नई दिल्ली। जुलाई 2020 के बाद 2021 का जुलाई भी आ गया है। इस दौरान राजनीति में जो सवाल सबसे ज्यादा पूछा गया वह है कि सचिन पायलट कब कॉन्ग्रेस छोड़ेंगे? ज्योतिरादित्य सिंधिया के कॉन्ग्रेस छोड़ने के कुछ ही समय बाद उन्होंने भी बगावत का मूड दिखाया था। लेकिन बगावती तेवर दिखाने के बावजूद सिंधिया की तरह आखिरी फैसला नहीं कर पाए। अब एक बार फिर उसी सिंधिया को मोदी कैबिनेट में नागरिक उड्डयन मंत्रालय की जिम्मेदारी मिलने के बाद पायलट के कॉन्ग्रेस छोड़ने को लेकर कयास तेज हो गए हैं।
पायलट ट्विटर पर ट्रेंड कर रहे हैं। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक उनके समर्थक विधायकों के बीच हलचल दिख रही है। जो संकेत मिल रहे हैं कि उससे लगता है कि इस बार आगे बढ़ने पर समर्थक शायद ही कदम पीछे खींचने को राजी हों। इसकी एक वजह कॉन्ग्रेस के राजस्थान प्रभारी अजय माकन के दौरे के बावजूद गहलोत और पायलट गुट के बीच सहमति नहीं बन पाना है।
दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार सुलह के फॉर्मूले को लेकर माकन ने दो दिन तक गहलोत के साथ मंत्रिमंडल विस्तार, राजनीतिक नियुक्तियों और कॉन्ग्रेस संगठन में नियुक्तियों पर चर्चा की। लेकिन, गहलोत अपनी कैबिनेट में पायलट गुट को मनमाफिक जगह देने को तैयार नहीं हैं। वे विधायकों की संख्या के अनुपात में मंत्री बनाने का तर्क दे रहे हैं, जबकि पायलट ने बगावत ही ज्यादा प्रतिनिधित्व को लेकर की थी। कुछ रिपोर्टों में तो यहाँ तक कहा गया है कि पायलट समर्थकों को कैबिनेट में जगह देने से ही गहलोत ने साफ इनकार कर दिया है। वे संगठन में इस गुट को प्रतिनिधित्व देने को राजी बताए जा रहे हैं।
At the time of revolt by Scindia from Congress, it was thought that, it may be blessings in disguise for Pilot but even after a year, while #Scindia has taken off as aviation minister, #Pilot continues to be parked in Congress Hanger. My sympathies with him.
— Totlani Krishan?? (@kktotlani) July 8, 2021
#SachinPilot after seeing #JyotiradityaScindia as Cabinet- Minister in #CabinetReshuffle pic.twitter.com/hH5O0lrVI1
— Shikha Rajpoot (@ShikhaR50421381) July 8, 2021
Scindia gets Civil Aviation. Clear signal that a Pilot can join now. pic.twitter.com/wZMqSHpSjw
— Keh Ke Peheno (@coolfunnytshirt) July 8, 2021
गौरतलब है कि 2018 में जब राजस्थान में कॉन्ग्रेस की सत्ता में वापसी हुई थी तो उसका श्रेय सचिन पायलट को दिया गया था। असल में 2013 में गहलोत के नेतृत्व में करारी शिकस्त के बाद पायलट को कॉन्ग्रेस ने केंद्रीय राजनीति से प्रदेश में भेजा था और बतौर प्रदेश अध्यक्ष उन्हें कमान दी थी। 2014 के आम चुनावों में कॉन्ग्रेस का खाता नहीं खुलने के बावजूद पायलट जमीन पर जुटे रहे और 2019 के विधानसभा चुनावों में कॉन्ग्रेस को उनकी मेहनत का फल भी मिला। लेकिन मुख्यमंत्री चुनते वक्त उन्हें किनारे कर दिया गया। गहलोत कैबिनेट में उपमुख्यमंत्री का पद मिला पर शुरुआत से ही उन्हें और उनके समर्थकों को सरकार में उपेक्षा का दंश झेलना पड़ा। प्रियंका गाँधी से मुलाकात के बाद पायलट ने पिछली बार पैर पीछे खींच लिए थे और उसके बाद से वे सरकार तथा उनके समर्थक अलग-थलग पड़े हैं।
पिछले दिनों जब बीजेपी ने कॉन्ग्रेस से आए हिमंत बिस्वा सरमा को असम का मुख्यमंत्री बनाया था तब भी इसे पायलट के लिए संकेत के तौर पर देखा गया था। अब देखना यह है कि पायलट कॉन्ग्रेस के अपने पुराने साथी सिंधिया की तरह उड़ान भरने की हिम्मत जुटा पाते हैं या कॉन्ग्रेस के ओल्ड गार्ड के रहमोकरम तले मौका मिलने की अंतहीन उम्मीद के साए तले जीते रहेंगे।