जयन्ती मिश्रा
“उन दिनों मेरी बेटी की तबीयत खराब थी इसलिए मैंने उसे ठीक होने के लिए अपने ससुराल छोड़ा था। बाद में पता चला कि ‘वे लोग’ मेरी सास और मेरी बेटी को अपने साथ ले गए हैं…. जब हम वहाँ गए तो इलाके में बहुत गंध थी। हम लोगों ने खुद घंटों हर जगह की खुदाई की। थोड़ी देर बाद मेरी नजर हाथ के कड़े और गले में पहनने वाले काले-लाल रेशम के धागे पर पड़ी जिसकी वजह से मैं अपनी बेटी के शव को पहचान पाया।”-आशीष
“मेरे पति मेरी बेटी को लेकर पास के गाँव में काम करने गए थे। शाम को मेरी बहन को एक फोन आया और कहा कि ‘उन लोगों’ ने उन दोनों की कुर्बानी दे दी है। अब हमारे साथ भी यही होगा। डरकर मैं घर में तीन दिन छिपी रही। फिर फौज हमें शिविर में लेकर आई।”-कुकु बाला
आप सोच रहे होंगे ये क्या है? दरअसल, ये एक माँ और एक पिता का बयान है जिनकी बच्चियों ने और घरवालों ने साल 2017 में म्यामांर के रखाइन प्रान्त में रोहिंग्या ‘आतंकियों’ की उस बर्बरता का चेहरा देखा जो किसी की भी रूह कँपा दे। शुद्ध काले नकाब में तलवार, चाकू, रॉड, भाले जैसे कई हथियारों से लैस होकर सैकड़ों हिंदुओं का नरसंहार! कल्पना करने पर लगता है जैसे कोई ISIS का हमला हो। यह घटना है 25-26 अगस्त 2017 की। हमलावर भले ही ISIS से नहीं थे, पर उनके मनसूबे उतने ही नापाक थे।
आशीष कुमार ने अपनी 8 साल की बेटी को खोया था। गर्भवती कुकु बाला ने अपने पति और बेटी को। इनके जैसे सैंकड़ों परिवार थे जिनकी सिसकियाँ रुकने का नाम नहीं ले रहीं थी। उस दिन ‘काले नकाब’ में रोहिंग्या ‘आतंकियों’ ने म्यांमार के रखाइन प्रांत के खा मॉन्ग सेक में जो तबाही मचाई उसकी गंध आज भी सैंकड़ों पीड़ित हिंदू नहीं भूल पाते। भूलें भी कैसे? जमीन में दबाई गई एक साथ 45 लाशें जो क्षत-विक्षत देखी थीं। मात्र दो गाँव से 99 लोग मार दिए गए थे। 1000 हिंदू लापता हो गए। 620 परिवारों को शिविरों में रहने को मजबूर होना पड़ा था।
खा मॉन्ग सेक नरसंहार ( Kha Maung Seik massacre )
25 अगस्त 2017 को खा मॉन्ग सेक ( Kha Maung Seik ) यानी फाकिरा बाजार के नजदीक रहने वाले हिंदुओं के लिए भयावह रात थी। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इस मामले में अपनी रिपोर्ट में रोहिंग्या ‘आतंकियों’ का हाथ बताया था। रिपोर्ट में एमनेस्टी ने कहा था कि इस नरसंहार को अंजाम देने वाले अराकान रोहिंग्या सैलवेशन आर्मी (आरसा) के गुर्गे हैं (म्यांमार में इन्हें रोहिंग्या आतंकी भी कहा जाता है)। उन्होंने ही पहले सुरक्षा बलों पर दर्जनों हमले किए। साथ ही हिंदू गाँव नॉक खा माउंग सेक ( Kha Maung Seik ) पर 25 अगस्त को हमला किया और कई हिंदू बंदी बना लिए गए। इनमें से अधिकांश को असहनीय यातनाएँ देकर मार डाला गया।
रिपोर्ट्स बताती हैं कि दो दिन में 45 हिंदुओं के शव 3 गड्ढों में पाए गए थे। ये शव जब निकाले गए तो बुरी तरह क्षत-विक्षत थे। कुछ का गला काटा गया था, कुछ का सिर और कुछ के अन्य अंग। पहले शवों की गिनती 45-48 के बीच होती रही। फिर हमले में गायब कुल संख्या से मालूम हुआ कि लगभग 99 हिंदुओं को वहाँ मौत के घाट उतारा गया।
