‘मोदी है तो मुमकिन है’, यह कोई चुनावी नारा नहीं भारतीय राजनीति की हकीकत है

नीरज कुमार दुबे

‘मोदी है तो मुमकिन है’, अब यह नारा नहीं बल्कि एक हकीकत बन चुका है। बिहार विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने अपने शानदार प्रदर्शन की बदौलत ना सिर्फ सबसे बड़े दल का खिताब हासिल किया बल्कि अपने जबरदस्त स्ट्राइक रेट की बदौलत एनडीए की सरकार भी बचा ली। गौरतलब है कि भाजपा ने 110 सीटों पर चुनाव लड़ा और वह 75 पर विजयी रही जबकि विपक्षी राष्ट्रीय जनता दल 144 सीटों पर चुनाव लड़ने के बाद 74 सीटों पर विजयी रहा। बिहार विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान ही स्पष्ट हो गया था कि पूरा एनडीए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर चुनाव लड़ रहा है। खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस बात को समझ रहे थे कि जनता में उनके खिलाफ कुछ नाराजगी है इसीलिए वह प्रधानमंत्री के साथ अपनी संयुक्त सभाओं में खुद कम बोलते थे। प्रधानमंत्री भी सारा माहौल समझ रहे थे इसीलिए उन्होंने पहले चरण के मतदान के बाद अपनी हर सभा में लोगों को ‘जंगल राज’ की याद दिलाई। यही नहीं अंतिम चरण के मतदान से पहले बिहार के मतदाताओं के नाम अपने एक खुले पत्र में उन्होंने जनता से आग्रह भी किया कि उन्हें बिहार में विकास के लिए नीतीश कुमार की जरूरत है। प्रधानमंत्री ने बिहार के लोगों को यह भी बताया था कि नीतीश कुमार उनके साथ बाद में आये हैं इसीलिए केंद्र सरकार को बिहार में ज्यादा काम करने का समय नहीं मिल पाया है अतः और समय की जरूरत है।

चुनाव परिणाम के बाद का परिदृश्य

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चूँकि स्वयं बिहार की जनता को यह जुबान दे चुके थे कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को ही बनाएंगे इसलिए अब भाजपा के नंबर ज्यादा हो जाने के बावजूद वह अपने निर्णय में कोई फेरबदल नहीं करेंगे क्योंकि राजनीति में विश्वास ही सबसे बड़ी चीज होती है और नरेंद्र मोदी कुछ उन चुनिंदा नेताओं में शुमार हैं जिन्होंने शुरू से ही जनता का विश्वास अर्जित किया हुआ है। मोदी और भाजपा नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बना कर एनडीए के सहयोगी दलों और बाहर चले गये दलों को भी संकेत देंगे कि भाजपा बड़ा दिल रखती है और उसके साथ रहेंगे तो फायदे में रहेंगे।

मोदी है तो मुमकिन है

बात अब सिर्फ बिहार विधानसभा चुनावों में भाजपा की शानदार जीत की ही नहीं रह गयी है। देश के विभिन्न राज्यों में हुए उपचुनावों के परिणाम दर्शाते हैं कि मोदी नाम का सिक्का खूब चलता है। 59 सीटों पर हुए उपचुनावों में से 41 सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज कर जीत का नया इतिहास रच दिया है। खास बात यह है कि भाजपा ने 31 सीटें कांग्रेस से छीनी हैं। उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार पर खूब आरोप लगाये गये। कभी किसानों का मुद्दा उठाया गया तो कभी हाथरस मामले पर कांग्रेस नेताओं की ओर से सड़क-छाप राजनीति की गयी लेकिन हुआ क्या ? सात में से छह विधानसभा सीटों पर भाजपा का कब्जा हो गया और एक सीट सपा के खाते में गयी। ऐसा ही चलता रहा तो उत्तर प्रदेश में विपक्ष के लिए 2022 के विधानसभा चुनाव में जीत का सपना अधूरा ही रह जायेगा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में भाजपा उत्तर प्रदेश में भी अजेय बनी हुई है और योगी जिस भी प्रदेश में स्टार प्रचारक के रूप में जा रहे हैं वहां भाजपा को खूब फायदा हो रहा है। बिहार की ही बात करें तो योगी का स्ट्राइक रेट 66 प्रतिशत रहा है। योगी आदित्यनाथ ने एनडीए प्रत्याशियों के समर्थन में 18 जगह सभाएं की थीं उनमें से 12 पर जीत हासिल हुई है।

