सर्वेश तिवारी श्रीमुख
नेपाल में एक बार फिर राजतंत्र को स्थापित करने की मांग बढ़ रही है। इसके लिए लगभग रोज ही धरना-प्रदर्शन हो रहा है। नेपाल में सन 2008 के पूर्व तक राजतंत्र ही था, फिर कम्युनिष्टों की षड्यंत्रकारी मांग में फँस कर वहाँ के राजा ने नेपाल को सेक्युलर-लोकतांत्रिक देश घोषित कर दिया। पर जनता इस लोकतांत्रिक नेपाल में बीस वर्ष भी नहीं रह सकी… लोग उससे बाहर निकलने के लिए छटपटाने लगे।
दरअसल नेपाल के लोकतांत्रिक बनने से सिर्फ दो चीजें बदलीं कि ईसाई मिशनरियों को धर्म-परिवर्तन कराने की खुली छूट मिल गयी, और पाकिस्तानी आतंकियों को भारत में घुसने का एक आसान मार्ग मिल गया। जो नेपाल पहले हिन्दू राष्ट्र था वह अब ईसाई मिशनरियों का गढ़ बन चुका है। जो नेपाल कभी भारत के लिए रक्षक दीवार की तरह था, वह अब आतंक का द्वार हो चुका है। इसके अतिरिक्त नेपाल में ऐसी कोई प्रगति नहीं हुई जिसे विकास कहा जा सके… आज तक वहाँ एक स्थाई सरकार नहीं बन सकी, कोई सर्वमान्य संविधान नहीं बन सका। स्थितियां बद से बदतर होती गयीं। नेपाली राजपरिवार को सत्ता से हटा कर लोकतांत्रिक देश बनाने के लिए फंडिंग करने वाले यही चाहते थे।
नेपाल जब सन 1768 ई. में एकीकृत हुआ तभी वहां ईसाई मिशनरियों पर दो शताब्दियों के लिए आधिकारिक रूप से प्रतिबंध लगा दिया गया था। वह कठोर प्रतिबंध तबतक रहा जबतक कि 1990 में वहाँ सांकेतिक रूप से लोकतंत्र आ नहीं गया। पर मिशनरियों को अब भी खुली छूट नहीं मिली थी। राजा वीरेंद्र के रहते उनकी दाल नहीं गल रही थी।
फिर एक दिन 1 जून 2001 को नेपाल महाराज वीरेंद्र वीर विक्रम शाही के साथ साथ समूचे राजपरिवार के सारे सदस्यों को गोलियों से भून दिया गया, और कथा यह रच दी गयी कि अपने पसन्द की लड़की से विवाह करने के लिए युवराज दीपेंद्र ने ही पूरे परिवार को गोली मार दी और अंत मे स्वयं को ही गोली मार ली। इस फर्जी कहानी को न कभी बाद की नेपाल सरकार सिद्ध कर पायी, न जनता ने कभी भरोसा किया। असल में उस दिन क्या हुआ था, यह आज भी एक रहस्य है; पर उसके बाद यह हुआ कि उसके बाद नेपाल महाराज वीरेंद्र के भाई राजा बने और सात वर्षों बाद एक दिन चुपचाप देश को सेक्युलर लोकतांत्रिक देश घोषित कर दिया और सत्ता से सदैव के लिए दूर हो गए। सब कितना रहस्यमय है न?
इतना ही नहीं, नेपाल की वामपंथी सरकारों और भारत के कुछ बौद्धिक मीडिया घरानों ने मिल कर यह झूठ भी फैलाया कि नेपाल राज परिवार की हत्या रॉ ने कराई थी। आप गूगल सर्च कर लीजिए, मीडियाई वेबसाइटों पर यह आरोप दिख जाता है। पर इस बात में न कोई सच्चाई है, न आम नेपाली इसपर भरोसा करते हैं।
आज नेपाल की दशा यह है कि नेपाल की अंतिम जनगणना के अनुसार कम से कम १ मिलियन नेपाली ईसाई हैं। गॉर्डन कॉन्वेल थियोलॉजिकल सेमिनरी की एक रिपोर्ट के अनुसार, नेपाल का चर्च दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ रहा है। अब यह समझा जा सकता है कि नेपाल नरेश वीरेंद्र की हत्या और नेपाल के लोकतंत्र से किसे लाभ पहुँचा है।
नेपाल में वामपन्थी पार्टियां सबसे अधिक प्रभावी हैं, और उन्हें फंडिंग कहाँ से होती होगी यह समझना भी कठिन नहीं। कुल मिला कर बात यह है कि लोकतंत्र ने हिन्दू देश नेपाल को ईसाई देश बनने की ओर सफलतापूर्वक ढकेल दिया है।
पर मानवीय सभ्यता के इतिहास का एक सच यह भी है कि सदैव चुप पड़े रहने वाले हिन्दू एक निश्चित समय पर जग जाते हैं, और सफल प्रतिरोध भी करते हैं। नेपाल वाले अब प्रतिरोध कर रहे हैं। ईश्वर उन्हें शक्ति दें कि वे इस षड्यंत्रकारी व्यवस्था को उखाड़ फेंके।