बीजिंग। चीन के सबसे अमीर कारोबारियों में शुमार जैक मा (Jack Ma) करीब 2 महीने तक लापता रहने के बाद अचानक दुनिया के सामने आ गए हैं. चीन के सरकार अखबार ग्लोबल टाइम्स (Global Times) ने एक वीडियो जारी किया है, जिसमें जैक मा चीन के 100 ग्रामीण शिक्षकों के साथ ऑनलाइन बातचीत करते दिख रहे हैं.
2 महीने से लापता थे जैक मा
बता दें कि अलीबाबा के संस्थापक जैक मा (Jack Ma) चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग (Xi Jinping) के साथ हुए विवाद के बाद से लापता थे और करीब 2 महीने से नहीं देखे गए थे. इसके बाद यह कयास लगाए जाने लगे थे कि या तो चीन ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया है या फिर नजरबंद कर कहीं रखा है.
‘इंग्लिश टीचर से बने बिजनेसमैन’
ग्लोबल टाइम्स ने जैक मा का वीडियो शेयर करते हुए उन्हें इंग्लिश टीचर से बिजनेसमैन बनने वाला बताया. ग्लोबल टाइम्स ने लिखा, ‘इंग्लिश टीचर से बिजनेसमैन बनने वाले अलीबाबा के संस्थापक जैक मा ने बुधवार को वीडियो लिंक के माध्यम से देश के 100 ग्रामीण शिक्षकों से मुलाकात की. उन्होंने कहा, ‘हम कोविड-19 महामारी खत्म होने के बाद फिर से मिलेंगे.’
#Alibaba founder Jack Ma Yun @JackMa, the English teacher turned entrepreneur, met with 100 rural teachers from across the country via video link on Wednesday. “We’ll meet again after the [COVID-19] epidemic is over,” he said to them: report pic.twitter.com/oj2JQqZGnI
— Global Times (@globaltimesnews) January 20, 2021
आखिरी बार नवंबर में आए थे नजर
जैक मा (Jack Ma) पिछले साल नवंबर से किसी भी सार्वजनिक इवेंट या टीवी शो में नजर नहीं आए थे, जिसके बाद उनके गायब होने की खबरें आने लगी थीं. चीनी मीडिया द एशिया टाइम्स (The Asia Times) ने कहा था कि जैक मा (Jack Ma) सरकारी एजेंसी की निगरानी में हैं. चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (Chinese Communist Party) के मुखपत्र पीपल्स डेली ने कहा था कि जैक मा को देश नहीं छोड़ने का आदेश दिया गया है. शायद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया है या फिर अपने घर में नजरबंद किया गया है.
जैक मा और जिनपिंग के बीच विवाद
जैक मा (Jack Ma) ने चीनी सरकार से अपील की थी कि सिस्टम में ऐसा बदलाव किया जाए जो बिजनेस में नई चीजें शुरू करने के प्रयास को दबाने की कोशिश न करे. उन्होंने वैश्विक बैंकिंग नियमों को ‘बुजुर्गों का क्लब’ करार दिया था. मीडिया रिपोर्टों के अनुसार जैक मा का ये भाषण चीन की कम्युनिस्ट पार्टी को पसंद नहीं आया था. इसके बाद से उनकी कंपनियों को निशाना बनाया जाने लगा था.