अनुपम कुमार सिंह
दिल्ली में हुए हिन्दू-विरोधी दंगों को 1 वर्ष पूरे हो चुके हैं और साथ ही इस दंगे में मारे गए हिन्दुओं के परिवारों के लिए न्याय का इंतजार भी बढ़ता जा रहा है। इस मामले में ताहिर हुसैन समेत सभी आरोपितों के खिलाफ कोर्ट में सुनवाई चल रही है। दिल्ली पुलिस चार्जशीट पर चार्जशीट पेश कर रही है, लेकिन दिल्ली के हिन्दुओं के ऊपर अब भी डर का साया मँडरा रहा है। आंदोलनों से जूझती दिल्ली में कब दंगे हो जाए, कहा नहीं जा सकता।
गणतंत्र दिवस के दिन जिस तरह से किसान आंदोलन के नाम पर हिंसा की गई, उससे ये डर बार-बार सामने आ जाता है। तब मुस्लिमों को बरगलाया गया था, अब सिखों के साथ यही किया जा रहा है। अंत में या तो किसी अपने को पराया कर दिया जाता है, या किसी पराए पर दोषारोपण हो जाता है। जैसे, दिल्ली दंगों में कह दिया गया कि ये कपिल मिश्रा के कारण हुआ। जबकि लाल किला हिंसा के लिए उन्होंने कह दिया कि दीप सिद्धू उनके गिरोह का नहीं है।
दिल्ली दंगों की भी बात करें तो 4 मुख्य चरणों में इसकी साजिश रची गई थी। पहले चरण में PFI सहित अन्य इस्लामी संगठनों ने विश्वविद्यालयों में CAA के खिलाफ प्रदर्शन किया और छात्रों को भड़काया। दूसरे फेज में शाहीन बाग़ जैसे धरने, जिसकी चर्चा हम आगे करेंगे। तीसरे चरण में हिन्दू-विरोधी प्रतीकों और गतिविधियों की बाढ़ आ गई। चौथे चरण में वारिस पठान जैसों के घृणास्पद बयानों के बाद हिन्दुओं पर हमले शुरू हो गए।
मुस्लिम महिलाओं ने भी अपनी छतों से ईंट-पत्थर फेंके थे। मुस्लिम परिवार के लोग अपने छात्रों को पहले ही स्कूलों से ले गए थे। फैसल फारूक का स्कूल दंगाइयों का अड्डा बना। ताहिर हुसैन की फैक्ट्री दंगाइयों का बसेरा बनी। हिन्दुओं की दुकानों को चुन-चुन कर जलाया गया। पेट्रोल बम और पत्थरों का इस्तेमाल हुआ – कश्मीर की तर्ज पर। फिर मीडिया ये दिखाने में लग गई कि कैसे मुस्लिमों ने हिन्दुओं को बचाया। लेकिन, किससे?
दिल्ली हिंसा: विकिपीडिया और कपिल मिश्रा
किसी भी चीज को लेकर अंतरराष्ट्रीय प्रोपेगंडा फैलाने का एक आसान सा तरीका है कि उसे विकिपीडिया पर उसी नैरेटिव के साथ डाल दिया जाए, या फिर किसी विदेशी खबरिया पोर्टल पर उसे छपवा दिया जाए। दिल्ली दंगा के विकिपीडिया पेज पर जब आप जाएँगे तो वहाँ लिखा हुआ है कि इस दंगे में मुख्यतः मुस्लिमों को निशाना बनाया गया और भाजपा नेता कपिल मिश्रा के ‘भड़काऊ बयान’ के कारण ये दंगा हुआ।
उस भड़काऊ बयान का जिक्र भी किया गया है – “हम सड़कों पर आएँगे।” साथ ही इसे धमकी भी बताया गया है। अब आप देखिए, जो सैकड़ों लोग 100 दिनों से दिल्ली की कई मुख्य सड़कों पर जाम करके बैठे थे, उन्होंने दंगा नहीं किया। लेकिन, किसी व्यक्ति ने सड़क पर बैठने की बात कर दी तो वो दंगाई हो गया? ये कैसा समीकरण है? दरअसल, यही वामपंथी नैरेटिव है, जिसके तहत इस दंगे में हिन्दू पीड़ितों का दर्द छिपा लिया गया।
Truth of Delhi Riots
From 23rd February on @justvoot#AntiCaaRiots2020 pic.twitter.com/xl7EmZJ9Jq— Kapil Mishra (@KapilMishra_IND) February 21, 2021
कपिल मिश्रा के इस बयान से पहले ही दिल्ली में दंगा शुरू हो गया था, ये एक व्यक्ति के फेसबुक लाइव से भी पता चलता है – जिस बारे में तब हमने भी आपको बताया था। उक्त व्यक्ति का ये वीडियो कपिल मिश्रा के बयान से आधे घंटे पहले का ही था, जिसमें ईंट-पत्थर चलाते हुए लोगों की करतूतें कैद हैं। इसी तरह कई अन्य इलाकों में भी हालात बदतर होते चले गए। कहीं किसी हिन्दू की छत पर तो पेट्रोल बम नहीं मिला?
