 10 सेकेंड से ज्यादा ऐसा नहीं कर सका, क्योंकि दरवाजे के उस पार फिलिस्तीन के आतंकी संगठन ब्लैक सेप्टेंबर के 8 खूंखार आतंकी कुछ भी कर गुजरने को तैयार थे।
उन्होंने रेफरी को ढकेल दिया। उनके नेता ईसा ने अपार्टमेंट के अंदर कदम रखा कि इजराइली खिलाड़ी मोशे वेनबर्ग ने फल काटने वाली चाकू उसके सिर पर दे मारी, लेकिन पीछे खड़े दूसरे आतंकी के कलाश्निकोव असॉल्ट राइफल की गोली ने उसे उड़ा दिया।
गोली एक ओर घुसी और दूसरी ओर से मांस के लोथड़े लेकर बाहर निकल आई
इस राइफल के बारे में कहते हैं कि इससे एक मिनट में 100 गोलियां निकलती हैं और उनकी रफ्तार 1600 मील प्रति घंटे होती है। जब ब्लैक सेप्टेंबर के आतंकियों ने इजराइली खिलाड़ी को इससे भूना तो गोली एक तरफ से बॉडी में घुसी और दूसरी ओर से मांस के लोथड़े नोचते हुए बाहर आ गई। अपने साथी का ये हाल देखकर दूसरे इजराइली कांप गए। ये बातें किसी और ने नहीं, उन्हीं 8 आतंकियों में से जिंदा बचे जमाल अल गाशी ने BBC को बताई थीं।
आतंकियों ने अंदर घुसकर केहेर शोर, लियों अमित्जर शपीरा, आंद्रे स्पिटजर, याकोव स्प्रिंगर, इलीजेर हाल्फिन, मार्क स्लाविन, गाद जोबारी, डेविड मार्क बर्गर, जीव फ्रीडमैन और योसेफ रोमाना को बंधक बना लिया, लेकिन कई खिलाड़ी भाग निकले।
हमारे 234 साथियों को रिहा करो वर्ना…
जिंदा बचे खिलाड़ियों ने नीचे आकर हल्ला मचाना शुरू किया। घंटेभर में ये खबर दुनियाभर में फैल गई। आतंकियों ने TV पर देखा कि उनके अपार्टमेंट के बाहर जर्मनी के ऑफिसर आकर खड़े हो गए हैं तो उन्होंने अपनी मांगों की लिस्ट दरवाजे से बाहर फेंक दी।
इसमें अंग्रेजी में लिखा था-
इजराइल और जर्मनी की जेलों में बंद हमारे 234 साथियों को रिहा किया जाए और उन्हें ले जाने के लिए तीन जहाज दिए जाएं। सुबह 9 बजे तक ऐसा नहीं किया जाता है तो अंजाम के लिए तैयार रहें।- ब्लैक सेप्टेंबर
अंजाम कहने का मतलब था कि वो बंधकों को भून डालेंगे। एक यूरोपीय राइटर जॉर्ज जोनास ने इस पर किताब लिखी है- ‘वेनजिएंस- अ ट्रू स्टोरी ऑफ इजराइली काउंटर टेरेरिस्ट टीम’। उनका कहना है कि घटना की खबर मिलते ही जर्मनी के चांसलर विली ब्रांट ने इजराइल की प्रधानमंत्री गोल्डा मेयर को फोन किया, लेकिन इजराइल की नीति साफ थी। वो ऐसे किसी हमले से डरकर उनकी मांग कभी नहीं मानेंगे।
आतंकी भड़कें नहीं इसलिए जर्मन सेना स्वादिष्ट खाना पहुंचाती रही
वक्त बीतता जा रहा था। आतंकियों को क्या कहा जाए, ये समझ नहीं आ रहा था। इसलिए जर्मनी के अधिकारी अपार्टमेंट के पास ढेर सारा खाना लेकर पहुंच गए। प्लान ये था कि अगर खाना देने के दौरान मौका लगा तो वो अंदर घुसकर बंधकों को छुड़ा लेंगे। जर्मनी एक के बाद एक ऐसी ही बचकानी प्लानिंग करता रहा।
रात के 9 बज गए। इजराइल से कोई जवाब नहीं आया। जर्मन सरकार आतंकियों को अपना जहाज देने को राजी हो गई। आतंकियों ने कहा कि पहले दो हेलिकॉप्टर भेजो हम ओलिंपिक विलेज से बंधकों को लेकर हवाई-अड्डे पर जाएंगे। रात साढ़े 10 बजे दो हेलिकॉप्टर्स फर्सटेनफेल्डब्रक हवाई अड्डे पर उतरे, लेकिन वहां घात लगाए जर्मन कमांडो कुछ और सोचे बैठे थे।
जर्मन कमांडो ऐसे गोलियां चला रहे थे जैसे कबूतरों पर निशाना लगा रहे हों
किताब वन डे इन सेप्टेबर के लेखक साइमन रीव ने BBC को बताया, हवाई-अड्डे पर 17 जर्मन कमांडो तैनात थे, लेकिन जब उन्होंने फिलिस्तीन आतंकियों को देखा तो 5 ही कमांडो बचे। ये 5 भी नाम के कमांडो थे।
इनके पास न बुलेटप्रूफ जैकेट थी, न अच्छे हथियार। ऐसी रेस्क्यू प्लानिंग नौसिखिया टीम भी नहीं करती। आतंकियों के हेलिकॉप्टर से उतरते ही जर्मन निशानेबाजों ने गोलियां दागनी शुरू कीं, लेकिन यह सब कबूतरों पर निशाना लगाने जैसे था।
जर्मन ऑपरेशन सफल होने की झूठी खबर पर इजराइली पीएम ने शैंपेन की बॉटल खोल दी
