‘फेक टीआरपी स्कैम’ मामले में 24 घंटे के भीतर ही उल्लेखनीय मोड़ आया है। 8 अक्टूवर को आयोजित की गई प्रेस वार्ता में मुंबई पुलिस कमीश्नर ने रिपब्लिक टीवी और अर्नब गोस्वामी पर कई गम्भीर आरोप लगाए थे। उन्होंने दावा किया था कि चैनल ने टीआरपी से जुड़ी जानकारी में बदलाव करने के लिए आम लोगों को रुपए दिए थे और उनसे कहा गया था कि वह चैनल लगा कर अपना टीवी चालू रखें। रात तक यह बात भी सामने आ गई कि एफ़आईआर में कहीं भी रिपब्लिक टीवी का ज़िक्र नहीं है बल्कि उसमें इंडिया टुडे का नाम शामिल था।
परमबीर सिंह की प्रेस वार्ता के बाद इंडिया टुडे ने ख़ुशी मनाते हुए रिपब्लिक टीवी पर तंज कसना शुरू कर दिया था। जैसे ही इस बात का खुलासा हुआ कि असल एफआईआर में इंडिया टुडे का नाम है उसके बाद इंडिया टुडे के तेवर पूरी तरह बदल गए हैं।
इस शुरूआती झटके से उबरने के बाद राजदीप सरदेसाई स्थिति को सामान्य करने की कोशिश में लग गए। राजदीप सरदेसाई ने अपने समाचार चैनल पर पुलिस कमीश्नर से सवाल किए। उन्होंने कहा, “ऐसा बताने के प्रयास किए जा रहे हैं कि असल एफ़आईआर में इंडिया टुडे का नाम शामिल है।” इसके बाद राजदीप ने रिपब्लिक टीवी पर आरोप लगाने की माँग करते हुए उन्हें दोष मुक्त करने की बात कही।
मुंबई पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह ने खुद यह बात स्वीकारी थी कि असल एफ़आईआर में इंडिया टुडे का ज़िक्र है। इस खुलासे के बाद मुंबई पुलिस खुद की बनाई गाँठो में उलझती हुई नज़र आ रही है क्योंकि यह बात सार्वजनिक रूप से कही गई है और दूसरी तरफ इससे तमाम सवाल खड़े होते हैं।
इंडिया टुडे खुद को निर्दोष और रिपब्लिक टीवी को आरोपित साबित करने की पूरी कोशिश कर रहा है। इसके लिए उसने परमबीर सिंह के बयान का हवाला दिया है जिसमें उन्होंने कहा था, “एफ़आईआर एक ही है। 6 अक्टूबर को दायर की गई इस एफ़आईआर में एक चश्मदीद ने इंडिया टुडे का भी नाम लिया है। जाँच आगे बढ़ने पर पता चला कि न तो BARC और न ही किसी अन्य चश्मदीद ने इंडिया टुडे का ज़िक्र किया। सभी ने रिपब्लिक टीवी और दो अन्य मराठी चैनल्स का नाम लिया है। फ़िलहाल इंडिया टुडे के विरुद्ध कोई सबूत नहीं है, हम अपनी कार्रवाई रिपब्लिक टीवी और मराठी चैनल्स पर जारी रखेंगे।”
बीते रात से इंडिया टुडे ने इस बयान के आधार पर खुद को निर्दोष और रिपब्लिक टीवी को अपराधी साबित करने का लगातार प्रयास किया।
Mumbai Police has said that it found no evidence against India Today in the TRP manipulation racket.@sardesairajdeep talks exclusively to joint commissioner of Mumbai police Milind Bharambe.#ITVideo pic.twitter.com/0htrBsXlpI
— IndiaToday (@IndiaToday) October 9, 2020
इंडिया टुडे की हताशा को नज़रअंदाज़ करते हुए मुंबई पुलिस के बयान को देखा जाए तो इस मामले पर कई नए सवाल खड़े होते हैं जिनके जवाब अभी तक नहीं दिए गए हैं। गौर करने वाली बात है कि एफ़आईआर 6 अक्टूबर 2020 को दायर की गई थी। इस एफ़आईआर के एक दिन के भीतर, 7 अक्टूबर को मुंबई पुलिस ने रिपब्लिक टीवी की व्यूअरशिप से जुड़ी जानकारी के लिए BARC को नोटिस जारी कर दिया।
अब समझते हैं कि इसका क्या मतलब है। 6 अक्टूबर को दायर की गई मूल एफ़आईआर में इंडिया टुडे का नाम है और इस बात को मुंबई पुलिस कमिश्नर ने खुद स्वीकार किया है। फिर 24 घंटे के भीतर ही मुंबई पुलिस ने BARC को नोटिस भेजा कि वह रिपब्लिक टीवी से व्यूअरशिप सम्बंधी जानकारी इकट्ठा करे। फिर अगले ही दिन मुंबई पुलिस कमिश्नर ने अपनी जाँच को अंतिम पड़ाव देकर राष्ट्रीय टेलीविज़न पर प्रेस वार्ता कर दी। इतना ही नहीं प्रेस वार्ता में रिपब्लिक टीवी को टीआरपी मामले में आरोपित भी बता दिया।
यानी हम इस बात पर भरोसा करें कि मुंबई पुलिस ने 6 अक्टूबर को एफ़आईआर दर्ज की और इंडिया टुडे के विरुद्ध जाँच न करते हुए उन्होंने BARC को नोटिस भेज दिया। इसके बाद 8 अक्टूबर को प्रेस वार्ता करके रिपब्लिक टीवी को आरोपित भी घोषित कर दिया। 3 दिन की इस पूरी जाँच के दौरान, प्रेस वार्ता करने के पहले ऐसा कोई सबूत नहीं उपलब्ध है जिसके मुताबिक़ मुंबई पुलिस ने इंडिया टुडे को व्यूअरशिप से जुड़ी जानकारी के लिए तलब किया हो।
