लखनऊ। उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी (BSP) से बीते दो साल के दौरान निष्कासित किए गए 11 विधायकों ने पार्टी सुप्रीमो मायावती (Mayawati) के भरोसेमंद सहयोगी सतीश चंद्र मिश्रा (Satish Chandra Mishra) को लेकर नाराजगी जताई है. इन विधायकों में अधिकांश ने मिश्रा पर मतभेद पैदा करने और मायावती को गुमराह करने का आरोप लगाया है.
अब आलम ये है कि यूपी में बहुजन समाज पार्टी टूट की कगार पर है. कुल 18 में से 11 विधायकों को पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए बर्खास्त किए जाने के बाद बसपा में टूट का खतरा मंडराने लगा है. इनमें से पांच विधायकों ने मंगलवार को लखनऊ में समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) से मुलाकात की, लेकिन उन्हें सपा में शामिल नहीं होने की सलाह दी गई, क्योंकि इससे उनके दलबदल विरोधी कानून (Anti-Defection Law) में घिरने का खतरा रहेगा. ऐसे में कहा जा रहा है कि इन विधायकों ने 2022 में यूपी चुनाव लड़ने के लिए समाजवादी पार्टी से टिकट मांगा है.
इनमें से तीन विधायकों का कहना है कि मायावती से उनकी कोई नाराजगी या समस्या नहीं है, लेकिन विधायकों ने सतीश चंद्र मिश्रा पर उनके और मायावती के बीच गलतफहमी की खाई पैदा करने का आरोप लगाया है. बीएसपी के निलंबित विधायक असलम अली रायानी ने कहा, ‘मायावती वही करती हैं, जो मिश्रा उन्हें करने के लिए कहते हैं. वह पार्टी को बर्बाद कर रहे हैं.’ रायानी ने कहा कि अगर यह व्यवस्था जारी रही तो मुसलमान बीएसपी छोड़ देंगे. सुषमा पटेल और हकीम लाल बिंद जैसे अन्य विधायकों ने भी घटनाओं के लिए मिश्रा पर दोष मढ़ दिया.
सतीश चंद्र मिश्रा वर्षों से मायावती के भरोसेमंद सहयोगी रहे हैं. ये मिश्रा ही थे, जिनकी ब्राह्मणों तक पहुंचने की रणनीति के कारण 2007 में बीएसपी को यूपी की सत्ता मिल पाई. पंजाब में अकाली दल के साथ गठबंधन के लिए भी मायावती ने मिश्रा को ही प्रतिनियुक्त किया गया था. गठबंधन के ऐलान के वक्त वह सुखबीर सिंह बादल के साथ स्टेज पर मौजूद थे.
कहा जाता है कि उन्होंने मायावती को तब सचेत किया था, जब बीएसपी के निलंबित विधायकों में सात ने राज्यसभा चुनावों में पार्टी के फरमान का पालन नहीं किया था. हाल के पंचायत चुनावों में बीएसपी के वरिष्ठ नेताओं लालजी वर्मा और राम अचल राजबहर ने भी पार्टी के फरमान की अनदेखी की.
सतीश चंद्र मिश्रा के रिश्ते बीएसपी के वरिष्ठ नेता लालजी वर्मा और राम अचल राजभर के साथ भी तनावपूर्ण थे. इन्हें मायावती ने हाल ही में पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए बर्खास्त कर दिया. ऐसा कहा जा रहा था कि ये दोनों नेता अन्य दलों के संपर्क में थे. नसीमुद्दीन सिद्दीकी, ब्रजेश पाठक और स्वामी प्रसाद मौर्य के पार्टी से बाहर होने के बाद अब मिश्रा बीएसपी में मायावती के बाद प्रभाव के मामले में सबसे बड़े नेता बन गए हैं. उन्होंने कभी चुनाव नहीं लड़ा, लेकिन बीएसपी में बेहद ताकतवर बने हुए हैं.
अगर 11 विधायकों में एक और विधायक मिल जाता है, तो वे अपनी अलग पार्टी बना सकते हैं और दलबदल विरोधी कानून को चकमा दे सकते हैं. हालांकि, यह मुश्किल लगता है, क्योंकि बीएसपी के पूर्व राज्य प्रमुख और बर्खास्त विधायक राम अचल राजभर ने अभी भी मायावती पर विश्वास जताया है. राजभर ने कहा है कि वह कम से कम एक महीने तक इंतजार करेंगे, शायद इस दौरान मायावती का मन बदल जाए. कुछ अन्य बर्खास्त विधायकों के बारे में कहा जाता है कि वे बीजेपी के संपर्क में हैं. इसलिए अलग पार्टी बनाने में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है. वहीं, इनके बीच बीएसपी के वरिष्ठ नेता लालजी वर्मा फिलहाल चुप्पी साधे हुए हैं.