राजेश श्रीवास्तव
इन दिनों आपने देखा होगा कि भारत में सुप्रीम कोर्ट, लगभग सभी हाईकोर्ट, कोरोना पर गठित टास्क फोर्स, आस्ट्रेलिया, अमेरिका, फ्रांस, जापान और अन्य कई देश जहां भारत में संपूर्ण लाकडाउन की मांग कर रहे हैं लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लॉक डाउन को अंतिम विकल्प मान कर टाल रहे हैं और राज्यों को भी निर्देश दे रहे हैं कि किसी भी पूरे शहर को लॉक करने से बचें। बीते कोरोना काल में प्रधानमंत्री ने नारा दिया था कि जान भी जहान भी। लेकिन इस बार जब देश में अब हहर रोज तकरीबन चार लाख से अधिक नये कोरोना संक्रमित मिल रहे हैं। अब तक करीब सवा दो करोड़ तो कोरोना संक्रमित मौजूद हैं और मरने वालों का आंकड़ा अब चार हजार की संख्या को पार कर चुका है। हमारे पास न संसाधन हैं और न उपकरण । हम दुनिया की ओर मुंह ताक रहे हैं। देश में बीते सात सालों में एक भी आक्सीजन संयंत्र नहीं लगाया गया। यही नहीं उत्तर प्रदेश ही नहीं देश में भी बीते कोरोना काल के बाद से एक साल की अवधि बीत जाने के बाद भी किसी नये अस्पताल को खड़ा करने की कोशिश भी नहीं हुई। यही नहीं, किसी अस्पताल में इस मामले में काम नहीं किये गये। अब जब पूरे प्रदेश और देश में कोरोना ने कहर बरपाना शुरू कर दिया तब प्रयास शुरू हुए हैं।
इस बार जान और जहान दोनों नजरिए से भारत कठिन चक्रव्यूह में फंस चुका है। फिर भी मोदीजी तमाम दबावों और सुझावों के बावजूद लॉकडाउन की घोषणा नहीं कर रहे हैं। क्योंकि वे जानते हैं कि सरकार की तैयारी ऐसी नहीं है कि मध्यम वर्गीय लोगों को आर्थिक सुरक्षा देकर, उन्हें घर पर रहने को कह सके। बल्कि ये कहना उचित होगा कि सरकार किसी भी मोर्चे पर तैयार नहीं है। बीमारी के बीच स्वास्थ्य सुविधाओं और रोकथाम के उपायों का आलम तो देश देख ही रहा है। महंगाई और बेरोजगारी जैसे मोर्चों पर भी देश की हालत खराब है। कोरोना की दूसरी लहर को अभी कुछ ही वक्त हुआ है और भारतीय अर्थव्यवस्था के बुरे दिन अभी से नजर आने लगे हैं। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक ने अभी से भारत को 1.25 अरब डॉलर के नुकसान का अंदेशा जताया है। देश का उत्पादन और सेवा क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हुआ है। सेंटर फॉर मॉनिटरिग इंडियन इकानॉमी यानी सीएमआईई के मुताबिक कई राज्यों में लॉकडाउन और अन्य पाबंदियों के चलते बेरोजगारी दर 8 प्रतिशत पर पहुंच गई है। जो चार महीने में सबसे अधिक है।
अप्रैल महीने में ही 75 लाख नौकरियां चली गई हैं। महंगाई की मार बीमारी और बेरोजगारी के दर्द को और बढ़ा रही है। दवाओं से लेकर खाद्यान्न तक हरेक चीज महंगी हो गई है। और सरकार ने इस ओर से बिल्कुल चुप्पी साध रखी है। बल्कि विधानसभा चुनाव खत्म होते ही फिर से पेट्रोल-डीजल के दाम जिस तरह बढ़ने लगे हैं, उससे जाहिर होता है कि सरकार जनता की ओर से बिल्कुल उदासीन है। उसे कोई फर्क नहीं पड़ता कि देश में दूध, मांस-मछली, सब्जी-फल, दालें, अनाज सब की कीमतें देखते-देखते दोगुनी कैसे हो गईं। कोरोना काल में जब लोग किसी तरह दो वक्त की रोजी का जुगाड़ कर रहे हैं, उस कालखंड में बढ़ती महंगाई कोढ़ में खाज का काम कर रही है।
लोगों के पास आय के जरिए खत्म होते जा रहे हैं और महंगाई बढ़ती जा रही है। प्रधानमंत्री मोदी के पास यह कहने की सुविधा है कि वे झोला उठाकर चले जाएंगे, लेकिन आम आदमी अपनी जिम्मेदारियों को छोड़कर न घर छोड़ सकता है, न हिमालय जाकर ध्यान लगा सकता है, न झोला उठाकर कहीं भी जा सकता है। उसे इन संकटों के बीच ही जीने की राह तलाशनी है। सरकार इस तलाश में उसकी मदद कर सकती है।
जैसे राहत पैकेज का ऐलान, नए रोजगारों का सृजन, कीमतों को काबू में करने के उपाय इन सब पर अगर काम किया जाए, तो इस घने संकट में तिनके बराबर राहत मिल सकती है। लेकिन मोदी सरकार आम जनता को यह तिनका भी देने तैयार नहीं है। इसलिए ऐसे वक्त में तेल की कीमतों में इजाफा कर आम आदमी की कठिनाई बढ़ा रही है। लेकिन जिस तरह की स्थितियां हो रही हैं उससे यह तो तय है कि देश संपूर्ण लॉक डाउन की ओर बढ़ रहा है। आज नहीं तो कल इसका ऐलान करना ही होगा। क्योंकि सरकार जानती है कि आंकड़े कम नहीं हो रहे। अपना नाम के खुलासा न करने की शर्त पर लखनऊ के एक बड़े डाक्टर बताते हैं कि जितने मरीज सरकार दिखा रही है आप उसके पांच गुना मानिये। आज भी जांच हो जाये तो उत्तर प्रदेश में ही तकरीबन डेढ़ लाख मरीज रोज निकलेंगे। उन्होंने यह भी माना कि कोरोना से ही हर रोज उप्र में तकरीबन डेढ़-दो हजार मौते हो रही हैं लेकिन मृतकों के परिजनों को ही नहीं पता क्योंकि उनकी जांच ही नहीं हो रही है। ऐसे में सरकार की ओर देश और प्रदेश ताक रहा है लेकिन उनके पास भी कोई विकल्प नहीं है, सिवाय इसके कि वह भी प्रार्थना कर रहे कि किसी तरह कोरोना खत्म हो जाये।