रचना कुमारी (सभार)
आतंकी संगठन आईएसआईएसआई के बारे में जब हम पढ़ते हैं कि वह अल्पसंख्यक यजीदी महिलाओं को यौन गुलाम बना रहा है तो हमें आश्चर्य होता है, लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि दिल्ली सल्तनत के सुल्तानों व मुगल बादशाहों ने भी बहुसंख्यक हिंदू महिलाओं को बड़े पैमाने पर यौन दासी यानी सेक्स स्लेव्स बनाया था।
इसमें मुगल बादशाह शाहजहाँ का हरम सबसे अधिक बदनाम रहा, जिसके कारण दिल्ली का रेड लाइट एरिया जीबी रोड बसा। शाहजहाँ के हरम में 8000 रखैलें थीं जो उसे उसके अब्बू जहाँगीर से विरासत में मिली थी। उसने अब्बू की सम्पत्ति को और बढ़ाया। उसने हरम की महिलाओं की व्यापक छँटनी की तथा बुजुर्ग महिलाओं को भगा कर अन्य हिन्दू परिवारों से जबरन महिलाएँ लाकर हरम को बढ़ाता ही रहा।
कहते हैं कि उन्हीं भगाई गई महिलाओं से दिल्ली का रेडलाइट एरिया जीबी रोड गुलजार हुआ था और वहाँ इस धंधे की शुरूआत हुई थी। जबरन अगवा की हुई हिन्दू महिलाओं की यौन-गुलामी और यौन व्यापार को शाहजहाँ प्रश्रय देता था और अक्सर अपने मंत्रियों और सम्बन्धियों को पुरस्कार स्वरूप अनेकों हिन्दू महिलाओं को उपहार में दिया करता था। यह शख्स यौनाचार के प्रति इतना आकर्षित और उत्साही था कि हिन्दू महिलाओं का मीना बाजार लगाया करता था, यहाँ तक कि अपने महल में भी।
सुप्रसिद्ध यूरोपीय यात्री फ्रांकोइस बर्नियर ने अपनी किताब travels in the mughal empire में इस विषय में टिप्पणी की थी कि महल में बार-बार लगने वाले मीना बाजार, जहाँ अगवा कर लाई हुई सैकड़ों हिन्दू महिलाओं का, क्रय-विक्रय हुआ करता था, राज्य द्वारा बड़ी संख्या में नाचने वाली लड़कियों की व्यवस्था और नपुसंक बनाए गए सैकड़ों लड़कों की हरमों में उपस्थिति, शाहजहाँ की अनंत वासना के समाधान के लिए ही थी।
शाहजहाँ को प्रेम की मिसाल के रूप पेश किया जाता रहा है और किया भी क्यों न जाए, आठ हजार औरतों को अपने हरम में रखने वाला अगर किसी एक में ज्यादा रुचि दिखाए तो वो उसका प्यार ही कहा जाएगा। आप यह जानकर हैरान हो जाएँगे कि मुमताज का नाम मुमताज महल था ही नहीं, बल्कि उसका असली नाम ‘अर्जुमंद-बानो-बेगम’ था और तो और जिस शाहजहाँ और मुमताज के प्यार की इतनी डींगे हाँकी जाती है वो शाहजहाँ की ना तो पहली पत्नी थी ना ही आखिरी ।
मुमताज शाहजहाँ की सात बीबियों में चौथी थी। इसका मतलब है कि शाहजहाँ ने मुमताज से पहले 3 शादियाँ कर रखी थी और मुमताज से शादी करने के बाद भी उसका मन नहीं भरा तथा उसके बाद भी उस ने 3 शादियाँ और की, यहाँ तक कि मुमताज के मरने के एक हफ्ते के अन्दर ही उसकी बहन फरजाना से शादी कर ली थी। जिसे उसने रखैल बना कर रखा था, जिससे शादी करने से पहले ही शाहजहाँ को एक बेटा भी था। अगर शाहजहाँ को मुमताज से इतना ही प्यार था तो मुमताज से शादी के बाद भी शाहजहाँ ने 3 और शादियाँ क्यों की?
