राहुल गाँधी के ‘खास’ साकेत गोखले ने उठाए किसानों के खाते में ट्रांसफर हुए पैसों पर सवाल: लोगों ने प्रमाण दे साबित किया ‘पप्पू’

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के तहत पीएम मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिवस के अवसर पर 25 दिसंबर 2020 को 9 करोड़ से ज़्यादा किसानों के खाते में 18000 करोड़ से अधिक की मदद पहुँचाई। लेकिन कॉन्ग्रेस के ट्रोलर्स इस अवसर पर भी झूठी खबर फैलाने से बाज नहीं आए। इसी सूची में राहुल गाँधी के फैन साकेत गोखले ने शनिवार (दिसंबर 26, 2020) को  ट्विटर पर अपनी कम बुद्धि का प्रमाण देते हुए डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांस्फर (DBT) स्कीम पर सवाल उठाए।

साकेत गोखले ने लिखा, “मोदी का पीआर इतना पर्फेक्ट है कि वह बड़े स्तर पर किसानों को बैंक ट्रांसफर कर देते हैं वो भी बैंक हॉलिडे के मौके पर।” साकेत के इस ट्वीट का मतलब कोई तंज नहीं था। ये केवल उनकी बेवकूफी थी। जो दर्शाती है कि टेक्वनिकली कम ज्ञान होने के बाद वह जनता को भ्रमित कर रहे थे कि 25 दिसंबर यानी क्रिसमस के मौके पर बैंक से पैसा ट्रांस्फर हो ही नहीं सकता।

उनके अलावा कई अन्य कॉन्ग्रेसी, कट्टरपंथी भी इसी सूची में थे, जिनका बौद्धिक स्तर गोखले जितना था। इन सबके मुताबिक पीएम मोदी ने बैंक हॉलीडे के दिन पैसे ट्रांसफर नहीं किए और जो भी कुछ हुआ सब सिर्फ़ पीआर का हिस्सा था।

हालाँकि, ये पूरा प्रोपगेंडा ज्यादा देर सोशल मीडिया पर नहीं चल पाया। जिस किसी भी लाभार्थी ने इसे देखा वो सब स्क्रीनशॉट शेयर करके इस झूठ की पोल खोलने लगे और दिखाया कि उनके खाते में पीएम किसान स्कीम के तहत 2000 रुपए पहुँचे हैं। इन स्क्रीनशॉट से यह साफ हो गया कि पीएम मोदी द्वारा मदद ट्रांसफर करने के कुछ घंटों में ही यह लाभ किसानों को पहुँचा।

जब गोखले को लगा कि उनके झूठ की पोल खुल गई है और डिजिटल बैंकिंग के जरिए आज एक क्लिक में कभी भी पैसे पहुँचाना मुमकिन हो चुका है, तो वह आरबीआई नियमों को चेक करने की बात यूजर्स से करने लगे। इसीलिए हमने सोचा कि हम ये पूरा प्रोसेस समझाकर बता देते हैं कि आखिर कैसे डीबीटी सिस्टम के जरिए लाभार्थियों को सीधा पैसा मिला।

इस प्रक्रिया के तीन मुख्य चरण होते हैं:

लाभार्थी की पहचान करना

उनके डेटा सत्यापित करके, उसे बैंकिंग सिस्टम के प्लेटफॉर्म पर अपलोड करना।

आखिर में बैंकिंग सिस्टम का इस्तेमाल करके लाभार्थी को लाभ देना।

आइए इन्हें थोड़ा विस्तार से समझें।

सबसे पहले लाभार्थियों की लिस्ट, संबंधित मंत्रालय द्वारा तैयार की जाती है और फिर उसे द पब्लिक फाइनेंनेस मैनेजमेंट सिस्टम पर अपलोड किया जाता है। ये PFMS पेमेंट, उनकी ट्रैकिंग, मॉनिट्रिंग आदि के लिए एंड टू एंड सॉल्यूशन है। इसकी देख रेख व्यय विभाग ( Department of Expenditure) द्वारा की जाती है।