इस तरह का एक और तथ्य है जो इंडिया टुडे मुंबई पुलिस और उसकी जाँच को संदेह के दायरे में खड़ा करता है। इस मामले की मुख्य आरोपित तेजल सोलंकी ने 8 अक्टूबर को रिपब्लिक टीवी के रिपोर्टर से बात करते हुए इंडिया टुडे का नाम लिया था। बातचीत को यहाँ सुना जा सकता है।
ऑडियो में तेजल सोलंकी ने बताया कि इंडिया टुडे के लोगों ने टीआरपी बढ़ाने के लिए उनके बेटे से संपर्क किया था। इसका मतलब यह है कि कमिश्नर परमबीर सिंह द्वारा किए गए दावे में ज़रा भी सच्चाई नहीं है कि किसी भी चश्मदीद ने इंडिया टुडे का नाम नहीं लिया। अगर एफ़आईआर इंडिया टुडे के विरुद्ध होती जिसमें ऐसा दावा किया गया था कि किसी भी चश्मदीद ने इंडिया टुडे का नाम नहीं लिया, खुद इस बात का कोई मतलब ही नहीं निकलता है। अंततः एफ़आईआर में इंडिया टुडे का नाम केवल उस सूरत में शामिल किया गया होगा जब किसी ने सीधे तौर पर उसका नाम लिया होगा।
यह अपने आप साबित हो जाता है कि परमबीर सिंह द्वारा जारी किया गया बयान जिसका हवाला इंडिया टुडे ने भी दिया था, उसके आधार पर ऐसे तमाम सवाल बचते हैं जिनका कोई जवाब नहीं मिल पाया है।
मुंबई पुलिस इसके पहले कई सनसनीखेज़ आरोप लगा चुकी है कि कई समाचार चैनल टीआरपी रेटिंग से छेड़छाड़ करते हैं। प्रेस वार्ता के दौरान मुंबई पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह ने बताया कि रिपब्लिक समेत ऐसे 3 समाचार चैनल हैं जो इस प्रक्रिया में मुख्य रूप से शामिल हैं। इसमें ऐसे घरों को रुपए का लालच दिया जाता है जहाँ BARC द्वारा बार-ओ मीटर इनस्टॉल किए जाते हैं। नतीजतन BARC द्वारा जारी किया जाने वाला टीआरपी से जुड़ा डाटा प्रभावित होता है।
परमबीर सिंह ने कहा कि इस मामले में दो लोगों की गिरफ़्तारी हो चुकी है, जिसमें एक आरोपित BARC के साथ काम करने वाली संस्था में कार्यरत था। इसके बाद उन्होंने बताया कि यह सभी उन घरों से डाटा उठाते थे जहाँ बार-ओ मीटर लागाया गया है और उसे समाचार चैनलों को बेच देते थे। समाचार चैनल उस जानकारी का इस्तेमाल व्यूअरशिप (टीआरपी) को प्रभावित करने के लिए करते थे।
मुंबई पुलिस कमीश्नर के मुताबिक़ गिरफ्तार किए गए आरोपितों ने इस बात का खुलासा किया कि रिपब्लिक टीवी और 2 मराठी चैनल इस घपले में शामिल थे। फ़िलहाल मराठी चैनल्स फ़क्त मराठी और बॉक्स सिनेमा के मालिकों को गिरफ्तार किया जा चुका है। इसके बाद प्राथिमिकी (एफ़आईआर) की कॉपी रिपब्लिक टीवी और ऑपइंडिया दोनों ने देखी और समझी, उसमें रिपब्लिक टीवी का नाम कहीं नहीं लिखा था। इसके उलट उसमें इंडिया टुडे का नाम मौजूद था और कुछ अन्य चैनल्स का भी नाम शामिल था।
इस तरह के तमाम आरोपों के बाद रिपब्लिक टीवी के एडिटर इन चीफ अर्नब गोस्वामी ने अपना पक्ष रखा। उनका पूरा बयान कुछ इस प्रकार है-
अपने बयान में अर्नब गोस्वामी ने कहा, “मुंबई पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह ने रिपब्लिक टीवी पर झूठे आरोप लगाए हैं क्योंकि हमने उनसे सुशांत सिंह राजपूत मामले की जाँच से जुड़े कई सवाल किए थे। रिपब्लिक टीवी मुंबई पुलिस कमिश्नर पर आपराधिक मानहानि का दावा करेगी। BARC ने ऐसी एक भी रिपोर्ट जारी नहीं की है जिसमें रिपब्लिक टीवी का नाम शामिल हो। सुशांत सिंह राजपूत मामले में परमबीर सिंह द्वारा की जाँच पर खुद शक के बादल मंडरा रहे हैं।”
इसके बाद अर्नब ने कहा, “यह सिर्फ और सिर्फ निराशा में उठाया गया एक कदम है क्योंकि रिपब्लिक टीवी ने पालघर मुद्दे, सुशांत सिंह के मुद्दे या इस तरह के किसी भी अन्य मुद्दे पर रिपोर्ट तैयार की। इस तरह निशाना बनाने से हमारा संकल्प और मज़बूत होता है और सच की ज़मीन ठोस होती है। आज परमबीर सिंह की असलियत सामने आ गई है क्योंकि BARC की रिपोर्ट में रिपब्लिक टीवी का नाम कहीं नहीं है। उन्हें आधिकारिक तौर पर माफ़ीनामा लिखना चाहिए और अदालत में हमारा सामना करने की तैयारी कर लेनी चाहिए।”