सुपरस्टार रजनीकांत शनिवार (दिसंबर 12, 2020) को 70 वर्ष के हो गए और इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित कई क्षेत्रों की बड़ी हस्तियों ने उन्हें शुभकामनाएँ दी। रजनीकांत के करीबी कहते हैं कि वो एक आध्यात्मिक व्यक्ति हैं और अपनी फिल्मों की रिलीज से पहले हिमालय पर ज़रूर जाते हैं। और उनके इस आध्यात्मिक रुख का कारण हैं – महावतार बाबाजी; रजनीकांत की महावतार बाबाजी के प्रति श्रद्धा की बात आगे करेंगे, लेकिन पहले जान लें कि ये सिद्ध योगी आखिर हैं कौन?
न तो किसी को इनके जन्म के बारे में पता है और न ही जीवन के। कहते हैं, महावतार बाबाजी सिर्फ चुनिंदा लोगों को ही दर्शन देते हैं और अपने बारे में उतना ही बताते हैं, जितना वो दुनिया तक पहुँचाना चाहते हैं। न किसी ने उनकी तस्वीर क्लिक की है, और न ही वो प्रवचन देते हैं। लेकिन, फिर भी देश-दुनिया में उनके लाखों भक्त हैं। क्रिया-योग का जनक उन्हें ही माना जाता है। उनके चुनिंदा शिष्यों ने उनकी बात और शिक्षा दुनिया तक पहुँचाई।
योगदा आश्रम के संस्थापक स्वामी योगानंद ने अपनी पुस्तक ‘Autobiography Of a Yogi‘ में उनका जिक्र किया है। उनका कहना है कि उन्हें भी बाबाजी के दर्शन हुए और उनके कहने पर ही वो पश्चिमी जगत में उनकी शिक्षाओं को लेकर पहुँचे। उनका दर्शन करने वाले योगियों का कहना है कि बाबाजी को देश-दुनिया की पूरी खबर रहती है। कहा जाता है कि वो स्थूल शरीर में शताब्दियों से हिमालय पर ही वास कर रहे हैं।
उन्हें बद्रीनाथ के आसपास स्थित उत्तरी हिमालय पर्वत पर ही विचरते हुए देखा गया है। उनकी आध्यात्मिक अवस्था को मानवीय आकलन से परे माना जाता है। भगवद्गीता और समस्या वेद-उपनिषद में पारंगत रहे युक्तेश्वर गिरी के शब्दों में कहें तो महावतार बाबाजी कल्पनातीत हैं और सामान्य मनुष्य को तो उनकी अवस्था का ज्ञान भी नहीं हो सकता। परमहंस योगानंद कहते हैं कि जगद्गुरु शंकराचार्य और मध्ययुगीन कवि कबीर को उन्होंने ही दीक्षा दी थी।
वहीं लाहिड़ी महाशय के शब्दों में मानें तो महावतार बाबाजी का नाम लेने भर से ही व्यक्ति को तुरंत आध्यात्मिक दर्शन प्राप्त हो जाता है। वो बताते हैं कि बाबाजी अपने शिष्यों के साथ पर्वत पर भ्रमण करते रहते हैं। यहाँ तक कि उनकी मंडली में दो उन्नत अमेरिकी शिष्य भी हैं। वो एक शिखर से दूसरे शिखर तक पैदल जाते हैं और कहीं ज्यादा दिन नहीं रुकते। लाहिड़ी महाशय कहते हैं कि बाबाजी अदृश्य होकर कहीं भी जा सकते हैं, लेकिन वो ऐसा नहीं करते।
वो बताते हैं कि उनका शरीर अक्षय है और इसीलिए भोजन-पानी की ज़रूरत नहीं पड़ती। जब वो चाहते हैं, तभी उन्हें कोई पहचान पाता है कभी वो दाढ़ी-मूँछों के साथ होते हैं तो कभी इनके बिना ही। वो अपने शिष्यों से फल या चावल की खीर लौकिक शिष्टाचार के तहत खाते हैं। वहीं केवलानंद का कहना है कि उन्हें 2 बार बाबाजी मिले। उन्होंने देखा कि बाबाजी ने वैदिक होम के बीच यज्ञाग्नि से जली लकड़ी से अपने एक शिष्य के कंधे पर प्रहार किया और उसे कर्माग्नि से मुक्त कर दिया।