मध्य प्रदेश की बात करें तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सत्ता बच गयी है और भाजपा ने अपने जोरदार प्रदर्शन की बदौलत सत्ता में लौटने की कांग्रेस की कोशिशों पर पानी फेर दिया है। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी भाजपा को विश्वास दिला दिया है कि वह उनके लिए ‘काम की चीज’ हैं। 19 सीटों पर कमल खिलने से मध्य प्रदेश सरकार स्थिर हो गयी है। यही नहीं कर्नाटक में जिस तरह दो सीटों पर हुए उपचुनाव में भाजपा ने जीत हासिल की है वह कांग्रेस के लिए बड़ा झटका है क्योंकि इनमें से एक सीट तो कांग्रेस के किले के रूप में देखी जाती थी। गुजरात में कांग्रेस का सफाया हो गया है। आठ विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में भाजपा ने जीत दर्ज की है और यह सभी सीटें उसने कांग्रेस से छीनी हैं। इसी प्रकार मणिपुर, तेलंगाना में भी भाजपा ने अपने शानदार प्रदर्शन की बदौलत देशभर के पार्टी कार्यकर्ताओं में जोश भर दिया है।

नड्डा के खाते में भी जुड़ गयी जीत

भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के लिए यह विधानसभा चुनाव महत्वपूर्ण थे। पूर्णकालिक अध्यक्ष बनने के बाद हालांकि दिल्ली विधानसभा के चुनाव पहले ऐसे चुनाव थे जोकि उनके नेतृत्व में लड़े गये थे लेकिन तब नड्डा को पार्टी अध्यक्ष बने महीना भर भी नहीं हुआ था। इसलिए बिहार विधानसभा चुनावों में उनके नेतृत्व और संगठन कौशल की भी परीक्षा थी जिसमें वह सफल साबित हुए हैं। भाजपा ने कोरोना काल में सबसे पहले वर्चुअल रैली के माध्यम से बिहार में चुनावी रैलियों का शंखनाद किया था और पार्टी की मेहनत सफल रही। गृहमंत्री अमित शाह ने भी दिल्ली में बैठ कर ही सारी रणनीति को सफलता के शिखर तक पहुँचाने में अहम भूमिका निभाई। साथ ही राजनाथ सिंह समेत विभिन्न केंद्रीय मंत्रियों और पार्टी संगठन के नेताओं ने जमकर मेहनत की। कई नेता कोरोनाग्रस्त भी हुए लेकिन ठीक होकर फिर काम पर लग गये। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की भी चुनाव प्रभारी के रूप में भूमिका अहम रही।

मोदी सरकार के कामों पर भी जनता की मुहर

बहरहाल, बिहार विधानसभा चुनाव नरेंद्र मोदी सरकार पर भी जनमत संग्रह कहा जा सकता है। कोरोना काल में जिस तरह केंद्रीय योजनाओं का लाभ आम जनता तक पहुँचाया गया उसका लाभ भाजपा और उसके सहयोगी दलों को मिला है। देश ने एक बार फिर स्पष्ट कर दिया है कि नरेंद्र मोदी सरकार की ओर से किये जा रहे विकास पर उसे भरोसा है। विकास और विश्वास नरेंद्र मोदी की पहचान है और इसी की बदौलत भाजपा को वह दुनिया की सबसे बड़ी और चुनाव जिताऊ पार्टी बनाए हुए हैं। निश्चित ही बिहार विधानसभा चुनावों के बाद नरेंद्र मोदी का कद और बढ़ गया है और विपक्ष के लिए उन्हें भविष्य में चुनौती पेश कर पाना ज्यादा कठिन हो गया है। बिहार से निकला भाजपा का विजय रथ निश्चित ही अब बंगाल में भी पताका फहराना चाहेगा। फिलहाल तो भाजपा आत्मविश्वास से लबरेज है लेकिन उसे ध्यान रखना होगा कि कहीं यह अति-आत्मविश्वास में ना परिवर्तित हो जाये।