केरल विधानसभा में 2015 में हुए हंगामे के मामले में तत्कालीन एलडीएफ विधायकों पर केस चलेगा। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (28 जुलाई 2021) को केरल सरकार को फटकार लगाते हुए कहा है कि विधानसभा में संपत्ति नष्ट करने की घटना को सदन में बोलने की स्वतंत्रता के बराबर नहीं माना जा सकता है। केरल की वामपंथी सरकार ने राज्य के 6 प्रमुख सीपीएम नेताओं और शिक्षा मंत्री वी शिवनकुट्टी सहित पूर्व विधायकों के खिलाफ मामले को वापस लेने की अनुमति माँगी थी।
यह मामला मार्च 2015 का है। उस समय सीपीआई (एम) के नेतृत्व वाला एलडीएफ विपक्ष में था। कॉन्ग्रेस के नेतृत्व में यूडीएफ सरकार चल रही थी। तत्कालीन वित्त मंत्री केएम मणि को बजट भाषण पेश करने से रोकने की कोशिश में तत्कालीन माकपा विधायकों ने सदन में जबर्दस्त हंगामा किया था।
न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एमआर शाह की पीठ ने केरल राज्य और आरोपितों की विशेष अनुमति याचिकाओं को खारिज करते हुए केरल हाईकोर्ट के 12 मार्च के फैसले को कायम रखा। पीठ ने कहा, “विधानसभा में संपत्ति को नष्ट करने को सदन में बोलने की स्वतंत्रता के बराबर नहीं किया जा सकता है। इन परिस्थितियों में वापसी की अनुमति देना नाजायज कारणों से न्याय की सामान्य प्रक्रिया में हस्तक्षेप के समान होगा।” याचिका में राज्य सरकार ने दावा किया था कि सदन में हुई घटना के लिए सदन के अध्यक्ष की मँजूरी के बिना ही केस दर्ज किया गया था।
शीर्ष कोर्ट ने राज्य सरकार की दलीलों को खारिज करते हुए कहा, “विशेषाधिकार और प्रतिरक्षा आपराधिक कानून से छूट का दावा करने का प्रवेश द्वार नहीं है और यह नागरिकों के साथ विश्वासघात होगा। संपूर्ण वापसी आवेदन अनुच्छेद 194 की गलत धारणा के आधार पर दायर किया गया था।” जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, “प्रथम दृष्टया हमें इस तरह के व्यवहार पर सख्त नजरिया रखना होगा। यह स्वीकार्य व्यवहार नहीं है। फर्श पर माइक फेंकने वाले विधायक का व्यवहार देखिए। उन्हें मुकदमे का सामना करना होगा।”
इससे पहले 5 जुलाई 2021 को मामले में सुनवाई करते हुए आरोपित विधायकों को किसी भी तरह की राहत देने से मना कर दिया था। इसके बाद सर्वोच्च न्यायालय ने मामले में 15 जुलाई को सुनवाई पूरी करने के बाद फैसले को सुरक्षित रख लिया था। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने केरल सरकार से पूछा था, “क्या लोकतंत्र के मंदिर में चीजों को फेंकना और उन्हें बर्बाद करना न्याय के हित में है?”