मामला कोर्ट में गया और वहाँ कपिल मिश्रा के साथ-साथ अनुराग ठाकुर जैसे नेताओं को भी घसीट लिया गया। उनका दोष इतना था कि उन्होंने भाषण दिया था। जो 3 महीने से अराजकता फैला रहे थे, उन्हें बचाने के लिए उनलोगों को निशाना बनाया गया – जो उन अराजकतावादियों का विरोध कर रहे थे। जबकि हमारे ग्राउंड रिपोर्ट में पता चला था कि कई इलाकों में मंदिरों तक को नहीं बख्शा गया।
याद कीजिए उन्हें, जो इस्लामी हिंसा की भेंट चढ़ गए
दिल्ली दंगों में इस्लामी कट्टरवादियों ने किस तरह से हिन्दुओं को बेरहमी से बेरहमी से मारा था, उसके बारे में जानने के लिए हमें 1 साल पीछे चलना पड़ेगा। तत्कालीन विंग कमांडर अभिनन्दन की तरह मूँछें रखने वाले हेड कॉन्स्टेबल रतन लाल को पीट-पीट कर मार डाला गया था। वो पहले हिन्दू थे, उन दंगों के दौरान जिनकी हत्या हुई। रतनलाल को कट्टरपंथी इस्लामिक भीड़ द्वारा उस समय बेरहमी से मारा गया था, जब वह चाँद बाग के वजीराबाद रोड पर अपनी ड्यूटी कर रहे थे।
शिव विहार में दिल्ली हिंदू विरोधी दंगे के दौरान शिव विहार में राहुल सोलंकी की हत्या मामले में मुस्तकीम उर्फ समीर सैफी अपना जुर्म कबूल कर चुका है। सैफी फरुखिया मस्जिद के पास हो रहे सीएए विरोध प्रदर्शनों में भी सक्रिय था। राहुल सोलंकी गाजियाबाद के एक निजी कॉलेज से एलएलबी कर रहे थे। वह दूध लेने के लिए अपने घर से निकले थे, तभी दंगाइयों ने उनके गले के पास दाहिने कंधे में गोली मार दी थी।
अंकित शर्मा की इतनी बेरहमी से हत्या की गई थी कि उनके शरीर पर जख्म के दर्जनों निशान थे और उन्हें कई बार चाकुओं से गोदा गया था। उन्हें घसीटते हुए ताहिर हुसैन (तब AAP के पार्षद) की इमारत में ले जाया गया और वहाँ कई लोगों ने मिल कर उनकी हत्या कर दी। आईबी में कार्यरत रहे अंकित शर्मा हत्याकांड में ताहिर के अलावा अनस, फिरोज, जावेद, गुलफाम, शोएब आलम, सलमान, नजीम, कासिम, समीर खान शामिल हैं।
26 फरवरी को खाना खाने के बाद घर से बाहर निकले आलोक तिवारी अपने घर दोबारा न लौट सके। उन्हें दंगाइयों ने पत्थर मारकर घायल किया और जीटीबी अस्पताल में उन्होंने अपनी आखिरी साँस ली। मुस्तफाबाद के रहने वाले हरि सिंह सोलंकी ने अपना बेटा रोहित सोलंकी खो दिया। रोहित की शादी अप्रैल 2020 में होने वाली थी। दिलबर सिंह नेगी को दंगाइयों की भीड़ ने तलवार से काटने के बाद जलते हुए घर में आग के हवाले कर दिया था। बाद में जलकर राख हुए दिलबर नेगी की विडियो भी वायरल हुई थी।
इसी तरह विनोद कुमार अल्लाह-हू-अकबर और नारा ए तकबीर का एलान करती भीड़ के शिकार हुए। गोकुलपुरी में 26 फरवरी को 15 साल का नितिन अपने घर से चाउमिन लेने निकला था। उसे किसी चीज से मारा गया और चोट इतनी गहरी थी कि अस्पताल में इलाज के दौरान मौत हो गई। 19 साल के विवेक पर हमला किया और उसके सिर में ड्रिल मशीन से छेद कर दी गई थी। दलित दिनेश बच्चों के लिए दूध लेने निकले थे, लेकिन उन्हें सिर में गोली मार दी गई।