शाहजहाँ की सातों बीबियों में सबसे सुन्दर मुमताज नहीं बल्कि इशरत बानो थी, जो कि उसकी पहली बीबी थी। शाहजहाँ से शादी करते समय मुमताज कोई कुँवारी लड़की नहीं थी बल्कि वो भी शादीशुदा थी और उसका शौहर शाहजहाँ की सेना में सूबेदार था जिसका नाम ‘शेर अफगान खान’ था। शाहजहाँ ने शेर अफगान खान की हत्या कर मुमताज से शादी की थी।
गौर करने लायक बात यह भी है कि 38 वर्षीय मुमताज की मौत कोई बीमारी या एक्सीडेंट से नहीं बल्कि चौदहवें बच्चे को जन्म देने के दौरान अत्यधिक कमजोरी के कारण हुई थी। यानी शाहजहाँ ने उसे बच्चे पैदा करने की मशीन ही नहीं बल्कि फैक्ट्री बनाकर मार डाला था। शाहजहाँ कामुकता के लिए इतना कुख्यात था कि कई इतिहासकारों ने उसे उसकी अपनी सगी बेटी जहाँआरा के साथ सम्भोग करने का दोषी तक कहा है।
शाहजहाँ और मुमताज महल की बड़ी बेटी जहाँआरा बिल्कुल अपनी माँ की तरह लगती थी इसीलिए मुमताज की मृत्यु के बाद उसकी याद में शाहजहाँ ने अपनी ही बेटी जहाँआरा को भोगना शुरू कर दिया था। जहाँआरा को शाहजहाँ इतना प्यार करता था कि उसने उसका निकाह तक होने न दिया। बाप-बेटी के इस प्यार को देखकर जब महल में चर्चा शुरू हुई, तो मुल्ला-मौलवियों की एक बैठक बुलाई गई और उन्होंने इस पाप को जायज ठहराने के लिए एक हदीस का उद्धरण दिया और कहा – “माली को अपने द्वारा लगाए पेड़ का फल खाने का हक है।”
इतना ही नहीं, जहाँआरा के किसी भी आशिक को वह उसके पास फटकने नहीं देता था। कहा जाता है कि एक बार जहाँआरा जब अपने एक आशिक के साथ इश्क लड़ा रही थी तो शाहजहाँ आ गया जिससे डरकर वह हरम के तंदूर में छिप गया, शाहजहाँ ने तंदूर में आग लगवा दी और उसे जिन्दा जला दिया।
दरअसल, अकबर ने यह नियम बना दिया था कि मुगलिया खानदान की बेटियों की शादी नहीं होगी। इतिहासकार इसके लिए कई कारण बताते हैं। इसका परिणाम यह होता था कि मुगल खानदान की लड़कियाँ अपनी जिस्मानी भूख मिटाने के लिए अवैध तरीके से दरबारी, नौकर के साथ-साथ, रिश्तेदार यहाँ तक की सगे सम्बन्धियों का भी सहारा लेती थी। कहा जाता है कि जहाँआरा अपने बाप के लिए लड़कियाँ भी फँसाकर लाती थी।
जहाँआरा की मदद से शाहजहाँ ने मुमताज के भाई शाइस्ता खान की बीबी से कई बार बलात्कार किया था। शाहजहाँ के राज ज्योतिषी की 13 वर्षीय ब्राह्मण लडकी को जहाँआरा ने अपने महल में बुलाकर धोखे से नशा देकर बाप के हवाले कर दिया था, जिससे शाहजहाँ ने अपनी उम्र के 58वें वर्ष में उस 13 वर्ष की ब्राह्मण कन्या से निकाह किया था। बाद में इसी ब्राह्मण कन्या ने शाहजहाँ के कैद होने के बाद औरंगजेब से बचने और एक बार फिर से हवस की सामग्री बनने से खुद को बचाने के लिए अपने ही हाथों अपने चेहरे पर तेजाब डाल लिया था।
