पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद बड़े पैमाने पर हुई हिंसा की जाँच कर रहे राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने अपनी फाइनल रिपोर्ट कलकत्ता हाईकोर्ट को सौंप दी है। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि राज्य में ‘कानून का शासन’ नहीं बल्कि ‘शासक का कानून’ है। करीब 50 पेज की NHRC की इस रिपोर्ट में राज्य प्रशासन की कड़ी आलोचना की गई है और कहा गया है कि राज्य प्रशासन ने जनता में अपना विश्वास खो दिया है।
National Human Rights Comm enquiry report makes damning disclosures on gory violence in West Bengal after May 2 win by TMC pic.twitter.com/hPwOzoaKI9
— The Times Of India (@timesofindia) July 15, 2021
NHRC की 7 सदस्यीय टीम ने 20 दिन में 311 से अधिक जगहों का मुआयना करने के बाद राज्य में चुनाव के बाद हुई हिंसा पर अपनी रिपोर्ट सौंपी है। रिपोर्ट में हिंसा की जाँच सीबीआई से कराने की सिफारिश की गई है। इसके अलावा, यह भी कहा गया है कि मामलों की सुनवाई राज्य के बाहर फास्ट ट्रैक अदालत गठित कर हो। रिपोर्ट में पीड़ितों की आर्थिक सहायता के साथ पुनर्वास, सुरक्षा और आजीविका की व्यवस्था करने को कहा गया है।
रिपोर्ट के मुताबिक, जाँच के दौरान टीम को राज्य के 23 जिलों से 1979 शिकायतें मिलीं। इनमें ढेर सारे मामले गंभीर अपराध से संबंधित थे। इनमें से अधिकांश शिकायतें कूच बिहार, बीरभूम, बर्धमान, उत्तरी 24 परगना और कोलकाता की हैं। इनमें से अधिकांश मामले दुष्कर्म, छेड़खानी व आगजनी की हैं और ये शिकायतें टीम के दौरा के वक्त लोगों ने बताई हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि उसे महिलाओं पर हुए अत्याचार की 57 शिकायतें राष्ट्रीय महिला आयोग से मिली हैं।
आयोग ने बताया कि लोगों से मिलने दौरान उसे मिली शिकायतों की संख्या और राज्य की पुलिस द्वारा दर्ज की गई शिकायतों की संख्या में भारी अंतर है। अधिकतर शिकायतें पुलिस ने दर्ज ही नहीं की हैं। टीम के निष्कर्ष में यह बात निकलकर आई है कि राज्य में लोगों को पुलिस पर विश्वास नहीं रह गया है। रिपोर्ट कहती है कि हिंसा के अधिकांश मामलों में या तो कोई गिरफ्तारी नहीं हुई या जिनकी गिरफ्तारी हुईं वे जमानत पर रिहा हो गए।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 9,300 आरोपितों में से पश्चिम बंगाल पुलिस ने केवल 1,300 को गिरफ्तार किया और इनमें से 1,086 जमानत पर रिहा हो गए। रिपोर्ट में कहा गया है कि कई मामलों में पीड़ितों को इंसाफ दिलाने की बजाय पुलिस ने उन्हीं पर गंभीर धाराओं में मुकदमा दायर कर दिया। रिपोर्ट में कहा गया है कि टीएमसी के गुंडों को बचाने के लिए प्राथमिक मामले से पहले की तारीख में पीड़ित के खिलाफ केस दर्ज किए गए, जो बेहद गंभीर धाराओं के अंतर्गत दर्ज किए गए हैं।
जाँच टीम ने यह भी पाया कि हिंसा में पीड़ित लोगों की सुनवाई करने की बजाय बंगाल पुलिस तमाशा देखती रही, जबकि टीएमसी के गुंडे एक जगह से दूसरी जगह हिंसा फैलाते रहे। रिपोर्ट में कहा गया है कि बंगाल पुलिस पर किसी प्रकार का दबाव था या फिर वह खुद इतनी लापरवाह थी कि उसने कार्रवाई नहीं की। इसके अलावा, टीम ने यह भी पाया कि बंगाल में हुई राजनीतिक हिंसा पर न तो किसी पुलिसकर्मी ने और न ही किसी राजनेता ने इन घटनाओं की निंदा की। टीम ने कहा कि चुनावी नतीजों के बाद हुई हिंसा किसी पॉलिटकल-ब्यूरोक्रेटिक-क्रिमिनल नेक्सस की ओर इशारा करती है। इस हिंसा ने लोकतंत्र के कई स्तंभों पर भी हमला किया है। आयोग ने इस बात पर नाराजगी जाहिर की पीड़ितों को अकेला और उनके हाल पर छोड़ दिया गया।
ममता ने रिपोर्ट लीक होने पर निकाला गुस्सा
उल्लेखनीय है कि बंगाल में चुनावों के बाद हुई हिंसा पर NHRC की रिपोर्ट मीडिया में लीक होने से ममता बनर्जी नाराज हैं। उन्होंने कहा है कि एनएचआरसी को न्यायपालिका का सम्मान करना चाहिए और उसे चुनाव बाद हुई हिंसा से संबंधित रिपोर्ट लीक नहीं करनी चाहिए थी और इसे सिर्फ उच्च न्यायालय को सौंपना चाहिए था। अपना गुस्सा जाहिर करते हुए ममता बनर्जी पूरे मामले में उत्तर प्रदेश को बीच में ले आईं।
PM Modi knows very well that there is no rule of law in UP. How many commissions has he sent there? So many incidents, from Hathras to Unnao, have taken place. Even journalists are not spared. They give a bad name to Bengal. Maximum violence was pre-poll: WB CM Mamata Banerjee pic.twitter.com/fYIdHKdZJ8
— ANI (@ANI) July 15, 2021
वह बोलीं कि प्रधानमंत्री अच्छी तरह जानते हैं कि यूपी में कानून का राज नहीं है। ऐसी हालत में वहाँ पर कितने आयोग भेजे गए हैं? यूपी के हाथरस से लेकर उन्नाव तक कई घटनाएँ हो चुकी हैं और हालात ये हैं कि वहाँ पत्रकारों को भी नहीं बख्शा गया। उन्होंने कहा कि बंगाल को बदनाम किया है और ज्यादातर हिंसा चुनाव से पहले हुई है।
NHRC की अंतरिम रिपोर्ट देखने के बाद कलकत्ता हाईकोर्ट ने ममता बनर्जी सरकार की भूमिका पर सवाल उठाते हुए कहा था कि प्रशासन आँखें मूंदे बैठा था और चुनाव के बाद हिंसा हुई थी। कोर्ट ने कहा था कि सरकार ने झूठ बोला था कि चुनाव के बाद हुई हिंसा की उसे कोई शिकायत नहीं मिलीं, जबकि मानवाधिकार आयोग के पास शिकायतों की भरमार आई। कोर्ट ने 2 जुलाई को टीएमसी गुंडों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के निर्देश कोलकाता पुलिस को दिए थे। आदेश में कहा गया था कि मानवाधिकार आयोग की सिफारिश पर ये शिकायतें दर्ज होनी चाहिए।