शाहीन बाग़ में पनपा था दिल्ली दंगों का बीज
शाहीन बाग़ आंदोलन की वजह से आम लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ा था। 100 दिनों से भी अधिक समय तक चले इस उपद्रव के दौरान उस सड़क को इतने ही दिनों तक रोक कर रखा गया, जहाँ से प्रतिदिन 1 लाख से भी ज्यादा गाड़ियाँ गुजरती थीं। बच्चों को स्कूल के लिए देर होती थी, मरीज सही समय पर अस्पताल न पहुँचने के कारण मरते थे और कामकाजी लोगों को दूसरे रास्तों से दफ्तर जाना पड़ता था।
फ़रवरी 2020 आते-आते छात्रों की बोर्ड परीक्षाएँ भी शुरू हो गई थीं। कई बार सुप्रीम कोर्ट में सड़क खाली कराने की याचिका डाली गई, लेकिन शुरू में इसे पुलिस का मामला बता कर ख़ारिज कर दिया गया। कोरोना वायरस के संक्रमण और लॉकडाउन के दौरान महामारी एक्ट का खुलेआम उल्लंघन हुआ। अंत में दिल्ली पुलिस ने उन्हें वहाँ से हटाया। दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा की हार के बाद उनका उद्देश्य भी सफल हो ही गया था।
लेकिन, क्या आपने आज तक किसी वामपंथी मीडिया संस्थान को ये पूछते देखा है कि शाहीन बाग़ में आम जनमानस को क्यों परेशान किया गया? विकिपीडिया पर लिखा गया है कि ये CAA विरोधी आंदोलन ‘महिला उत्पीड़न विरोधी, लोकतंत्र समर्थक, तानाशाही विरोधी और गरीबी-बेरोजगार विरोधी’ – सबका आंदोलन बन गया। क्या ये समस्याएँ मोदी सरकार लेकर आई? ये तो पहले से थीं, जिन्हें मोदी सरकार ने कम किया।
जिनके नेताओं ने किया दंगा, उनसे नहीं पूछे गए सवाल
कपिल मिश्रा का नाम चिल्लाने वालों ने कभी भी आम आदमी पार्टी से सवाल नहीं पूछा, जिसके एक तत्कालीन पार्षद को ही दंगा का मुख्य साजिशकर्ता पाया गया। किसी ने इशरत जहाँ से सवाल नहीं पूछा, जो कॉन्ग्रेस की पार्षद हुआ करती थीं। कॉन्ग्रेस और AAP की जगह उलटा भाजपा को निशाना बनाया गया। विभिन्न स्रोतों पर आपको इन दोनों दलों के नेताओं के बयानों के हवाले से बताया जाएगा कि कैसे दोषी भाजपा नेता ही थे।
The wounds of Delhi Riots still haunting; heart-wrenching fact-finding report points fingers at AAP, Congress & PFI conspiracy #AntiCaaRiots2020 #DelhiRiots2020
https://t.co/YeRIPXL57I via @eOrganiser— Organiser Weekly (@eOrganiser) February 22, 2021
दिल्ली को अब भी सावधान रहने की ज़रूरत है। यहाँ का मुख्यमंत्री एक तरह से खुलेआम लोगों से कहता है कि यहाँ आकर आंदोलन करो। उपद्रवियों को दाना-पानी मुहैया कराया जाता है। चूँकि दिल्ली पुलिस गृह मंत्रालय के अधीन है और भाजपा के अध्यक्ष रहे अमित शाह केंद्रीय गृहमंत्री हैं, इसीलिए सारा नाटक यहीं चलता है। जो CAA विरोधी थे, वही दिल्ली के दंगाई हैं और अब वही कृषि कानूनों के नाम पर हिंसा का खेल खेल रहे।
सभार …………………………………..