टोक्यो ओलंपिक 2020 में भारत की वेटलिफ्टर मीराबाई चानू ने इतिहास रच दिया है. उन्होंने 49 किग्रा में रजत पदक हासिल किया है. वेटलिफ्टिंग में ये दूसरी बार है जब भारत ने ओलंपिक में मेडल जीता है. इससे पहले 2000 के सिडनी ओलंपिक में कर्णम मल्लेश्वरी ने कांस्य पदक जीता था.
मीराबाई ने 2016 रियो ओलंपिक के निराशाजनक प्रदर्शन की भरपाई टोक्यो ओलंपिक में पदक जीतकर कर ली. टोक्यो के लिए क्वालिफाई करने वाली एकमात्र भारोत्तोलक मीराबाई का रियो ओलंपिक में क्लीन एवं जर्क में तीन में से एक भी प्रयास वैध नहीं हो पाया था.
पांच साल पहले के इस निराशाजनक प्रदर्शन के बाद उन्होंने वापसी की और 2017 विश्व चैम्पियनशिप में और फिर एक साल बाद राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीतकर अपने आलोचकों को चुप कर दिया. उन्होंने पीठ की परेशानी से भी वापसी की, जिसके कारण वह 2018 में अच्छा नहीं कर सकी थीं.
मीराबाई के नाम अब महिला 49 किग्रा वर्ग में क्लीन एवं जर्क में विश्व रिकॉर्ड भी है. उन्होंने टोक्यो ओलंपिक से पहले अपने अपने अंतिम टूर्नामेंट एशियाई चैम्पियनशिप में 119 किग्रा का वजन उठाया और इस वर्ग में स्वर्ण और ओवरऑल वजन में कांस्य पदक जीता.
मीराबाई जब 24 जुलाई को भारोत्तोलन एरेना में उतरीं, तो इस प्रदर्शन का असर उनके आत्मविश्वास पर दिखा. हाल के वर्षों में उनका क्लीन एवं जर्क में शानदार प्रदर्शन उन्हें अपने प्रतिद्वंद्वियों से आगे ही रखता आया है, पर उनका स्नैच स्पर्धा में प्रदर्शन अक्सर परेशानी का कारण बनता रहा है. कंधे की चोट की वजह से वह स्नैच में जूझती रही हैं, जिसे वह खुद भी स्वीकार करती हैं.
मीराबाई अपनी कमजोरियों को जानती हैं और डॉ. आरोन होरशिग के साथ इन पर काम कर रही हैं, जो पूर्व भारोत्तोलक से फिजियो थेरेपिस्ट और स्ट्रेंथ एवं कंडिशिनंग कोच बने और इसका नतीजा सबके सामने है.