रोहिंग्या ‘आतंकियों’ की कार्रवाई पर मीडिया रिपोर्ट कैसी थी? इस पर हम अंत में थोड़ी चर्चा जरूर करेंगे। लेकिन उससे पहले इस नरसंहार की शुरुआत को समझिए। वैसे तो म्यांमार के रखाइन प्रांत में साल 2012 से ही बौद्धों और रोहिंग्या ‘आतंकियों’ के बीच सांप्रदायिक हिंसा शुरू थी। लेकिन साल 2017 में हालात तब भयानक हो गए, जब म्यांमार में मौंगडो बॉर्डर पर रोहिंग्या आतंकियों के हमले में 9 पुलिस अफसरों की मौत हो गई।
रोहिंग्या कट्टरपंथियों ने 30 पुलिस थानों को अपना निशाना बनाकर 9 पुलिस कर्मियों को मौत के घाट उतारा था। जवाब में प्रशासन ने भी कार्रवाई की और करीब 90 हजार रोहिंग्या मुसलमानों को गाँव छोड़कर बांग्लादेश जाना पड़ा। इन लोगों ने म्यांमार प्रशासन पर हत्याओं और बलात्कार का आरोप मढ़ा। इससे वैश्विक स्तर पर भी म्यांमार की तीखी आलोचना हुई। लेकिन म्यांमार ने इसे क्लीयरेंस ऑपरेशन बताते हुए रोहिंग्या चरमपंथियों के हमलों का वाजिब रिएक्शन करार दिया ।
आज इन्हीं रोहिंग्याओं के लिए इंसानियत के नाम पर जिस तरह छाती पीटी जाती है। बड़ी-बड़ी संस्थाएँ इन पर दया दिखाने की बात करती हैं। इन्हें शरण देने की पैरवी करती हैं। उसी ढंग से क्या आपने कभी भी रखाइन प्रांत के इन लाचार हिंदुओं के बारे में सुना है? जिनका न प्रशासन से कुछ मतलब था और न चरमपंथियों से। लेकिन तब भी वह इनकी बर्बरता का शिकार हुए।
महिला, बच्चे, पुरुष…सबको बनाया गया निशाना
पश्चिमी म्यांमार के हिंदू आबादी वाले गाँव में रीका धर ने अपने पति, 2 भाइयों और कई पड़ोसियों को नृशंसतापूर्वक मौत के घाट उतरते हुए अपनी आँखों से देखा। घटना के काफी दिनों बाद एक न्यूज चैनल से बातचीत में धर ने बताया “कत्ल करने के बाद, उन्होंने बड़े-बड़े तीन गड्ढे खोदे और सबको उसमें फेंक दिया। उनके हाथ उस समय भी पीछे की ओर बँधे हुए थे और आँखों पर पट्टी बाँध दी गई थी।”
इसी तरह 15 वर्षीया प्रोमिला शील ने बताया था, “पहाड़ियों में ले जाने के बाद उन्होंने हर किसी को मौत के घाट उतार दिया। मैंने अपनी आँखों के सामने यह सब देखा।”
राजकुमारी ने कहा, “हमें उस तरफ देखने से मना किया गया था। उनके हाथ में चाकू, तलवारें और लोहे की रॉड थी। हमने खुद को झाड़ियों में छिपा लिया था। इसलिए हम वो सब देख पाए। मेरे पिता, मेरे चाचा और मेरे भाई…सबको उन्होंने काट डाला।”
सोचिए इस नरसंहार में बच्चे, महिला, पुरुष, बुजुर्ग किसी को नहीं छोड़ा गया। जब स्वजनों को खोजने के लिए अगले दो दिन खुदाई हुई तो हर जगह हड़कंप था। परिवारों की चीखें बंद होने का नाम नहीं ले रहीं थी। लोग एक दूसरे से लिपट-लिपट कर अपने परिजनों के लिए रो रहे थे। कुछ की आँखों से आँसू सूख चुके थे और कुछ इस इंतजार में थे कि क्या पता उनके स्वजन कहीं से लौट आएँ।
पूरे नरसंहार ने हर जगह म्यांमार प्रशासन को लेकर एक ओर जहाँ बहुत सारे सवाल खड़े कर दिए थे, वहीं हिंसा के बाद रोहिंग्या मुस्लिमों ने बांग्लादेश जाना शुरू कर दिया था। रखाइन प्रांत के दो गाँवों में हुए इस ‘आतंकी’ हमले के बाद सैकड़ों हिंदू भी बिखर गए। कइयों का पता नहीं चल पाया और कइयों को शिविरों में ठहराया गया। इस हमले से पहले वहाँ 14 हजार हिंदू रहते थे। बौद्ध और रोहिंग्या मुसलमानों की तादाद के मुकाबले प्रांत में ये संख्या हमेशा से बहुत कम थी।
म्यांमार हिंदू नरसंहार पर क्या कहती है एमनेस्टी की रिपोर्ट?
