अभिव्यक्ति की आजादी की लक्ष्मण रेखा कहां हो…

चंद्र भूषण पांडे
लोकतंत्र अपने वसूलों पर चलता है। लोकतंत्र में परंपराओं का बड़ा महत्व है। लोकतंत्र के मूलभूत सिद्धांत की जब चर्चा आती है तब अभिव्यक्ति की आजादी की बात जरूर होती है। लोकतंत्र का चौथा स्तंभ अभिव्यक्ति की आजादी के सहारे लोकतंत्र को निखारता है, समृद्ध करता है और लोकतंत्र का
पहरुवा बन कर समाज की सेवा करता है। अपने मन की बात करना, दूसरे की मन की बात करना, समाज के मन की बात करना, सरकार की नीतियों की चर्चा करना, सरकार के निर्णयों की चर्चा करना उस पर क्रिया-प्रतिक्रिया और विमर्श को आगे बढ़ाना अभिव्यक्ति की आजादी के विविध स्वरूप है।

लोकतंत्र प्रत्येक व्यक्ति को अपनी सोच से, अपनी दृष्टि से, अपनी दिशा में आगे बढ़ने का अवसर मुहैया कराता है। लोकतंत्र किसी भी व्यक्ति की भाषा, वेशभूषा, पूजा पद्धति, आर्थिक स्थिति, सामाजिक स्थिति, परंपराएं, भौगोलिक स्थिति व शैक्षिक स्थिति के आधार पर भेदभाव नहीं करने का वचन देता है। अभिव्यक्ति की आजादी लोकतंत्र का मुकुट है, वह लोकतंत्र को मुखर करता है, प्रखर करता है, आभामय करता है।

अभिव्यक्ति की आजादी मर्यादा में हो, गरिमा में हो, सर्व समाज के हित में हो तो अधिक सार्थक हो जाती है। लोकतंत्र जनता का तंत्र है, जनगण का तंत्र है, जनगण की चिंता करने वाला तंत्र है, जनगण को बराबरी के प्लेटफार्म पर खड़ा करने वाला तंत्र है, जनगण के मन को मंच देने वाला तंत्र है, जनगण अपने मनोभाव, अपने सुख के लिए, अपने विकास के लिए, अपनी समृद्धि के लिए अभिव्यक्त करें उसके लिए लोकतांत्रिक संस्थाएं अनुकूलता प्रदान करती हैं, मदद करती हैं लेकिन यही अभिव्यक्ति की आजादी यदि लोकतंत्र की संस्थाओं को ही निगलने लगे, दूसरे के लोकतांत्रिक अधिकारों की भक्षक बन जाए, वहीं मन में बड़ा सवाल आता है की अभिव्यक्ति की आजादी की लक्ष्मण रेखा क्या हो?

आपकी आजादी की मर्यादा रेखा वहीं समाप्त हो जाती है जब वह दूसरे की आजादी के क्षेत्र में दखल कर जाती है, दूसरे की भावनाओं को आहत करने लगती है दूसरे के लिए पीड़ाकारी बन जाती है।

फ्रांस की घटना ने लोकतंत्र के सहारे गरिमा पूर्ण जीवन जीने वाले नागरिकों एवं देशों को हिला कर रख दिया है, एक पैगंबर का कार्टून एक शिक्षक अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर बनाता है और दूसरा उसका विरोध करते हुए उसके सिर को कलम कर देता है, एक लोकतंत्र के सहारे अपने मन की बात, अपनी सोच रेखांकित करता है तो दूसरा वही हिंसा के रास्ते न्यायाधीश बन कर उसे मृत्युदंड सुना देता है.

बड़ा सवाल ये है क्या आप लोकतंत्र के सहारे अपनी अभिव्यक्ति की आजादी चाहते हैं अपने मन की आवाज को बुलंद करना चाहते हैं लेकिन वही लोकतंत्र जब दूसरे को अपने मन की बात कहने का मौका देता है तो आप लोकतंत्र का पाठ भूल कर हिंसा तंत्र के सहारे खड़े हो जाते हैं यह दोहरी चाल नहीं चलेगी “मीठा-मीठा गप कड़वा कड़वा थू”..

लोकतंत्र एक जीवन शैली है उसमें चयन का अधिकार नहीं है…आप लोकतंत्र कहां तक मानेंगे और कहां तक नहीं मानेंगे?? यदि लोकतंत्र में आप अपने लिए अवसर ढूढते हैं, उसका लाभ उठाते हैं, उससे अपना विकास करते हैं तो फिर आप यह अधिकार दूसरों को भी दीजिए..

एक पैगंबर का कार्टून भूकंप लाने वाला हो जाता है लेकिन
वहीं हिंदू देवी देवता के चित्र का ऐसा माखौल उड़ाया जाता है, ऐसा मजाक बनाया जाता है, ऐसे वीभत्स तरीके से प्रस्तुत किया जाता है कि हिंदू समाज अंदर से हिल जाता है और बेशर्मी तब होती है जब यह सिर कलम करने वाले लोग उस कार्टून के,उस चित्र के जो हिंदू देवी देवताओं का अपमान कर रहे होते हैं के समर्थन में खड़े हो जाते हैं, उसको बनाने वाले के प्रवक्ता बन जाते हैं तो फिर मन दुखी होता है और यह आवाज निकलती है की ऐसे पाखंडी लोगों के लिए लोकतंत्र बना ही नहीं है जिसमें सहिष्णुता नहीं है, जिसमें उदारता नहीं है, जिसमें दया नहीं है, जिसमें करुणा नहीं है उनके लिए लोकतंत्र केवल अपनी भलाई के लिए, अपने हित साधने का हथियार है और इससे अधिक कुछ नहीं…

लोकतंत्र के अधिकारों का इस्तेमाल करने के पहले हमें सोचना होगा कि हम दूसरे के लिए उस अधिकार की गारंटी देने की दिशा में कितने उदार हैं, कितने सहिष्णु हैं, कितने संवेदनशील है??

जब किसी की अभिव्यक्ति की आजादी आपके लिए उकसाने वाली होती है और आप तलवार के सहारे अपने लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा के लिए दूसरे का सिर कलम करने को उतावले हो जाते हैं तो वहीं आप यह भी सोचिए कि आपकी यह गतिविधि दूसरे को भी उतावला कर सकती है? उत्प्रेरित कर सकती है? असंतुलित कर सकती है? हिंसक बना सकती है?
आप मीठा-मीठा गप और कड़वा कड़वा थू के सहारे चयनात्मक होकर लोकतंत्र के सहारे अपना विकास तो करना चाहते हैं लेकिन दूसरे के लिए आप कठोर हो जाते हैं, हिंसक हो जाते हैं, अमर्यादित हो जाते हैं, निष्ठुर हो जाते हैं.. तब यह सवाल जरूर उठता है कि लोकतंत्र की मर्यादा रेखा आपके लिए खींची जाए और यदि आप उल्लंघन करें तो लोकतांत्रिक समाज आपके भविष्य पर अपना फैसला सुनाये।