The legacy of muslim rule in India के अनुसार शाहजहाँ शेखी मारा करता था कि वह तिमूर (तैमूरलंग) का वंशज है जो भारत में तलवार और अग्नि लाया था। उस उजबेकिस्तान के जंगली जानवर तैमूर से और उसकी हिन्दुओं के रक्तपात की उपलब्धि से वह इतना प्रभावित था कि उसने अपना नाम तैमूर द्वितीय रख लिया था।
बहुत प्रारम्भिक अवस्था से ही शाहजहाँ ने काफिरों (हिन्दुओं) के विरुद्ध युद्ध के लिए साहस व रुचि दिखाई थी। अलग-अलग इतिहासकारों ने लिखा था, “शहजादे के रूप में ही शाहजहाँ ने फतेहपुर सीकरी पर अधिकार कर लिया था और आगरा शहर में हिन्दुओं का भीषण नरसंहार किया था।” शाहजहाँ की सेना ने भयानक बर्बरता का परिचय दिया। हिन्दू नागरिकों को घोर यातनाओं द्वारा अपने संचित धन को दे देने के लिए विवश किया गया और अनेकों उच्च कुल की कुलीन हिन्दू महिलाओं का शील भंग किया गया।
1632 में कश्मीर से लौटते समय शाहजहाँ को बताया गया कि अनेकों मुस्लिम बनाई गई महिलाएँ ‘घर वापसी’ करते हुए फिर से हिन्दू हो गईं हैं और उन्होंने हिन्दू परिवारों में शादी कर ली है। शहंशाह के आदेश पर इन सभी हिन्दुओं को बन्दी बना लिया गया। उन सभी पर इतना आर्थिक दण्ड थोपा गया कि उनमें से कोई भुगतान नहीं कर सका, तब इस्लाम स्वीकार कर लेने और मृत्यु में से एक को चुन लेने का विकल्प दिया गया।
जिन्होनें धर्मान्तरण स्वीकार नहीं किया, उन सभी पुरूषों का सिर काट दिया गया। हजारों महिलाओं को जबरन मुसलमान बना लिया गया और उन्हें सिपहसालारों, अफसरों और शहंशाह के नजदीकी लोगों और रिश्तेदारों के हरम में भेज दिया गया।
हमारे वामपंथी इतिहासकारों ने शाहजहाँ को एक महान निर्माता के रूप में चित्रित किया है। किन्तु इस मुजाहिद ने अनेकों कला के प्रतीक सुन्दर हिन्दू मन्दिरों और अनेकों हिन्दू भवन निर्माण कला के केन्द्रों का बड़ी लगन और जोश से विध्वंस किया था।
शाहजहाँ के राज में इस्लाम का ही कानून था। या तो मुसलमान बन जाओ या मौत के घाट उतर जाओ। आगरा में एक दिन इसने 4,000 हिन्दुओं को मौत के घाट उतारा था। जवान लड़कियाँ इसके हरम भेज दी जाती थीं। शाहजहाँ के आते-आते मुगल शासन पुराने मुसलमानी ढर्रे पर चल पड़ा था।
इतिहासकार अब्दुल हमीद लाहौरी के ’बादशाहनामे’ के अनुसार शाहजहाँ के ध्यान में यह बात लाई गई कि पिछले शासन में बहुत से मूर्ति मंदिरों का निर्माण प्रारंभ किया गया था किन्तु कुफ्र के गढ़ बनारस में बहुत से मंदिरों का निर्माण पूरा नहीं हुआ था। काफिर उनको पूरा करना चाहते थे। मजहब के रक्षक बादशाह सलामत ने आदेश दिया कि बनारस और उसके पूरे साम्राज्य में तमाम नए मंदिर ध्वस्त कर दिए जाएँ। इलाहाबाद के सूबे से सूचना आई कि बनारस में 76 मंदिर गिरा दिए गए हैं। यह घटना 1633 की है। हिन्दू मंदिरों को अपवित्र करने और उन्हें ध्वस्त करने की प्रथा ने शाहजहाँ के काल में एक व्यवस्थित विकराल रूप धारण कर लिया था।
