असम के नए मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा कभी कॉन्ग्रेस में थे, लेकिन 2015 में उनके भाजपा में शामिल होने के साथ ही पूरे उत्तर-पूर्व की राजनीतिक तस्वीर बदल गई और कॉन्ग्रेस वहाँ के सभी राज्यों से साफ़ हो गई। अब स्थिति ये है कि असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, नागालैंड, मेघालय, त्रिपुरा, मिजोरम और सिक्किम – आठों राज्यों में भाजपा गठबंधन की सरकार है। अब हिमंत बिस्वा सरमा ने एक किस्सा सुनाया है कि कैसे उनका कॉन्ग्रेस से मोहभंग हुआ।
उन्होंने बताया है कि कब उन्हें एहसास हुआ कि बस अब बहुत हो गया, वो ‘इस आदमी (राहुल गाँधी)’ के साथ काम नहीं कर सकते। इसके लिए उन्होंने एक बैठक का किस्सा सुनाया। उन्होंने राहुल गाँधी को धन्यवाद देते हुए कहा कि उनके कारण ही वो कॉन्ग्रेस से निकले, इसीलिए आज वो मुख्यमंत्री हैं और उन्हें राज्य की सेवा का अवसर मिला है। उन्होंने कहा कि अगर राहुल गाँधी ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया होता तो शायद ये संभव नहीं था।
असम के मुख्यमंत्री ने ‘इंडियन एक्सप्रेस’ के कार्यक्रम ‘एक्सप्रेस अड्डा’ में उस बैठक के बारे में बात की। उन्होंने कहा कि इस बैठक के बारे में बात करते हुए उनसे ज्यादा खुश व्यक्ति कोई नहीं हो सकता है। उन्होंने कहा कि वो बैठक कहीं अकेले में नहीं हुई थी, बल्कि उससे पहले सोनिया और राहुल गाँधी से उनकी कई बार बातचीत हुई थी। गुलाम नबी आज़ाद और मल्लिकार्जुन खड़गे जैसे नेता भी इस बातचीत का हिस्सा रहे थे।
52 वर्षीय हिमंत बिस्वा सरमा ने बताया कि कॉन्ग्रेस के साथ मनमुटाव और बातचीत का प्रकरण करीब एक वर्ष तक चला, जिसके बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया और सोनिया गाँधी से मिलने गए। सोनिया गाँधी ने उन्हें अपने बेटे राहुल से मिलने की सलाह दी। उन्होंने बताया कि राहुल गाँधी के साथ उनकी वो बैठक काफी बुरी रही थी, लेकिन उन्होंने इन चीजों को कभी सार्वजनिक नहीं किया और खुद तक ही रखा।
बकौल हिमंत बिस्वा सरमा, जब भी वो राहुल गाँधी के सामने कोई मुद्दा उठा रहे थे या अपनी बात रख रहे थे, तो वो ‘तो क्या? (So What?)’ कह कर उसका जवाब दे रहे थे। उन्होंने याद करते हुए बताया कि 20 मिनट की इस बैठक में उन्हें कम से कम 50 बार ‘So What’ सुनने को मिला। जब भी हिमंत कुछ कहना चाहते थे, यही जवाब मिलता। असम सीएम ने इसे ‘सामंती संस्कृति’ करार दिया। लेकिन, जिस बैठक की यहाँ बात हो रही है, वो ये बैठक नहीं है।
दरअसल, राजस्थान विधानसभा के स्पीकर सीपी जोशी ने हिमंत बिस्वा सरमा और कॉन्ग्रेस आलाकमान के बीच सुलह कराने के लिए एक फॉर्मूला तैयार किया और फिर समाधान के उद्देश्य से सरमा अन्य नेताओं के साथ उनसे मिलने पहुँचे। उस बैठक में असम के तत्कालीन वयोवृद्ध मुख्यमंत्री तरुण गोगोई और असम में कॉन्ग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अंजन दत्ता भी मौजूद थे। बताते चलें कि अब ये दोनों ही नेता दिवंगत हो चुके हैं।
उस दौरान असम के आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा को हराने पर चर्चा हुई। हिमंत बिस्वा सरमा ने बताया कि उन्होंने सकारात्मक रूप से इस बैठक की शुरुआत की थी और कॉन्ग्रेस पार्टी के हित की बातें कर रहे थे। लेकिन, उन्होंने बताया कि पूरी बातचीत के दौरान राहुल गाँधी बैठक में कोई रुचि ही नहीं दिखा रहे थे और अपने कुत्ते के साथ खेल रहे थे। हिमंत बिस्वा सरमा ने बताया कि उन्हें बाद में पता चला कि उसका नाम ‘पीडी’ है।
2016 के विधानसभा चुनाव में कॉन्ग्रेस को असम की सत्ता से उखाड़ फेंकने में बड़ी भूमिका निभाने वाले हिमंत बिस्वा सरमा ने बताया, “बैठक के दौरान वहाँ उपस्थित नेताओं के लिए चाय-कॉफी लाई गई। राहुल गाँधी के कुत्ते ने टेबल के पास जाकर उस पर रखी प्लेट से एक बिस्किट निकाल लिया और खाने लगा। फिर राहुल गाँधी मेरी तरफ देख कर मुस्कुराने लगे। मैं ये सोच रहा था कि वो भला मुझे देख कर क्यों ऐसा कर रहे हैं?”
दरअसल, हिमंत बिस्वा सरमा इस हाथ में चाय का कप लेकर इस बात का इंतजार कर रहे थे कि राहुल गाँधी कब कुत्ते द्वारा जूठी की गई उस प्लेट के बदले दूसरी प्लेट मँगवाएँगे। उन्होंने 5 मिनट तक इंतजार किया लेकिन फिर देखा कि तरुण गोगोई और सीपी जोशी जैसे वरिष्ठ नेता उसी प्लेट से बिस्किट उठा कर खा रहे हैं। सरमा ने कहा कि वो हमेशा राहुल गाँधी से मिलने तो नहीं जाते थे, लेकिन उस दिन उन्हें एहसास हुआ कि ये सामान्य है।
उन्हें ऐसा भान हुआ कि राहुल गाँधी की हर बैठक में ऐसा ही होता होगा। उन्होंने कहा, “उसी दिन मुझे इसका एहसास हुआ कि अब बहुत हुआ, अब मैं इस व्यक्ति के साथ नहीं रह सकता। लेकिन, मैं उनका धन्यवाद भी करता हूँ। मैं आज इस पद पर हूँ, तो इसका श्रेय उस बैठक को भी जाता है और इस तथ्य को भी कि राहुल गाँधी को मेरा कॉन्ग्रेस में होना पसंद ही नहीं था।” बता दें कि सरमा ने कॉन्ग्रेस में 22 साल बिताए थे।
LLB और Ph.D जैसी डिग्रियाँ हासिल कर के कभी गुवाहाटी हाईकोर्ट में बतौर अधिवक्ता प्रैक्टिस करने वाले हिमत बिस्वा सरमा 2001 में पहली बार जलुकबारी से विधायक बने थे और अगले ही साल उन्हें मंत्री पद सौंपा गया। तरुण गोगोई की सरकारों में उन्होंने कई बड़े मंत्रालय संभाले। उन्होंने जुलाई 2014 में ही कॉन्ग्रेस के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया था, लेकिन एक साल तक चली बातचीत की प्रक्रिया में अपने कटु अनुभव के बाद अगस्त 2015 में भाजपा में आ गए।