नई दिल्ली। कर्नाटक में बीएस येदियुरप्पा की जगह बसवराज बोम्मई मुख्यमंत्री होंगे. मंगलवार को विधायक दल की बैठक में येदियुरप्पा ने ही बोम्मई के नाम का प्रस्ताव रखा, जिसे मंजूर कर लिया गया. बीजेपी ने इस बार मुख्यमंत्री के चयन में साल 2011 वाली गलती नहीं दोहराई है बल्कि येदियुरप्पा को भरोसे में लेने के साथ-साथ उनकी पसंद और लिंगायत समुदाय की चाहत का भी ख्याल रखा है. बीजेपी ने बसवराज बोम्मई को कर्नाटक का सीएम बनाकर कई सियासी समीकरण साधे हैं.
बीजेपी ने 2011 से लिया सबक
कर्नाटक में बीजेपी ने इस बार मुख्यमंत्री के चयन में साल 2011 वाली गलती नहीं दोहराई है. 2011 में भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते बीएस येदियुरप्पा ने मुख्यमंत्री का पद छोड़ा था. बीजेपी ने उनकी जगह वोक्कालिगा समुदाय से आने वाले सदानंद गौड़ा को मुख्यमंत्री बनाया था. इसके बाद येदियुरप्पा ने नाराज होकर बीजेपी छोड़ दी थी और कर्नाटक जनता पार्टी (केजेपी) नाम से अपनी पार्टी बना ली थी. इसका नतीजा यह हुआ कि लिंगायत समुदाय बीजेपी से दूर हो गया और 2013 विधानसभा चुनाव में बीजेपी को सत्ता गवांनी पड़ गई. इसीलिए कर्नाटक में बीजेपी ने बीएस येदियुरप्पा के विकल्प के लिए बसवराज बोम्मई को चुनकर कई सियासी समीकरण साधने का दांव चला है.
1. येदियुरप्पा की पंसद बने बोम्मई
कर्नाटक की सत्ता की कमान संभालने जा रहे बसवराज बोम्मई को पूर्व मुख्यमंत्री बीएस ‘येदियुरप्पा की परछाई’ कहा जाता है. साल 2008 में बोम्मई को जनता दल से बीजेपी में लाने का काम येदियुरप्पा ने किया था, जिसके बाद से वह उनके सबसे करीबी नेता माने जाते हैं. येदियुरप्पा की अगुवाई वाली सरकार में बोम्मई गृह मंत्रालय, कानून और संसदीय कार्य और विधान मंत्री का पदभार संभाल रहे थे. मौजूदा वक्त येदियुरप्पा का पसंदीदा चेहरा न चुनना बीजेपी को भारी पड़ सकता था. येदियुरप्पा को इस वक्त नाराज करने का रिस्क बीजेपी नहीं उठा सकती थी. इसीलिए बीजेपी ने येदियुरप्पा के विकल्प के तौर पर उनके चहेते और बोम्मई को चुना है.
2. लिंगायत समुदाय का रखा ख्याल
बसवराज बोम्मई कर्नाटक के प्रभावशाली वीराशैव-लिंगायत समुदाय से आते हैं और येदियुरप्पा भी इसी समुदाय से हैं. राज्य की कुल आबादी में समुदाय की हिस्सेदारी 17 फीसदी है और इसे बीजेपी के मजबूत वोटबैंक के तौर पर देखा जाता है. यही वजह है कि बीजेपी ने नए सीएम को लिंगायत समुदाय से ही चुना. वो बीजेपी के लिए लिंगायत चेहरा भी हैं. ऐसे में समुदाय में भी किसी तरह की नाराजगी नहीं होगी.
दरअसल, येदियुरप्पा को सीएम पद से हटाने की चर्चा हुई तो लिंगायत समुदाय के लोगों ने बैठक कर बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व को संदेश दे दिया था कि येदियुरप्पा को हटाना चुनाव में बीजेपी के लिए मंहगा पड़ सकता है. लिंगायत समुदाय नहीं चाहता था कि येदियुरप्पा सीएम पद से इस्तीफा दें, लेकिन बीजेपी ने बसवराज बोम्मई का चेहरा पेश कर लिंगायत समुदाय को साधने का दांव चला है. राज्य की 224 विधानसभा सीटों में से तकरीबन 100 सीटों पर लिंगायत समुदाय का प्रभाव है. ऐसे में बीजेपी के लिए येदियुरप्पा की जगह बसवराज बोम्मई को बनाकर लिंगायत समुदाय को नाराज नहीं किया.
3. संघ के चहेते भी माने जाते हैं
बसवराज बोम्मई पूर्व सीएम येदियुरप्पा के पंसद ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के चहेते भी हैं. माना जाता है कि संघ और येदियुरप्पा के बीच की कड़ी के रूप में इन्होंने ही काम किया, येदियुरप्पा से संघ के बिगड़े रिश्तों का असर येदियुरप्पा के कामकाज पर न पड़े इसमें भी बड़ी भूमिका बोम्मई ने निभाई. बता दें, येदियुरप्पा संघ की पृष्ठभूमि से हैं, लेकिन 2011 में भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते भाजपा से निष्कासित होने के बाद उनके और संघ के शीर्ष नेतृत्व के संबंधों के बीच दरार आ गई थी. 2014 में बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने येदियुरप्पा को वापस बुला लिया था, जिसके बाद संघ और येदियुरप्पा के रिश्तों को पटरी पर लाने के लिए बोम्मई ने अहम भूमिका अदा की थी, जिसके बाद से संघ में उनकी मजबूत पकड़ बनी.
4. बोम्मई का राजनीतिक अनुभव
बसवराज बोम्मई का सियासी अनुभव भी उनके सीएम बनने की दिशा में काम आया. 28 जनवरी 1960 को जन्मे बसवराज बोम्मई कर्नाटक के पिता एसआर बोम्मई भी राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. बोम्मई ने भले ही जनता दल के साथ राजनीति की शुरुआत की थी, लेकिन अब उन्होंने बीजेपी के मजबूत नेता के तौर पर अपनी छवि बनाई है. इंजीनियरिंग और खेती से जुड़े होने के नाते बसवराज को कर्नाटक के सिंचाई मामलों का जानकार माना जाता है. राज्य में कई सिंचाई प्रोजेक्ट शुरू करने की वजह से उनकी तारीफ होती है. बोम्मई की शैक्षणिक योग्यता, प्रशासनिक क्षमताएं और येदियुरप्पा व भाजपा के केंद्रीय नेताओं से करीबी इस पद के लिए उनके चयन की प्रमुख वजहों में बताई जा रही है.