1634 में शाहजहाँ के सैनिकों ने बुन्देलखंड के राजा जुझारदेव की (जो जहाँगीर के कृपा पात्रों में था) रानियों, दो पुत्रों, एक पौत्र और एक भाई को पकड़कर शाहजहाँ के पास भेजा। शाहजहाँ ने दुर्गाभान और दुर्जनसाल नामक अवयस्क एक पुत्र और पौत्र को जबरन मुसलमान बनवाया। एक वयस्क पुत्र उदयभान और भाई श्यामदेव का, इस्लाम स्वीकार न करने के कारण वध करवा दिया। रानियों को हरम में भेज दिया गया।
गुलामी के लिए अथवा व्यभिचार के लिए इस मुस्लिम व्यवहार के विपरीत दुर्गादास राठौर ने औरंगजेब की पौत्री सफीयुतुन्निसा और पौत्र बुलन्द अख्तर को, जिन्हें औरंगजेब का पुत्र और शाहजहाँ का पौत्र शाहजादा अकबर उसके संरक्षण में छोड़ गया था, नियमानुसार इस्लाम की शिक्षा दिलाकर, सम्मानपूर्वक औरंगजेब को 13 वर्ष के बाद, जब वह जवान हो गए थे, वापस कर दिया। यह इस्लाम और हिन्दू धर्म की शिक्षा के कारण हुआ। यह दो ऐतिहासिक उदाहरण हिन्दू और मुसलमान मानसिकता के अंतर पर प्रकाश डालने के लिए पर्याप्त हैं।
शाहजहाँ की धार्मिक नीतियाँ लगातार विवाद में रहीं। हिंदू माता की कोख से जन्मी ये संतान इस्लाम को लेकर ज्यादा ही आग्रही था। उसने हिंदुओं की तीर्थयात्रा पर भारी कर लगाए। साथ ही कई ऐसे आदेश दिए, जो हिंदुओं को परेशान करने वाले थे।
1634 ई. में उन्होंने ही ये बात शुरू की कि अगर कोई हिंदू लड़की और मुस्लिम लड़का शादी करें तो ये शादी तब तक जायज नहीं होगी, जब तक कि अगला पक्ष इस्लाम न स्वीकार कर ले। ये भी कहा जाता है कि हिंदुओं को मुसलमान बनाने के लिए इस मुगल बादशाह के राज में एक अलग विभाग बना हुआ था, जो केवल यही बात सुनिश्चित करता था। इस बात का जिक्र कई जगहों पर मिलता है।
अकबर ने उन किसानों के परिवारों को गुलाम बनाने और बेचने पर प्रतिबंध लगा दिया था, जो सरकारी लगान समय से नहीं दे पाए थे। शाहजहाँ ने इस प्रथा को फिर से चालू कर दिया। किसानों को लगान देने के लिए अपनी स्त्रियों और बच्चों को बेचने पर मजबूर किया जाने लगा। किसानों को जबरन पकड़ कर (गुलामी में) बेचने के लिए मंडियों और मेलों में ले जाया जाता था। उनकी अभागी स्त्रियाँ अपने छोटे-छोटे बच्चों के लिये रुदन करती चली जातीं थीं। शाहजहाँ के आदेश थे कि इन हिन्दू गुलामों को हिन्दुओं के हाथ न बेचा जाए। मुसलमान मालिकों के पास गुलामों का अन्ततः मुसलमान हो जाना निश्चित था।
शाहजहाँ ने जितने भी युद्ध किए। उनमें कहीं भी उसने हिंदुओं के प्रति उदारता का प्रदर्शन नहीं किया, वह सदा उनके प्रति क्रूर बना रहा। जिससे देश की बहुसंख्यक प्रजा उससे आतंकित रही। हिंदू इतने घृणित अनाचार को सहन नहीं कर सकता था। इसलिए उसे विद्रोही होना था और विद्रोही बनकर अपनी स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त करना था।
