पटना। राजनीति में लोजपा सांसद पशुपति कुमार पारस का कद तेजी से बढता जा रहा है, पिछले हफ्ते उन्होने अपने भतीजे चिराग पासवान को हटाकर संसदीय दल के नेता का पद हासिल किया था, फिर पार्टी के नये नेता भी चुन लिये गये, नेता चुने जाने के बाद पशुपति पारस ने कहा कि वो जल्द ही केन्द्र सरकार में शामिल होने जा रहे हैं, 71 वर्षीय पारस ने कहा कि वो जल्द ही केन्द्र सरकार में शामिल होने जा रहे हैं, उन्होने कहा कि जब मैं मंत्रिमंडल में शामिल होउंगा, उसी समय संसदीय दल के नेता पद से इस्तीफा दे दूंगा, लोजपा का ये घमासान फिलहाल थमता नजर नहीं आ रहा।
हालांकि पीएम मोदी ऐसे महत्वपूर्ण मामलों में रहस्योद्घाटन को कतई पसंद नही करते हैं, केन्द्रीय मंत्रिमंडल विस्तार और फेरबदल की लंबे समय से सुगबुगाहट चल रही है, पीएम मोदी की गृह मंत्री अमित शाह समेत वरिष्ठ मंत्रियों के साथ हुई बैठक के दौर के बाद ये कयास लगाये जा रहे हैं, हालांकि बीजेपी नेता कैबिनेट मंत्री पद मिलने को लेकर किसी भी अटकलबाजी से बच रहे हैं, उनका कहना है कि सिर्फ दो लोग जानते हैं, कि कब बदलाव होगा और किसे मंत्री मद मिलेगा, ऐसे में पारस का ऐलान उन्हें भारी पड़ सकता है।
उनके गृह राज्य बिहार में भी बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं ने भी केन्द्रीय नेतृत्व को ये संदेश दिया है कि चिराग पासवान के खिलाफ पारस को एकतरफा समर्थन बड़ी भूल होगी, चिराग की उम्र सिर्फ 38 साल है, वो पूर्व केन्द्रीय मंत्री रामविलास पासवान के बेटे हैं, बिहार चुनाव के कुछ समय पहले रामविलास पासवान का निधन हो गया था, बिहार बीजेपी ने पार्टी के दलित विधायकों के बीच चिराग और पशुपति पारस को लेकर इस मुद्दे पर रायशुमारी की है, इन विधायकों का कहना था कि दलित और खासकर पासवान समुदाय चिराग के साथ रहेगा।
कुछ विधायकों का कहना है कि चिराग पासवान के खिलाफ नीतीश कुमार की अगुवाई में जो मुहिम चली है, उससे जो वोटर बिखरे या असंतोष में भी हैं, इससे चिराग के लिये हमदर्दी पैदा हो गई है, बीजेपी नेताओं ने केन्द्रीय नेतृत्व को भी इससे अवगत करा दिया है, उनका कहना है कि पारस को केन्द्रीय मंत्री बनाने और चिराग पासवान को हाशिये पर डालने से जो पासवान वोटर 2014 लोकसभा चुनाव से बीजेपी प्रत्याशियों के समर्थन में उतरा था, उसका नुकसान आगे उठाना पड़ सकता है, हालांकि पारस जन नेता की बजाय परदे के पीछे की भूमिका में ही ज्यादा सक्रिय रहे हैं, पारस की उम्र और स्वास्थ्य भी ऐसा नहीं है कि उन पर दांव लगाया जा सके, वो पासवान जाति के वोटरों को गोलबंद करने में भी कारगर नहीं हैं।