किसान आंदोलन के छह महीने पूरे होने के अवसर पर किसानों ने आज दिल्ली की अलग-अलग सीमाओं पर काला दिवस मनाया। बॉर्डर पर किसानों ने काले झंडे लहराए। काले झंडे लहराने की खबर पंजाब के गांवों से भी मिली है। इस बीच किसान नेता राकेश टिकैत ने दावा किया है कि आंदोलन कहीं से कमज़ोर नहीं पड़ा है। बस, वह टीवी चैनलों और अखबारों में दिखाई नहीं दे रहा क्योंकि ज्यादातर मीडिया वाले आंदोलन को कवर करने आते ही नहीं हैं।
एक न्यूज़ चैनल के साथ बातचीत में टिकैत ने कहा कि हालत यह है कि प्रेस का ज्यादातर हिस्सा तो भाजपा का प्रवक्ता बन गया है। सरकार सवाल नहीं पूछती, वह तो टीवी के एंकर पूछते हैं। किसान नेता ने अफसोस जताया कि इक्का-दुक्का चैनलों को छोड़ दें तो मीडिया के लोग अब चार महीने बाद दिखाई दे रहे हैं। उन्होंने यह मानने से इन्कार कर दिया कि आंदोलन बिखर गया है और किसानों का जमावड़ा बिखर गया है।
टिकैत ने कहा कि विरोधाभासी बात तो यह है कि आंदोलन को लेकर एक तरफ तो कहा जाता है कि किसान लौट रहे हैं। फिर, अगले ही पल यह कहा जाने लगता है कि इस विकट कोरोना काल के खतरों को बढ़ाते हुए लाखों किसानों का जमावड़ा कर लिया गया है। हमसे कहते हैं कि कोविड के संक्रमण का खतरा है। भीड़ कम करो।
इस स्थिति पर तंज करते हुए टिकैत ने कहा कि हमको मीडिया वाले और सरकार बता दे कि वे चाहते क्या हैं? बता दें कि हम भीड़ बढ़ाएं या घटा दें। हाल-फिलहाल हमें कोई खास काम नहीं है। गेहूं और दूसरी फसलें कट गई हैं और हम फ्री हो गए हैं।
क्या काला दिवस मनाने से भीड़ नहीं बढ़ रही? इस आरोप से कतई इन्कार करते हुए टिकैत ने कहा कि काला दिवस मनाने से भीड़ नहीं बढ़ेगी। जो यहां मौजूद हैं, वे यहीं पर काले झंडे लहराएंगे और जो किसान गांव में हैं वे यही काम अपने गांवों में रह कर करेंगे।