यही कारण था कि हिंदुओं ने इस अनाचारी बादशाह को और प्रेम के कथित पुजारी व्यभिचारी शासक से मुक्ति पाने हेतु उसे दर्जनों बार चुनौती दी और उसे सर्वथा एक असफल शासक बनाकर रख दिया। इतना असफल कि उसका अपनी संतान पर भी नियंत्रण नहीं रहा और एक दिन उसके अपने पुत्र औरंगजेब ने ही उसे जेल में डाल दिया।
1657 में शाहजहाँ बीमार पड़ा और उसी के बेटे औरंगजेब ने उसे उसकी बेटी जहाँआरा के साथ आगरा के किले में बंद कर दिया, परन्तु औरंगजेब ने अपने बाप की अय्याशी का पूरा इंतजाम रखा। अपने बाप की कामुकता को समझते हुए उसे अपने साथ 40 रखैलें (शाही वेश्याएँ) रखने की इजाजत दे दी और दिल्ली आकर उसने बाप के हजारों रखैलों में से कुछ गिनी चुनी औरतों को अपने हरम में डालकर बाकी सभी को किले से बाहर निकाल दिया।
उन हजारों महिलाओं को भी दिल्ली के उसी हिस्से में पनाह मिली जिसे आज दिल्ली का रेड लाईट एरिया जीबी रोड कहा जाता है। जो उसके अब्बा शाहजहाँ की मेहरबानी से ही बसा और गुलजार हुआ था। शाहजहाँ की मृत्यु आगरे के किले में ही 22 जनवरी 1666 में 74 साल में हुई। बताया जाता है कि अत्यधिक कामोत्तेजक दवाएँ खा लेने का कारण उसकी मौत हुई थी। यानी जिन्दगी के आखिरी वक्त तक वो अय्याशी ही करता रहा था। अब आप खुद ही सोचें कि क्यों ऐसे बदचलन और दुश्चरित्र इंसान को प्यार की निशानी बता कर महान बताया जाता है?
अगर शाहजहाँ को अपनी बीबी के प्रति थोड़ा भी प्यार होता तो मुमताज के साथ शादी करने के बाद वो इतनी रखैलें ना रखता, और ना ही उनकी मौत के बाद उसकी बहन से शादी करता और ना ही पिता-बेटी के पवित्र रिश्ते को कलंकित करता। क्या ऐसा बदचलन इंसान कभी किसी से प्यार कर सकता है? क्या ऐसे वहशी और क्रूर व्यक्ति की अय्याशी की कसमें खाकर लोग अपने प्यार को बे-इज्जत नही करते हैं?
शाहजहाँ को प्यार नहीं हैवानियत की हवस थी। उसने अपने अहंकार और शरीर में जलती हवस की ज्वाला को शांत करने के लिए मुमताज से विवाह किया था, ना कि उसकी सुंदरता से। जिसने कभी औरतों की इज्जत ना की हो, वो प्यार की ईबादत को क्या समझेगा। इसलिए ताजमहल को मुमताज की याद का मकबरा कहना गलत होगा।
दरअसल, ताजमहल और प्यार की कहानी इसीलिए गढ़ी गई है कि लोगों को गुमराह किया जा सके और लोगों खास कर हिन्दुओं से छुपाई जा सके कि ताजमहल कोई प्यार की निशानी नहीं बल्कि महाराज जय सिंह द्वारा बनवाया गया भगवान शिव का मंदिर तेजो महालय है। इतिहासकार पीएन ओक ने पुरातात्विक साक्ष्यों के जरिए बकायदा इसे साबित किया है और इस पर पुस्तकें भी लिखी हैं। असलियत में मुगल इस देश में धर्मान्तरण, लूट-खसोट और अय्याशी ही करते रहे परन्तु नेहरू के आदेश पर हमारे इतिहासकारों नें इन्हें जबरदस्ती महान बनाया और ये सब हुआ झूठी धर्मनिरपेक्षता के नाम पर।