लाभार्थियों के नाम इस प्लेटफॉर्म पर अपलोड होते हैं। इसका खाका इस तरह तैयार है कि इसमें आधार कार्ड, बैंक अकॉउंट डिटेल सब शामिल होता है। सूची को प्लेटफॉर्म पर तभी डाला जाता है जब उसे इंटरनली सत्यापित किया जा चुका हो। और इतना सब सिर्फ यही सुनिश्चित करने के लिए होता है कि लाभ गलत व्यक्ति तक न पहुँचे।

उक्त प्रक्रिया पैसे ट्रांसफर करने से पहले की होती है। जिसपर काम शुरू खातों तक पैसा पहुँचाने की निर्धारित तारीख से पहले किया जाने लगता है। पीएफएमएस की सबसे बड़ी ताकत देश में कोर बैंकिंग प्रणाली के साथ इसका एकीकरण है। इसी के कारण हर लाभार्थी को ऑनलाइन पेमेंट मिलती है। वर्तमान में, PFMS इंटरफ़ेस में सभी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों, प्रमुख निजी क्षेत्र के बैंकों, भारतीय रिज़र्व बैंक, भारत के पोस्ट और सहकारी बैंकों के कोर बैंकिंग सिस्टम (CBS) के साथ इंटरफ़ेस हैं।

लाभार्थियों की सूची बाद में नेशनल पेमेंट कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (NPCI) के प्लैटफॉर्म पर अपलोड होती है। जहाँ से फंड के ट्रांसफर का काम शुरू होता है। बता दें कि NCPI एक गैर लाभकारी संगठन है जिसे आरबीआई द्वारा स्थापित किया गया है। जैसे ही प्लेटफॉर्म पर लिस्ट अपडेट होती है। NPCI ही बैंको को ट्रांस्फर अपलोड करने के निर्देश देता है। यानी पैसों का अप्रूवल और उनका सर्टिफिकेशन बहुत पहले हो जाता है। NPCI पहले ही बैंको को ट्रांस्फर की डेट बता कर रखता और उन्हें उस दिन ऑफिस में रहने के भी निर्देश दिए जाते हैं।

दूसरा, NPCI बहुत भारी मात्रा में ऐसे फाइल भेज सकता है। इसने ऐसे डीबीटी लेनदेन को करने के लिए मौजूदा आरटीजीएस / एनईएफटी आर्किटेक्चर से स्वतंत्र एक अलग मंच बनाया है।  इसलिए साकेत गोखले के दावों से परे ये सारा काम NEFT और RTGS के आधार पर नहीं होता। ये सारी पेमेंट ईसीएस के जरिए होती है जहाँ आधार आधारित प्रणाली एनपीसीआई का इस्तेमाल होता है, जिससे साफ होता है कि डीबीटी पेमेंट पर RTGS या NEFT की पाबंदियाँ लागू नहीं होती।

शायद अब ये बातें एकदम साफ हों कि डीबीटी सिस्टम वास्तविक बैंकिंग ट्रांजेक्शन से अलग है। डीबीटी ट्रांस्फर के अंतर्गत ट्रांस्फर का अलग खाका और रियल टाइम होता है। बैंक ट्रांस्फर किसी भी दिन और किसी भी टाइम किया जा सकता है। इसके लिए सिर्फ़ केंद्र सरकार का अप्रूवल चाहिए होता है और संबंधित बैंको को NPCI से ऑर्डर।

निजी सेक्टर बैंक के एक स्रोत जिसे NPCI ने 25 दिसंबर को बैंक में रहने को कहा था, उसने ऑपइंडिया को बताया कि उन्हें अलग से शुक्रवार को बैंक में मौजूद रहने के लिए कहा गया था ताकि डीबीटी पेमेंट अप्रूव की जा सकें। इसलिए साकेत गोखले की कॉन्सिपिरेसी थ्योरी का कोई आधार नहीं है। कल हुआ आयोजन वास्तविकता में जनता को लाभ पहुँचाने के लिए था न कि कोई पीआर स्टंट।