बेंगलुरु में उग्र मुस्लिम भीड़ ने 11 अगस्त 2020 को दलित कॉन्ग्रेस विधायक के घर तोड़-फोड़ की और सामान लूटे। पुलिस थाने और पुलिसकर्मी भी हिंसा और दंगों का शिकार हुए। दंगाइयों ने 250 गाड़ियाँ फूँक दीं और लगभग 60 पुलिसकर्मी घायल हुए। इन सबके पीछे की वजह पैगंबर मोहम्मद के संबंध में कथित फेसबुक टिप्पणी रही। अब फेसबुक पर ही इस घटना की प्रतिक्रिया भी नज़र आ रही है। लिबरल्स का एक बड़ा समूह फेसबुक को अलविदा कह रहा है।
बेंगलुरु में हुए दंगों के बाद कई लिबरल्स ने ऐलान किया है कि वह अपना फेसबुक एकाउंट बंद कर देंगे। इस कड़ी में एनडीटीवी की पूर्व पत्रकार निधि राजदान ने अपना फेसबुक एकाउंट बंद करने का ऐलान किया। निधि ऐसा करने वाले शुरुआती लोगों में एक हैं।
वहीं स्वाति चतुर्वेदी ने ट्वीट करते हुए इस बात की जानकारी दी कि उन्होंने सालों पहले फेसबुक एकाउंट बंद कर दिया था।
आम तौर पर ऐसा अनुमान लगाया जा सकता है कि लिबरल्स ने यह कदम बेंगलुरु में हुई हिंसा के बाद उठाया है। लेकिन अफ़सोस ऐसा नहीं है! लिबरल्स ने अपना फेसबुक एकाउंट इस वजह से नहीं बंद किया। बल्कि लिबरल्स ने अपना एकाउंट इसलिए बंद किया क्योंकि वॉल स्ट्रीट जर्नल ने अपनी रिपोर्ट में कुछ दावा किया था। दावे के मुताबिक़ फेसबुक के एक (बेनाम) शीर्ष अधिकारी ने ऐसा कहा कि एंटी मुस्लिम (मुस्लिम विरोधी) पोस्ट को ‘हेट स्पीच’ के दायरे में नहीं रखा जाएगा।
कुल मिला कर लिबरल्स ने बेनामी ‘पूर्व या वर्तमान’ फेसबुक कर्मचारी के आधार पर ऐसा अनुमान लगा लिया। साथ ही घोषित भी कर दिया कि अंखी दास मोदी समर्थक हो सकती हैं। वहीं दूसरी तरफ मुस्लिम भीड़ ने जिस तरह शहर में दंगा भड़काया और आम लोगों को नुकसान पहुँचाया, वह कॉन्ग्रेस विधायक के भतीजे को कोसने का एक सटीक ज़रिया बन गया। वह जिसके कथित फेसबुक पोस्ट या कॉमेंट के कारण बेंगलुरु को दंगा देखना पड़ा।
इसके बाद भाजपा विधायक टी राजा सिंह को भी निशाने पर लिया गया, जिन्होंने रोहिंग्या और मुस्लिमों पर पोस्ट किया था। वॉल स्ट्रीट जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट में इसका ज़िक्र है। रिपोर्ट में फेसबुक के एक कर्मचारी ने टी राजा को खतरनाक व्यक्ति बताया।
यह भी कहा गया कि अंखी दास ने टी राजा के मुस्लिम विरोधी पोस्ट हेट स्पीच के दायरे में रखने का विरोध किया। क्योंकि ऐसा करने से भारत में फेसबुक का व्यावसायिक प्रभाव कम होगा। रिपोर्ट में यह भी आरोप लगाया गया है कि ऐसा सिर्फ टी राजा ही नहीं बल्कि 3 और हिंदूवादी नेताओं के मामले में किया गया है। उनके भड़काऊ भाषणों को हेट स्पीच के दायरे में नहीं रखा गया है।
वॉल स्ट्रीट की रिपोर्ट में इसके अलावा भी कई और दावे किए गए हैं। फेसबुक की कम्युनिकेशन एग्जीक्यूटिव एंडी स्टोन ने बताया कि अंखी दास ने सिर्फ अपने डर के आधार पर टी राजा का एकाउंट बंद नहीं किया। इसके अलावा फेसबुक ने ऐसे कई कदम उठाए हैं, जो कथित तौर पर भाजपा के हित में हैं।
फेसबुक ने 2019 के आम चुनावों के दौरान कॉन्ग्रेस पार्टी के तमाम पेज भी निष्क्रिय कर दिए थे। इसके अलावा फेसबुक पर यह आरोप भी लगाया गया कि समूह ने भाजपा विरोधी ख़बरों को प्रतिबंधित कर दिया था।
हैरानी की बात यह कि जब एक मुस्लिम व्यक्ति ने सितंबर में एक दलित लड़की के साथ बलात्कार किया था, तब फेसबुक ने उल्टा मुस्लिम व्यक्ति का बचाव किया था तब इनमें से किसी लिबरल ने अपना फेसबुक एकाउंट नहीं डिलीट किया था। बल्कि फेसबुक ने इस घटना से जुड़े लेख और ख़बरें ही हटा दी थीं।
फेसबुक ने ऐसे व्यक्ति को अब्यूजिव ट्रोल एज़ पॉलिसी हेड नियुक्त किया था, जो पहले प्रशांत किशोर के लिए काम करता था। इतना ही नहीं बेंगलुरु दंगों के मामले में भी लिबरल मीडिया ने भुक्तभोगी को ही आरोपित बना कर दिखाया। लिबरल मीडिया उन्हें ही भीड़ के सामने रख देना चाहता था, जिन्होंने इस घटना की सबसे महँगी कीमत चुकाई। यहाँ तक कि फेसबुक पर भी तमाम लोगों ने उनके (कॉन्ग्रेस विधायक और उसके भतीजे) को धमकियाँ दी। लेकिन फेसबुक ने इसे हेट स्पीच के दायरे में नहीं रखा।
मुस्लिम समुदाय के तमाम लोगों ने कॉन्ग्रेस विधायक के भतीजे को फेसबुक पर जान से मारने की धमकी तक दी। इस बात पर लिबरल्स ने गुस्सा नहीं जताया लेकिन एक ‘बेनाम फेसबुक कर्मचारी’ ने वॉल स्ट्रीट जर्नल को कई बातें बताई, जिसके आधार पर उन्होंने फेसबुक पर भाजपा का समर्थन करने का आरोप लगा दिया। इससे लिबरल्स में गुस्सा और आक्रोश भर गया। जबकि फेसबुक पर खुद न जाने कितनी ऐसी ख़बरें और लेख मौजूद हैं, जो सीधे शब्दों में भाजपा की आलोचना करते हैं।
इसके पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रंप के चुनाव जीतने पर भी ऐसी ही बातें सामने आई थीं। जैसे ही दोनों चुनाव जीत कर आए थे उन पर तैयार की गई रिपोर्ट ऐसी नज़र आ रही थी जैसे लोगों के घावों पर नमक छिड़क दिया गया हो। अब उन्हें एक नियंत्रण के लिए कुछ कारणों की ज़रूरत पड़ सकती है।
इससे पहले आकार पटेल ने भी ब्राह्मणों पर होने वाली हिंसा को सामान्य बताया था। उनके हिसाब से यह बुद्धिजीवी है। लेकिन जैसे ही ब्राह्मण शब्द की जगह मुस्लिम शब्द का इस्तेमाल होता है वैसे ही यह हेट स्पीच बन जाती है। यहाँ किसी भी तरह के सिद्धांत काम नहीं करते हैं।