एमनेस्टी की रिपोर्ट में स्थानीय लोगों की बयानों के हवाले से कहा गया कि उस रात नॉक खा मॉन्ग सेक ( Kha Maung Seik) नामक गाँव में काले नकाब पहनकर आए हमलावर ग्रामीणों की आँखों पर पट्टी बाँधकर शहर से बाहर ले गए। वहाँ उन्होंने सबसे पहले महिलाओं और बच्चों से पुरुषों को अलग किया। कुछ घंटों बाद 53 हिंदुओं का गला रेत दिया गया। ये शुरुआत पुरुषों से हुई। इस घटनाक्रम में नकाबपोशों ने 8 हिंदू महिलाओं समेत कुछ बच्चों को छोड़ने की बात मान ली। लेकिन वो भी तब, जब इन लोगों ने इस्लाम कबूलना स्वीकार कर लिया।
इस रिपोर्ट के अलावा जी न्यूज की ग्राउंड रिपोर्ट भी यह दावा करती है कि उन्हें म्यांमार के स्टेट काउंसलर से आधिकारिक जानकारी मिली थी। उसमें भी यही बात कही गई कि 300 रोहिंग्या आतंकियों ने 100 हिंदुओं का अपहरण किया और उनमें से 92 की हत्या कर दी गई, जबकि 8 महिलाएँ बच गईं क्योंकि उन्होंने इस्लाम स्वीकार करने को मजबूर किया गया और बाद में बांग्लादेश ले जाया गया।
फॉर्मिला नाम की महिला ने एम्नेस्टी को बताया कि उसने हिंदू पुरुषों को मरते हुए भले ही नहीं देखा लेकिन जब नकाबपोश वापस लौटे तो उनके हथियार और हाथ पर खून था। उन्होंने महिलाओं को सूचित किया उनके आदमियों को मार दिया गया। बाद में फॉर्मिला समेत 7 अन्य महिलाओं को अलग ले जाया गया। उसने पीछे मुड़कर देखा तो ASRA के आतंकी महिलाओं और पुरुषों को भी मार रहे थे। फॉर्मिला ने एक घटना का जिक्र करते हुए कहा, “मैंने देखा कि एक आदमी ने महिला के बाल को पकड़ा हुआ था और दूसरे ने चाकू लेकर उसका गला काट दिया।”
घटना के उसी दिन उसी प्रात के एक अन्य गाँव Ye Bauk Kyar से 46 लोग लापता हो गए। इनके शव बहुत ढूँढने के बाद भी बरामद नहीं हो पाए। इसी तरह 26 अगस्त 2017 को ASRA आतंकियों मे मंगडौ शहर के पास Myo Thu Gyi गाँव में 6 हिंदुओं को गोली से मार दिया। 25 वर्षीय महिला ने बताया कि उसके पति और बेटी को उसके सामने नकाबपोशों ने मारा। हालाँकि वह उनका चेहरा नहीं देख पाई। लेकिन उनकी आँखे, बड़ी-बड़ी बंदूकें और तलवारे उसने जरूर देखीं। उसने कहा, “मेरे पति को जब मारा गया। मैं थोड़े होश में थी।”
मीडिया ने हिंदू नरसंहार और इस्लामी आतंक की खबर को कैसे परोसा?
इस नरसंहार ने विश्व के कोने-कोने मे रोहिंग्या मुसलमानों की बर्बरता पर सवाल खड़े कर दिए थे। ऐसे में वामपंथियों की पहली जरूरत थी कि रोहिंग्याओं पर लगे दाग को साफ किया जाए। शायद इसीलिए मात्र कुछ महीनों के बाद ही द क्विंट, बीबीसी और द इंडिकटर जैसे वेबसाइट्स पर कई लेख छपे।
इन आर्टिकल्स का मूल उद्देश्य लोगों के जेहन में ये बात डालना था कि आखिर जिस प्रकार से इस पूरे हमले के लिए मुस्लिम चरमपंथियों पर मढ़ा जा रहा है, उसमें वास्विकता में म्यांमार सरकार का, वहाँ की सेना का और इलाके के बहुसंख्यकों का भी हाथ हो सकता है। अपने लेख को सही साबित करने के लिए इनमें यहाँ तक बता दिया गया कि आखिर ARSA के लोगों की क्या यूनिफॉर्म होती है, उनके नारे क्या होते हैं और क्यों ये काम उनका नहीं है।
तमाम हिंदुओं के बयान सुनने के बाद भी रिपोर्ट्स में पूछा गया कि आखिर रोहिंग्या मुसलमान रखाइन प्रांत के हिंदुओं को क्यों मारेंगे, उनकी हालत तो खुद रोंहिंग्या की तरह है। मीडिया रिपोर्ट्स में यह भी आरोप लगाए गए कि म्यांमार प्रशासन ने हिंदुओं को रोहिंग्याओं से अलग करने के लिए काफी आगे तक निकल गए हैं। इसलिए बौद्धों ने जो हमला किया उसका इल्जाम रोहिंग्या पर थोपा जा रहा है। अपवादों के उदाहरण देकर यह एंगल रखने की कोशिश भी की गई कि नकाबपोशों ने मुस्लिमों को भी निशाना बनाया।
जावेद अख्तर ने भी म्यांमार में हिंदू नरसंहार के लिए वहाँ की सैन्य कार्रवाई को दोषी ठहराया था। इसके बाद उनकी बहुत आलोचना हुई थी।
जावेद अख्तर ने ट्वीट करते हुए लिखा था, “अगर रखाइन में हिंदुओं की कब्र मिली है तो यह सब वहाँ की सेना की वजह से हुआ होगा। नहीं तो, सैकड़ों की संख्या में हिंदू लोग वहाँ से रोहिंग्याओं के साथ क्यों भाग गए।”
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