Rajinikanth at Dunagiri caves, also known as Mahavatar Babaji cave in Uttarakhand on his annual pilgrimage…I love his spirituality & simplicity… #offbeatuk pic.twitter.com/2Bgv5tdvXZ
— OffbeatUK (@OffbeatUK27) July 6, 2018
उन्होंने तो यहाँ तक बताया कि जब एक व्यक्ति ने उन्हें पहचान लिया था तो महावतार बाबाजी को अपना गुरु बनाने की जिद करने लगा। जब उसने पर्वत पर से कूद जाने की धमकी दी, फिर भी बाबाजी ने उसे अपना शिष्य नहीं बनाया, जिसके बाद वो सचमुच कूद गया। केवलानंद ने कहा कि आश्चर्य ये कि जब उसका शव बाबाजी के सामने लाया गया, तो उन्होंने उसे तत्क्षण जिन्दा कर दिया। साथ ही उसे ‘अमर मण्डली’ में शामिल किया।
महावतार बाबाजी से मिलने-जुलने वाले लोगों का कहना है कि वो कोई भी भाषा बोलने की क्षमता रखते हैं, लेकिन प्रायः हिंदी में ही बात करते हैं। ‘डेरा-डंडा उठाओ’ उनका पसंदीदा तकिया कलाम है और वो कहीं से भी कहीं और जाने के समय शिष्यों से यही कहते हैं। साथ ही वो अपने साथ एक डंडा भी रखते हैं। कइयों ने उनकी बहन ‘माताजी’ का भी दर्शन किया है। परमहंस योगानंद ने अपनी पुस्तक में लिखा है:
“बाबाजी के लम्बे और ओजस्वी बाल हैं, जिससे वो अपने शिष्यों से कहीं अधिक ओजस्वी और युवा दिखते हैं। एक बार ‘माताजी’ के निवेदन पर उन्होंने कहा कि वो अपने स्थूल शरीर का त्याग नहीं करेंगे और ये पृथ्वी पर कुछ लोगों के लिए दृश्यमान रहेगा। ईश्वर ने वर्तमान कल्प के अंत तक बाबाजी को पृथ्वी पर सशरीर रहने के लिए चुना हुआ है। युग पर युग आएँगे-जाएँगे, लेकिन महामृत्युंजय महागुरु यही रहेंगे, युगों के नाटक का अवलोकन करते हुए। लाहिड़ी महाशय जब अकाउंटेंट के रूप में दानापुर में कार्यरत थे, तब बाबाजी से उनकी पहली मुलाकात हुई थी। मैनेजर ने उन्हें एक तार आने के बाद रानीखेत भेजा, जहाँ सेना का नया कैम्प स्थापित होना था। वहीं पर घूमते हुए जब वो एक संत से मिलने पहुँचे, तो उन्हें ये देख कर आश्चर्य हुआ कि वो युवा संत देखने में उनके जैसा ही था।”
आश्चर्य की बात तो ये कि उन संत को लाहिड़ी महाशय का नाम याद था और उन्होंने उन्हें पुकारा भी। इसके बाद उन्होंने उनके पिछले जन्म की चीजें याद दिलाईं और साथ ही योग सिखाया। साथ ही उन्होंने पूरी प्रक्रिया के तहत उन्हें क्रिया योग की दीक्षा दी। उन्होंने लाहिड़ी महाशय को एक ऐसे महल में घुमाया, जहाँ स्वर्ण ही स्वर्ण था। इसके बाद लाहिड़ी महाशय को एक गृहस्थ योगी बनने का उन्होंने निर्देश दिया।
जब लाहिड़ी महाशय 10 दिनों के बाद कैम्प पहुँचे तो उनके साथियों ने बताया कि वो उन्हें चारों तरफ ये सोच कर खोज रहे थे कि कहीं वो खो तो नहीं गए हैं। इसके बाद मुख्यालय से एक तार आया कि उनका गलती से रानीखेत में ट्रांसफर हो गया है, उन्हें दानापुर लौटना पड़ेगा। इतना सब कुछ होने का कारण कौन था, वो समझ गए। एक बार जब उन्होंने कुछ लोगों को अपनी बात मनवाने के लिए बाबाजी को बुला लिया तो उन्होंने कहा कि वो सिर्फ सच्चे साधकों के लिए उन्हें बुलाया करें, कौतूहल शांत करने वालों के लिए नहीं।
