किसान सम्मान निधि भी नहीं संवार सकी यूपी के 7 लाख किसानों का भाग्य

राजेश श्रीवास्तव

भलें ही केंद्र सरकार अपनी तमाम योजनाओं के बूते यह दावा करे कि इन योजनाओं के चलते लाखों लोगों की किस्मत बदली है। लेकिन यह उसी तरह का सच है जैसे जब किसानों का कर्ज माफ किया गया था तो किसी का चार रुपये का कर्ज माफ हुआ था तो किसी को दो रुपये का। वर्ष 2०19 में जब किसान सम्मान निधि योजना की शुरुआत की गयी थी तो कहा गया था कि इसके बूते सभी किसानों को छह हजार रुपये की सालाना मदद दी जायेगी। लेकिन अगर जमीनी पड़ताल करेंगे तो साफ पायेंगे कि उत्तर प्रदेश के तकरीबन सात लाख किसान ऐसे हैं जिनको बार-बार आवेदन करने के बाद आज भी किसान सम्मान निधि का लाभ नहीं मिल सका है। ये सभी किसान आज भी साहूकारों से कर्ज लेकर खाद-बीज ले रहे हंै। ये सम्मान निधि इन किसानों के लिए अपमान निधि बन गयी है।
केंद्र से लेकर राज्य सरकार तक की कोशिश है कि इस योजना का लाभ हर ज़रूरतमंद किसान को मिले। लेकिन यूपी के कई जिले ऐसे हैं, जहां सरकारी अफसरों के कारण किसानों को फायदे के बदले सिर्फ आश्वासन और वायदे मिल रहे हैं। करीब दो साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के अन्नदाता को खेती की ज़रूरत के लिए सालाना 6 हज़ार की सरकारी मदद देने का ऐलान किया था। इस सिलसिले को आगे बढ़ते हुए उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार भी किसान कल्याण के मिशन में जुटी है। लखनऊ और दिल्ली से तो किसानों को राहत देने का अभियान जारी है। सरकार के खजाने से किसानों के खाते तक डायरेक्ट पैसा जा रहा है। लेकिन सवाल है कि क्या डायरेक्ट ट्रांसफर स्कीम का पैसा ज़रूरतमंद किसानों के बैंक खातों में पहुंच रहा है। बीते 25 दिसंबर को मोदी सरकार ने किसान सम्मान निधि की 7वीं किश्त भी जारी कर दी। लेकिन यूपी के 7 लाख से ज़्यादा किसानों तक 7वीं किश्त तो छोड़िए, पहली किश्त भी नहीं पहुंची।
ऐसे ज़्यादातर किसान यूपी के 11 ज़िलों से हैं. जिनमें बरेली के 3०,5००, मुरादाबाद के 41,०००, लखनऊ के 53,०००, अयोध्या के 62,०००, देवीपाटन के 57,०००, मेरठ के 4०,०००, प्रयागराज के 3०,०००, अलीगढ़ के एक लाख 4० हजार, गोरखपुर के एक लाख 3० हजार, बस्ती के एक लाख 48 हजार, और पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के 9० हजार किसान शामिल हैं। ऐसा नहीं कि इन किसानों ने आवेदन नहीं किया। यह बात दूसरी है कि इन किसानों की परेशानी की आवाज के बावजूद गूंगे-बहरे सिस्टम के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी। नतीजा ये हुआ कि किसी को खाद-बीज के लिए कर्ज लेना पड़ा, तो किसी को पेट काटकर अपनी जमापूंजी भी नई फसल के लिए लगानी पड़ी। ऐसे हज़ारों किसान हैं, जो सरकार की इस महत्वाकांक्षी योजना के तहत मिलने वाली सम्मान निधि राशि का अभी तक इंतज़ार कर रहे हैं। योजना शुरू करने के पीछे प्रधानमंत्री की कोशिश थी कि देश का कोई भी अन्नदाता किसी पर निर्भर ना रहे। मगर सम्मान की राशि पाने के लिए भी इन किसानों को बार-बार सरकारी अफसरों के आगे अपममानित होना पड़ रहा है। हैरानी इस बात की है कि सरकारी अफसरों पर किसानों की मिन्नतों का कोई असर नहीं हो रहा है। ये अफसरान कभी आंकड़ों की बाज़ीगरी तो कभी तकनीकी खामी को बहाना बनाकर अपनी ज़िम्मेदारियों से पल्ला झाड़ रहे हैं।
मोदी किसान को सम्मान के साथ लाभ पहुंचाना चाहते हैं और किसान भी उसी सम्मान के साथ खेती कर देश का पेट भरना चाहते हैं। लेकिन सरकारी अमला प्रधानमंत्री की योजना को पलीता लगा रहा है। ज़ाहिर है ये लापरवाही और खामियां, सरकारी सिस्टम के ढांचे की कमज़ोर कड़ियां हैं और कृषि महकमे के अफसरों के कारनामों की कहानी छोटी-मोटी नहीं है। बल्कि यूपी में करीब साढ़े सात लाख वाजिब किसानों को सम्मान निधि से महरूम करने वाले सरकारी अधिकारी ढाई लाख ऐसे लोगों को ये राशि थमा चुके हैं, जो इस योजना के दायरे में ही नही हैं। पूरे यूपी में योजना के अपात्र लोगों की फ़ेहरिश्त काफ़ी लंबी है। शाहजहांपुर में 66 हज़ार, प्रयागराज में 6० हज़ार, प्रतापगढ़ में 4० हज़ार, बरेली में 37 हज़ार, लखनऊ में 8 हज़ार, कानपुर में 45०० और वाराणसी में करीब साढ़े सत्रह हज़ार अपात्र लाभार्थी सामने आ चुके हैं। भ्रष्ट अधिकारियों की फौज पीएम मोदी और योगी सरकार की मुहिम को नुकसान पहुंचा रही है। जरूरत है कि इन खामियों को दुरस्त किया ज़ाये किसानों का भरोसा बढ़ाया जाए।