नई दिल्ली। गणतंत्र दिवस (26 जनवरी 2021) पर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में ‘किसान’ प्रदर्शनकारियों का उपद्रव पूरे देश को शर्मसार करने वाला था। लाल किले में तिरंगे के अपमान से लेकर दिल्ली की सड़कों पर पुलिसकर्मियों पर हमला, समेत तमाम घटनाएँ हैं, जिसे देख हर कोई इस प्रदर्शन की मंशा पर सवाल उठा रहा है। ऐसे में प्रियंका गाँधी और उनके भाई राहुल गाँधी कथित किसानों के समर्थन में आए हैं।
26 जनवरी को हुई हिंसा की एक भी बार निंदा न करने वाली प्रियंका गाँधी ने हालिया ट्वीट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा है। इस ट्वीट में प्रियंका लिखती हैं, “किसान का भरोसा देश की पूँजी है। इनके भरोसे को तोड़ना अपराध है। इनकी आवाज न सुनना पाप है। इनको डराना धमकाना महापाप है। किसान पर हमला, देश पर हमला है। प्रधानमंत्री जी, देश को कमजोर मत कीजिए।”
किसान का भरोसा देश की पूँजी है।
इनके भरोसे को तोड़ना अपराध है।
इनकी आवाज न सुनना पाप है।
इनको डराना धमकाना महापाप है।किसान पर हमला, देश पर हमला है।
प्रधानमंत्री जी, देश को कमजोर मत कीजिए।— Priyanka Gandhi Vadra (@priyankagandhi) January 29, 2021
वहीं, राहुल गाँधी ने पूछा है कि आखिर लोगों को लाल किले में जाने की अनुमति कैसे मिली? उन्हें रोका क्यों नहीं गया? पूछिए गृहमंत्री से कि क्या उद्देश्य था कि लोगों को परिसर में जाने दिया गया। पार्टी के पूर्व अध्यक्ष का कहना है, “सरकार को किसानों से बात करके समस्या के हल तक पहुँचना चाहिए। हल सिर्फ ये है कि कानून वापस लिया जाए और उसे कूड़ेदान में डाला जाए। सरकार सोचती होगी कि किसान घर चले जाएँगे। मेरी चिंता है कि ये स्थिति बढ़ेगी। लेकिन हमें वह सब नहीं चाहिए। हमें हल चाहिए।”
Govt must talk to farmers & arrive at a solution. The only solution is to repeal laws & put them in a wastebasket. Govt must not think farmers will go home. My concern is that this situation will spread. But, we don’t need that, we need a solution: Rahul Gandhi, Congress leader https://t.co/4IkVCXY4fW
— ANI (@ANI) January 29, 2021
अब ‘किसानों’ के हिंसक रूप को देखने के बावजूद उनके समर्थन में आए प्रियंका-राहुल को याद दिलाना जरूरी है कि आज जो वह दोनों किसान समुदाय के हितैषी बनकर कथित किसानों की स्थिति के लिए मोदी सरकार को कोस रहे है, उनके खुद के पिता राजीव गाँधी का रवैया उन असली किसानों के प्रति कैसा था जो न सड़कों पर दंगे कर रहे थे, न खालिस्तानियों का समर्थन।
लगभग 30 साल पहले की बात है। 1988 के अक्टूबर माह में तत्कालीन बीकेयू नेता व राकेश टिकैत के पिता महेंद्र सिंह टिकैत ने किसानों के अधिकार के लिए एक प्रदर्शन किया था, जिसे राजीव गाँधी की सरकार ने दबाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया था।
महेंद्र सिंह टिकैत के निर्देशों पर करीब 50 हजार किसानों ने उस समय दिल्ली के उत्तरी और दक्षिणी ब्लॉक के पास बने बोट क्लब और उसके लॉन का घेराव किया था। इस आंदोलन के पीछे मुख्य वजह कृषि संकट, देरी से हो रहे भुगतान, नौकरशाही के जटिल नियम और किसानों के कष्टों के प्रति सरकार की उदासीनता थी।
शुरुआत में तय किया गया कि यह आंदोलन 1 दिन का होगा। मगर देखते ही देखते अवधि एक हफ्ता पार कर गई। धीरे-धीरे सबका ध्यान इस ओर आकर्षित हुआ। उधर, कुछ दिन में शीतकालीन संसद सत्र शुरू होने वाला था। वीपी सिंह के इस्तीफे और बोफोर्स घोटाले के कारण पहले ही राजीव गाँधी सरकार सबके निशाने पर थी।
ऐसे में किसान आंदोलन की भड़की आग को शांत करने के लिए राजीव सरकार ने सबसे पहले किसानों के प्रदर्शन क्षेत्र में पानी की सप्लाई बंद की। फिर खाने की सप्लाई को रोक दिया गया। जब किसान इतने पर भी नहीं हटे तो किसान और उनके मवेशियों को दुखी करने के लिए रात-रात गाने बजाए गए। फिर भी किसान माँग पर अड़े रहे तब राजीव सरकार ने कथित रूप से लाठीचार्ज किया और महेंद्र सिंह टिकैत की अगुवाई वाली किसानों की रैली को उसी समय खदेड़ दिया गया। मालूम हो कि यह वही घटना है जब एक शांतिपूर्ण प्रदर्शन में चली गोलियों में दो किसानों की मौत हो गई थी।
आज प्रियंका गाँधी और राहुल गाँधी उन किसानों के लिए सरकार से सवाल कर रहे हैं जिनकी हकीकत और मंशा दोनों जगजाहिर हो गई है। दूसरी ओर स्थानीय भी माँग कर रहे हैं कि प्रदर्शनस्थल खाली करवाए जाएँ और सभी प्रदर्शनकारी अपने-अपने घर लौटें। मगर, इन सब बातों को नजरअंदाज करते हुए प्रियंका गाँधी और राहुल गाँधी दोनों कथित किसानों के कुकर्मों पर लीपापोती करने में जुटे हैं। वो भी ये जानते हुए सरकार द्वारा लाए गए तीनों नए कृषि कानून केवल किसानों के हित में हैं।
अब राहुल गाँधी कह रहे हैं कि सरकार को किसानों से बातचीत करनी चाहिए जबकि सच्चाई यह है कि 11 दौर की बातचीत बेनतीजा सिर्फ़ किसानों की जिद्द के कारण हुई है, जिससे साफ पता चलता है कि उनकी इच्छा सिर्फ़ कृषि कानून पर चर्चा करने की नहीं है।
बता दें कि कॉन्ग्रेस का किसानों के प्रति बर्बर रवैया सिर्फ़ 1988 में सामने नहीं आया था, बल्कि साल 1997 में भी इसकी पोल खुली थी। तब, मध्यप्रदेश के मुलतई में कॉन्ग्रेस काल में एक और कार्रवाई किसानों के ख़िलाफ़ हुई थी। वहाँ बल का प्रयोग करके लगभग किसान प्रदर्शन पर ओपन फायरिंग करवा दी गई थी। घटना में आधिकारिक तौर पर 19 किसानों की जान गई थी। वहीं 150 से ज्यादा घायल हुए थे। वहीं एक्टिविस्ट कहते हैं कि इस घटना में 24 किसान मरे थे। भाजपा उस समय विपक्ष में थी और उसने पूरी घटना को जलियाँवाला बाग नरसंहार के समकक्ष बताया था।