राजेश श्रीवास्तव
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पूरे प्रदेश में आंशिक कोरोना कफ्र्यू शुरू कर दिया। कागजों पर संक्रमितों की संख्या घटी। यह बात दूसरी है कि गांवों में संक्रमण नहीं थमा है। अकेले यूपी के बिजनौर में ही सवा महीने में 35 लोगों की मौत हो गयी। मुख्यमंत्री ने अधिकारियों के साथ यूपी मथने का कार्यक्रम शुरू कर दिया है। पंचायत चुनाव के बाद आये परिणामों ने मुख्यमंत्रीको इस कदम के लिए मजबूर किया कि कोरोना से यूपी में दुर्दशा के बीच उनके पास यह अंतिम वर्ष भी है। उन्हें 2०22 में यूपी की जनता के बीच महापरीक्षा भी देनी है। इन्हीं सब के बीच उनके अपने ही उनके लिये मुसीबत बन गये हैं । मुख्यमंत्री लगभग अपने पूरे कार्यकाल भर अधिकारियों पर ही भरोसा करते रहे। अपने मंत्रियों व विधायकों की नहीं सुनी। कुछ अधिकारियों पर उनका भरोसा उनकी निजी निष्ठा हो सकती है। लेकिन अब चर्चा होने लगी है कि यूपी में न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच तनाव पैदा होना शुरू हो गया है। और यह कहीं 2०22 में योगी की राह में मुसीबत न खड़ा करे । योगी आदित्यनाथ पिछले साल कोविड 19 (एधफ्द्बद 19) टीम 11 के साथ मीटिग कर रहे थे और तभी उनके पिता के निधन की खबर मिली। आंसू छलक आये। उसे पोंछ लिया – और फिर मीटिग जारी रही। योगी ने पिता की अंत्येष्टि में शामिल होने की जगह सरकारी जिम्मेदारियों के निर्वहन को तरजीह दी। खुद ही बताया कि बाद में परिवार से जाकर मिलेंगे – ये कदम वाकई काबिल-ए-तारीफ था और किसी ने कोई कसर बाकी भी नहीं रखी।
टीम 11 ने 2०2० में हालात को अच्छे से संभाला और प्रवासी मजदूरों को दूसरे राज्यों से बुलाकर घर तक पहुंचाने के साथ साथ कोटा में फंसे छात्रों को सुरक्षित उनके परिवार तक पहुंचाने का काम भी कोई मामूली प्रयास नहीं था। जाहिर है ये सारे काम योगी इसीलिये कर पाये क्योंकि टीम 11 मोर्चे पर डटी रही और कहीं आंच नहीं आने दिया। लेकिन इस बार साल भर बाद उसी टीम 11 पर सवाल उठने लगे। विरोधियों का तो काम ही होता है, बात बात पर पेंच फंसाना और आलोचना करना, लेकिन जब अपने राजनीतिक साथी ही शोर मचाने लगें। सवाल खड़े करने लगें – तो कोई भी दबाव में आ ही जाएगा और योगी के साथ भी बिलकुल यही हुआ । अपने आलोचकों के लगातार सवाल उठाने पर मुख्यमंत्री ने टीम 11 को छोटा कर टीम 9 कर दिया है – और अब उसमें सिर्फ नौकरशाह नहीं है, बल्कि, उनके दो कैबिनेट साथी भी शामिल कर दिये गये हैं। ताकि असंतोष को रोका जा सके। तो क्या अब योगी आदित्यनाथ ने आलोचकों की जबान बंद कर दी है? हो सकता है बीजेपी नेता योगी आदित्यनाथ के इस कदम से खामोश हो जायें । लेकिन वे लोग जिनकी बाकी बदइंतजामियों की वजह से सांसे ही खामोश हो जा रही हैं। कोरोना संकट में बीजेपी यूपी में अपने कई मंत्री और विधायकों को भी खो चुकी है। सब जानते हैं कि योगी आदित्यनाथ जहां संभव होता है ताकत के बूते आवाज दबा देते हैं, लेकिन जहां गुंजाइश नहीं होती वहां ऐसे ही कागजी खानापूर्ति जैसे उपायों से काम चलाते हैं। योगी आदित्यनाथ की प्रशासनिक क्षमता पर सवाल तो शुरू से ही उठाये जाते रहे हैं – कोरोना संकट ने तो बस पर्दा हटाया है।
मामला तब गंभीर होने लगा जब यूपी सरकार के ही कानून मंत्री ब्रजेश पाठक ने अधिकारियों को लिखी एक चिट्ठी में योगेश प्रवीण को एंबुलेंस न मिल पाने का जिक्र किया। ब्रजेश पाठक का कहना रहा कि वो खुद सीएमओ से बात कर एंबुलेंस मुहैया करने को कहे थे, लेकिन घंटों बीत गये। वक्त रहते इलाज न मिलने के कारण ही योगेश प्रवीण को बचाया नहीं जा सका। ब्रजेश पाठक ने चिट्ठी के जरिये अपनी ही सरकार में अधिकारियों की भूमिका पर सवाल खड़ा करके चेतावनी भी दे डाली कि लखनऊ की हालत कितनी खराब है और स्थिति पर जल्दी काबू नहीं पाया गया तो सब बेकाबू हो जाएगा। अपनी चिट्ठी में ब्रजेश पाठक ने लिखा कि अस्पतालों में बेड नहीं हैं, एंबुलेंस समय पर नहीं मिल पा रही है और न ही मरीज को इलाज मिल पा रहा है। पाठक की ही तरह मोहनलालगंज से सांसद कौशल किशोर, मेरठ के सांसद राजेंद्र अग्रवाल, बीजेपी विधायक दीनानाथ भास्कर, सुरेश भराला ने भी प्रदेश की स्वास्थ्य सुविधाओं की बदहाली पर सवाल उठाये थे। कौशल किशोर ने तो हालात नहीं सुधरने पर धरना प्रदर्शन करने तक की बात कर डाले थे । बरेली के नवाबगंज से विधायक केसर सिह गंगवार को भी जब लगा कि यूपी में तो मदद मिलने से रही तब केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन को पत्र लिख कर अपने लिए दिल्ली के मैक्स हॉस्पिटल में बेड दिलाने की मांग की – जैसे तैसे नोएडा के एक अस्पताल में उनके लिए बेड का इंतजाम तो हुआ लेकिन जान नहीं बचायी जा सकी। यूपी में अब तक तीन बीजेपी विधायक कोरोना वायरस के शिकार हो चुके हैं. पिता की मौत के बाद केसर सिह के बेटे की टिप्पणी काफी चर्चित रही, ‘धन्य है यूपी सरकार, धन्य हैं मोदी जी’। नयी टीम 9 का गठन करके मुख्यमंत्री उस तोहमत से तो बच जा रहे हैं कि वो सब कुछ नौकरशाहों के भरोसे कर रहे हैं। नयी व्यवस्था में सुरेश खन्ना और जय प्रताप टीम का हिस्सा हैं। लेकिन अभी भी मुख्यमंत्री सबके निशाने पर हैं। विपक्षी तो ठीक लेकिन अपनों का विरोध का उन्हें स्थायी हल निकालना पड़ेगा। क्योंकि 2०22 करीब है।