उन्होंने अपनी मित्र मंडली को भी बाबाजी का दर्शन कराया, जो ये सब देख कर हतप्रभ थे और सोच रहे थे कि उनके देखे बिना ही कमरे में कोई कैसे घुस गया। उन्होंने इसे सम्मोहन बताया। लेकिन, बाबाजी ने सबके शरीर को स्पर्श कर अपने होने का सबूत दिया। उन्होंने हलवा बनवाया, खाया और सभी उपस्थित लोगों से बातचीत की। एक बार वो एक जटाधारी सन्यासी के सामने नतमस्तक और बर्तन माँजते हुए भी दिखे थे।
कहते हैं कि 1920 में परमहंस योगानंद को दिव्य दृष्टि में क्रिया योग की शिक्षाओं का पश्चिमी देशों में दूत नियुक्त किया गया। योगानंद जी ने ईश्वर से गहरी प्रार्थना करने का निश्चय किया, इस उद्देश्य से कि उन्हें अपने निकट आ गए महान कार्य करने के लिए ईश्वर से विश्वास और आशीर्वाद मिले। उत्तर में बाबाजी खुद योगानंद जी के सामने प्रकट हुए, उन्हें आशीर्वाद दिया और उन्हें सर्वश्रेष्ठ रक्षा का वादा दिया। बाबाजी ने योगानंद जी से कहा:
तुम वही हो जिसे मैंने क्रिया योग की शिक्षा का पश्चिमी देशों में प्रचार करने के लिए चुना हैं। बहुत पहले मैं तुम्हारे गुरु युक्तेश्वर से कुम्भ मेले में मिला था; मैंने उनसे कहा कि मैं तुम्हे उनके पास प्रशिक्षण के लिए भेजूँगा। क्रिया योग जोकि ईश्वर का बोध प्राप्त करने के लिए एक वैज्ञानिक तकनीक हैं, आखिर में सभी देशों में फैल जाएगी, और मानव के निजी, अतिश्रेष्ट परमपिता के बोध से देशों के बीच मधुर सम्बन्ध बनाने में मदद करेगी।”
हिमालय पर योगदा समाज ने ध्यान और योग के लिए गुफा भी बना रखी है, जहाँ रजनीकांत जैसे सुपरस्टार भी जाते हैं। रजनीकांत अपनी हर फिल्म की रिलीज से पहले वहाँ जाया करते थे। वो पिछले वर्ष अपनी ‘काला’ फिल्म की रिलीज से पहले वहाँ गए थे। ‘बाबा’ फिल्म उन्होंने खास तौर पर महावतार बाबाजी के बारे में दुनिया को बताने के लिए बनाई थी। लेकिन, ये फिल्म चली नहीं। अपने घर में भी रजनीकांत ने उनकी स्केच तस्वीर लगा रखी है।
रजनीकांत का 1978 में ‘Autobiography Of a Yogi’ पुस्तक से परिचय हुआ था, लेकिन उन्होंने 1999 में इसे पढ़ी। उन्होंने बताया कि खराब अंग्रेजी के कारण इतना समय लगा। लेकिन, उनका कहना है कि पुस्तक पढ़ने के दौरान जैसे ही महावतार बाबाजी की तस्वीर आई, उससे एक प्रकाश पुंज निकल कर उनके भीतर जाता दिखा। उससे पहले वो अपने-आप एक खास पोजीशन में बैठ गए थे। वो कहते हैं कि ‘बाबा’ फिल्म बनाने का कारण भी यही था।
हाल ही में सुपरस्टार रजनीकांत ने राजनीति में कदम रखने की तमाम अटकलों को ख़त्म करते हुए अहम ऐलान किया था। उन्होंने कहा था कि वह 31 दिसंबर को अपने राजनीतिक दल की घोषणा करेंगे और नए साल के अवसर अपने दल को लॉन्च करेंगे। सुपरस्टार रजनीकांत का राजनीतिक दल तमिलनाडु की हर विधानसभा सीट पर चुनाव लड़ेगा। दावा किया गया है कि उनकी पार्टी सिर्फ आध्यात्मिक राजनीतिक करेगी और किसी अन्य की आलोचना नहीं करेगी।