केरल में कल, 27 जुलाई के दिन कोरोना के 22000 से अधिक नए केस दर्ज किए गए। यह पूरे देश में दर्ज हुए संक्रमण के नए मामलों का लगभग 53 प्रतिशत है। पिछले लगभग पंद्रह दिनों से लगातार केरल प्रतिदिन 15000 से अधिक संक्रमण के नए मामले दर्ज कर रहा है। जब से राज्य सरकार ने कोरोना संक्रमण की रोकथाम के लिए लागू प्रतिबंध को हटाने निर्णय लिया, संक्रमण के नए मामले बढ़ने लगे थे। ईद के बाद संख्या और बढ़ गई और कल यह संख्या 22000 से अधिक हो गई।
यह देखते हुए कहा जा सकता है कि ईद ने सुपर स्प्रेडर का काम किया है। ईद के सुपर स्प्रेडर का दर्जा दिए जाने के पक्ष में दलील यह दी जा रही है कि मुस्लिम बहुल जिलों में संक्रमण के नए मामले तेज़ी से बढ़े हैं। ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि ईद किसकी हुई?
कोरोना की दूसरी लहर को रोकने के लिए बहुत से राज्यों ने मेहनत की। कुछ राज्य तमाम अड़चनों और सीमित संसाधनों बावजूद सफल रहे। कुछ पूरी तरह से सफल नहीं रहे या संक्रमण रोकने का उनका उद्देश्य देर से पूरा हुआ पर पता नहीं ऐसा क्या है कि केरल में संक्रमण बढ़ता ही गया। उधर केरल सरकार कोरोना रोकने के अपने तथाकथित सुपर मॉडल के लिए पुरस्कार लेती रही और इधर संक्रमण बढ़ता गया। राज्य की पूर्व स्वास्थ्य मंत्री अपने तथाकथित मॉडल की सफलता का श्रेय आज भी देश विदेश में लिए जा रही हैं।
पता नहीं कौन सा मॉडल लेकर 23 करोड़ से अधिक आबादी वाला उत्तर प्रदेश रोज दो लाख से अधिक टेस्ट करके भी संक्रमण के सौ से कम नए मामले लगभग महीने भर से पा रहा है पर उसकी न तो कहीं चर्चा होती है और न ही प्रदेश सरकार को कोई पुरस्कार देने की जहमत उठाता है।
देखा जाए तो केरल में कोरोना की पहली और दूसरी लहर के बीच कोई समय आया ही नहीं। राज्य के मुख्यमंत्री, उनकी टीम और उनके सुपर मॉडल की चर्चा लगातार होती रहती है पर खोज का विषय है कि यह मॉडल है क्या? इसमें ऐसा क्या है जिसे उधार लिए बिना ही उत्तर प्रदेश जैसे विशाल राज्य से कम से कम समय में कोरोना की दूसरी लहर पर काबू पा लिया गया? यह देखने वाली बात होगी कि कोरोना की दूसरी लहर के समय लखनऊ को लाशनऊ बताने वाले बुद्धिजीवी और पत्रकार केरल और उसके जिलों के लिए क्या लिखते हैं? यही बुद्धिजीवी और पत्रकार महीनों तक केरल के सुपर मॉडल के गुण गाते रहे पर आज जब राज्य बढ़ते संक्रमण पर काबू नहीं पा रहा तब चुप हैं और किसी कोने से भी उनकी आवाज़ सुनाई नहीं दे रही।
ऐसा हो सकता है कि किन्हीं परिस्थितियों में कभी-कभी प्रयास अपेक्षित परिणाम नहीं ला पाते पर यह कौन सा मॉडल है जिसमें सरकार मुसलमानों को त्यौहार मनाने की खुली छूट दे दे? विजयन सरकार का यह कदम क्या महामारी की रोकथाम के प्रति राज्य सरकार की गंभीरता को नहीं दर्शाता? आखिर ऐसा क्यों है कि लोगों को त्यौहार मनाने की छूट देकर पूरे राज्य ही नहीं बल्कि पड़ोसी राज्यों के नागरिकों को भी एक तरह संभावित विपत्ति में डाल दिया जाए?
अब तक यह समझना कोई रॉकेट साइंस नहीं कि कोरोना संक्रमण को रोकने का एक ही तरीका है और वो यह है कि किसी भी देश, राज्य, जिले या शहर के हर नागरिक को संक्रमण से बचाया जाए। ऐसे में क्या राज्य सरकार की जिम्मेदारी नहीं है कि वो एक धर्म को लोगों को खुली छूट न देकर राज्य के हर नागरिक के संक्रमित होने की संभावना कम करे?
उत्तर प्रदेश में पिछले लगभग दो महीने से संक्रमण लगातार कम हुआ है। राज्य में टेस्ट-पॉजिटिव रेशियो आज केरल के लगभग 12 प्रतिशत के मुकाबले में 0.008 प्रतिशत है। यह आँकड़ा कहीं भी लिखने या बोलने में भले अजीब लगे पर है तो सच। ऐसे में हमारी न्याय व्यवस्था यदि स्वतः संज्ञान लेकर उत्तर प्रदेश में काँवड़ यात्रा रुकवाती है और केरल में ईद पर दी गई छूट पर केवल राज्य सरकार की आलोचना करके चुप बैठ जाती है तो उसे अपनी कार्यशैली पर गंभीरता से विचार करना चाहिए क्योंकि बहस की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में प्रश्न उठेंगे।
यह किसी भी व्यक्ति या समूह का साधारण अधिकार है कि उत्तर मिले या न मिले पर वह प्रश्न करे। काँवड़ यात्रा के लिए गंगाजल लेने पर रोक के बावजूद कुछ अति उत्साही कांवड़ियों को हरिद्वार में जल लेने का प्रयास करते समय गिरफ्तार कर लिया गया। कांवड़ यात्रा के लिए जल लेने वालों की गिरफ्तारी न्यायालय के आदेश के प्रति उत्तराखंड सरकार के जिम्मेदारी पूर्ण आचरण को दर्शाती है। प्रश्न यह है कि हम ऐसे जिम्मेदारी पूर्ण आचरण की अपेक्षा केरल सरकार से किस सदी में कर सकते हैं?