नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल (West Bengal) की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) तीन दिवसीय दौरे पर दिल्ली पहुंच रही हैं. इस दौरे के बारे में अगर भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेताओं से पूछे तो वह साल 2018 में बेंगलुरू के एचडी कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण की याद दिलाएंगे जिसमें ममता, मायावती और कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने एकता प्रदर्शित की थी. इस मंच पर शरद पवार, अखिलेश और तेजस्वी यादव भी थे. भाजपा के एक वरिष्ठ मंत्री ने कहा ‘सोनिया-मायावती के गले लगने और मायावती को पीएम के लिए चुनौती के तौर पर पेश करने के बाद तथाकथित एकता का क्या हुआ? इस एकता को छह महीने भी नहीं हुए थे जब मायावती ने कांग्रेस के खिलाफ मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में चुनाव लड़ा था.’
ऐसा लगता है कि मायावती के ‘चैलेंजर’ वाली जगह अब ममता बनर्जी ने ले ली है. पश्चिम बंगाल में अपनी बड़ी जीत से उत्साहित होकर साल 2024 में नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक बड़ा विपक्षी खेमा बनाने की कोशिश कर रही हैं. ममता बनर्जी में एक आक्रामक नेता है, जिसमें पीएम नरेंद्र मोदी का मुकाबला करने की क्षमता रखता है. पश्चिम बंगाल की जीत ने दिखाया कि वह भाजपा की मशीनरी के सामने खुद को खड़ा कर सकती हैं. राज्य के चुनावों में कांग्रेस के साथ एक अनकहे समझौते को राष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ी एकता के लिए एक कदम के रूप में देखा जा रहा है. प्रशांत किशोर सरीखे विश्वासपात्र के साथ बनर्जी विपक्षी दलों के बीच गहरी कनेक्शन वाली एक खिलाड़ी भी है और जो संभवत: पिछले लोकसभा चुनावों के लिए साल 2018 में विपक्षी दलों द्वारा किए गए प्रयास से एक कदम आगे बढ़कर उचित समझौता कर सकती हैं. किशोर पहले ही पवार और गांधी परिवार के साथ बैठक कर चुके हैं.
क्या हैं बीजेपी के तर्क?
लेकिन बीजेपी के पास इस बात के भी तर्क हैं कि आखिर ममता की चुनौती कारगर क्यों नहीं है. एक अन्य वरिष्ठ भाजपा नेता ने News18 को बताया, कांग्रेस कैडर राहुल गांधी के अलावा किसी और को ‘पीएम चैलेंजर’ स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है. दूसरा बनर्जी की स्वीकार्यता पूरे भारत में नहीं है. खासकर हिंदी भाषी क्षेत्र में. क्या कांग्रेस UP- बिहार की तरह अपनी जगह किसी अन्य विपक्षी दल को सौंपने का जोखिम उठाएगी?’ भाजपा पंजाब, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में नेतृत्व के संकट पर सवालिया लहजे में कहा कि जो अपने घर में स्थिति बेहतर नहीं कर पा रही है वह दूसरे दलों के साथ कैसे समझौते करेगी?
भाजपा नेताओं ने कहा कि मोदी के खिलाफ किसी भी विपक्षी एकता का इम्तहान साल 2024 से पहले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान होगा. समाजवादी पार्टी, बसपा और कांग्रेस सभी ने कहा है कि अकेले चुनाव लड़ेंगे. राज्य में भाजपा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा ‘राष्ट्रीय विपक्षी एकता के बारे में बनर्जी को धुरी बना कर बात की जा रही है, लेकिन विपक्षी दल यूपी में गठबंधन करने में असमर्थ हैं. यह पूरे विपक्ष के द्वंद्व को दिखाता है.’
राज्यों में इस तरह के गठबंधनों में सीटों में ‘सम्मानजनक’ हिस्सा पाने की कांग्रेस की जिद पहले भी खतरनाक साबित हुई है. राजद को पिछले बिहार चुनाव में कांग्रेस को अधिक सीटें देने के बाद नुकसान उठाना पड़ा, वहीं समाजवादी पार्टी ने 2017 में उत्तर प्रदेश में गठबंधन में कांग्रेस को 100 से अधिक सीटें दी थी. यही बात इस बार यूपी में किसी भी विपक्षी गठबंधन को बनने से रोक रही है. भाजपा नेता ने कहा, ‘उत्तर प्रदेश में भाजपा की बड़ी जीत विपक्षी दलों और तथाकथित एकता को हवा देगी.’ टीएमसी और कांग्रेस कोविड और महंगाई के मुद्दे पर मोदी के खिलाफ साल 2024 की तस्वीर बना रही है लेकिन भाजपा को लगता है कि दोनों की महत्वाकांक्षाएं उन पर भारी पड़ जाएंगी.