अभिरंजन कुमार
कई लोग कांग्रेस प्रवक्ता राजीव त्यागी की मौत के लिए बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा की कही किसी बात को ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं। अपने आप में इससे बड़ा बकवास और कुछ नहीं हो सकता। मैंने वह टीवी डिबेट नहीं देखा है, फिर भी ऐसा कह रहा हूँ। पहली बात कि अगर आपने टीवी पर जाकर “डॉग फाइट” करने का विकल्प चुना है, तो खरोचों से इतना डरते क्यों हो? दूसरी बात कि बदतमीजी किसी खास पार्टी के नेता या प्रवक्ता का पेटेंट नहीं है।
बात मुझे समझ में आ गई। फिर मैंने खुद से बात की और कहा- “भाषा सीखी, मर्यादा सीखी, संस्कार सीखा, पत्रकारिता सीखी, लिखना-बोलना सीखा, तर्क-वितर्क सीखा, धैर्य सीखा, संयम सीखा, मानवता सीखी, तथ्यों के साथ अकाट्य तरीके से अपनी बात रखना सीखा, किताबें लिखीं, टीवी शो और इंटरव्यू किये, कई चैनलों को चलाया, संपादन और प्रबंधन सीखा। लेकिन बदतमीजी तो सीखी ही नहीं। अब क्या करूं?”
इसलिए मेरे भाई, हर बात का बतंगड़ मत बनाओ। राजीव त्यागी की असामयिक मृत्यु का मुझे भी दुख है, लेकिन जैसा कि कहा जा रहा है, यदि उनका हृदय इतना कमज़ोर था कि किसी एक बात से उन्हें हार्ट अटैक आ जाए, तो उन्हें किसी राजनीतिक दल का प्रवक्ता नहीं बनना चाहिए था। और अगर बन भी गए थे, तो टीवी डिबेट में तो बिल्कुल नहीं जाना चाहिए था। पार्टी से कहना चाहिए था कि रणदीप सुरजेवाला की तरह मुझसे भी केवल प्रेस कॉन्फ्रेंस कराओ।
इसलिए अतिवादी मत बनिए, अन्यायी मत बनिए, तर्क और सच्चाई का रास्ता मत छोड़िए। मैं तो हमेशा से इस बात का पक्षधर रहा हूँ कि वाद-विवाद और लिखने-बोलने में कभी भी भाषाई मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया जाना चाहिए। आप तमाम मित्र मेरे इस शाश्वत विचार के गवाह भी हैं, इसलिए आशा है कि मेरी बात को ठीक से समझने का प्रयास करेंगे।
ईश्वर राजीव त्यागी की आत्मा को शांति दें। उन्हें मेरी भावभीनी श्रद्धांजलि!