तभी किसी ने खबर उड़ा दी कि जर्मन ऑपरेशन सफल हो गया। इजराइल में PM गोल्डा मेयर ने मारे खुशी के शैंपेन की बोतल खोल दी। अगली सुबह इजराइल के अखबार येरूशलम पोस्ट ने लिखा- सभी बंधक बचा लिए गए। बंधकों के परिवार पढ़कर खुशी से नाचने लगे।
लेकिन सच्चाई ये थी कि हवाई-अड्डे पर बंदूकें गरजती रहीं। जर्मन सैनिकों का आलम ये था कि एकाध बार तो उन्होंने आतंकी समझकर अपने ही सैनिकों पर गोली चला दी। साइमन रीव अपने किताब में लिखते हैं कि रात में जब बहुत सारी जर्मनी गाड़ियां वहां पहुंचने लगीं, तब आतंकियों ने अपनी बंदूकों को आंखों पर पट्टी बंधे इजराइली खिलाड़ियों की ओर कर दिए। और एक-एक कर के अपने कलाश्निकोव राइफल की गोलियों से उड़ाते गए। 11 इजराइली मारे गए। पांच आतंकी भी मारे गए। तीन जिंदा पकड़े गए।
मोसाद के हेड ने जब इजराइली PM को आंखों-देखी सुनाई तो हाथ से फोन छूट गया
तभी खुशी में डूबीं इजराइली PM गोल्डा मेयर को एक फोन आया। फोन इजराइली खुफिया एजेंसी मोसाद के हेड ज्वी जमीर का था। उसने कहा- मैडम PM, हमारा एक भी खिलाड़ी जिंदा नहीं बचा। PM ने उसे डांटा- होश में आओ। चारो तरफ खबर है कि सभी बच गए। उसने दोहराया- नहीं मैडम। कोई नहीं बचा। मैं उसी हवाई अड्डे की एक बिल्डिंग से सब कुछ अपनी आंखों के सामने होता देख रहा हूं। गोल्डा के हाथों से फोन का रिसीवर छूट गया…
तभी इस घटना की सबसे तेज कवरेज कर रहे जिम मके की आवाज गूंजी, “हमें अब पता चला है कि कुल 11 बंधक थे। 2 लोग कल अपने कमरों में मारे गए थे। आज रात 9 लोग हवाई अड्डे पर मार दिए गए…. दे आर ऑल गॉन… किसी को भी बचाया नहीं जा सका।”
इजराइल के बदले की कहानी इतनी खूंखार कि ओलिंपिक ने 49 सालों तक उसके खिलाड़ियों को श्रद्धांजलि नहीं दी
गोल्डा मेयर के कहने पर उनकी खुफिया एजेंसी मोसाद ने ऑपरेशन रैथ ऑफ गॉड, यानी भगवान का प्रकोप शुरू किया। इस ऑपरेशन में मोसाद ने फिलिस्तीन गिरोह ब्लैक सेप्टेंबर को हथियार देने वाले तक को ढूंढकर मारा।
इसके एजेंट 20 सालों तक दुनिया के अलग-अलग देशों में बदला लेने के लिए घूमते रहे। वो इटली, फ्रांस, फिलिस्तीन, लेबनान और यूरोप के कई देशों में घुस गए और जिन पर शक था उनके घरों में फोन बम लगाए, बिस्तर बम लगाए, कार बम लगाए, जहर की सूइयां लगाईं और जब कभी किसी को गोली मारने का मौका आया तो 11 या 12 गोलियां मारीं। अपने हर खिलाड़ी की ओर से एक।
इंतकाम पूरा होने के बाद मोसाद अपने टारगेट के परिवार को एक बुके भेजता था। इस पर लिखा होता था- ‘ये याद दिलाने के लिए है कि हम ना तो भूलते हैं, ना ही माफ करते हैं।
इस दौरान उन्होंने 8 लोगों की हत्या की, लेकिन इस बदले की आग में इजराइल इतना अंधा हो गया था कि उसने नॉर्वे में एक मासूम शख्स को शक के आधार पर मार डाला। साल था 1973। पूरी दुनिया में इजराइल की थू-थू हुई। कुछ समय के लिए PM ने अपना ऑपरेशन बंद कर दिया, लेकिन दुनिया को दिखाने के लिए उनके एजेंट अपना काम करते रहे।
यही वजह थी ओलिंपिक ने 49 सालों तक इजराइली खिलाड़ियों को श्रद्धांजलि नहीं दी।
हॉलीवुड डायरेक्टर स्टीवन स्पीलबर्ग ने 2005 में एक फिल्म बनाई थी- म्यूनिख। कभी मौका लगे तो 2 घंटे 44 मिनट की इस फिल्म को देखिएगा। इसमें आपको मोसाद का खूंखार चेहरा नजर आएगा।
2021 में श्रद्धांजलि क्यों?
सीधे तौर पर ओलिंपिक ने इस बारे में कुछ नहीं कहा। हमने कुछ इंटरनेशनल रिलेशनशिप एक्सपर्ट और स्पोर्ट्स एक्सपर्ट्स से बात की। पर उन्होंने भी इसका कोई सीधा जवाब नहीं दिया। लेकिन कहते हैं कि बीते एक साल में फिलिस्तीन और इजराइल के बीच फिर से टेंशन इतनी बढ़ गई थी कि दोनों ने एक दूसरे पर हजारों रॉकेट और गोले दागे। अमेरिका ने बीच में आकर दोनों को शांत कराया। ये श्रद्धांजलि एक तरीके से शांत रहने के मैसेज के तौर पर देखी जा सकती है।