नई दिल्ली। दिल्ली में हुए दंगे तीन चरणों में अंजाम दिए गए थे. पहले चरण के तहत, नागरिकता कानून और NRC के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किए गए, दूसरे चरण के तहत सड़कों को जाम किया गया और तीसरे चरण के तहत दंगों को अंजाम दिया गया. गुलफिशा के कबूलनामे से भी दिल्ली दंगों की साजिश की यही क्रोनोलॉजी सामने आई है.
गुलफिशा ने अपने कबूलनामे में बताया है कि साजिश के तहत वो खुद बुर्के वाली महिलाओं और बच्चों को गली-गली जाकर नागरिकता कानून और NRC के खिलाफ इस हद तक भड़काती थी कि ये सभी लोग विरोध प्रदर्शन में आने के लिए तैयार हो जाते थे. विरोध प्रदर्शन में महिलाओं को लाने के पीछे एक मकसद ये था कि पुलिस इन महिलाओं को जबरदस्ती उठाएगी नहीं, जैसा कि शाहीन बाग में हुआ था. और अगर पुलिस ऐसा करने की कोशिश करेगी या बल प्रयोग करेगी तो माहौल खराब हो जाएगा. जिससे दंगों की योजना बनाने वालों को ही फायदा होगा.
आरोपी गुलफिशा ने पुलिस को क्या बताया?
गुलफिशा ने दिल्ली पुलिस को बताया है कि उसकी दोस्ती दिल्ली यूनिवर्सिटी के पिंजरा तोड़ संगठन की दो महिला सदस्यों देवांगना और परोमा राय से हुई. इस संगठन के सदस्यों पर दिल्ली दंगों की योजना में शामिल होने का आरोप है. और इस संगठन को गाइड करने वाला कोई और नहीं, बल्कि दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अपूर्वानंद थे. ये लोग चाहते थे कि विरोध प्रदर्शन ऐसा हो, जो धर्मनिरपेक्ष लगे. यानी ऐसा ना लगे कि ये प्रदर्शन सिर्फ मुस्लिमों का प्रदर्शन है.
गुलफिशा प्रोफेसर अपूर्वानंद और राहुल रॉय नाम के एक व्यक्ति के संपर्क में आई और इनके जरिए फिर गुलफिशा की मुलाकात जेएनयू के पूर्व छात्र नेता उमर खालिद से हुई. गुलफिशा के मुताबिक दंगों से दो महीने पहले दिसंबर में ही प्रोफेसर अपूर्वानंद और उनसे जुड़े लोगों ने समझा दिया था कि नागरिकता कानून के विरोध प्रदर्शन के बहाने, ये लोग सरकार के खिलाफ बगावत का माहौल बना सकते हैं और सरकार को घुटने पर ला सकते हैं.
आरोपी का दावा
आरोपी गुलफिशा का दावा है कि प्रोफेसर अपूर्वानंद ने उसे बताया था कि जामिया यूनिवर्सिटी के छात्रों के जामिया कॉर्डिनेशन कमेटी दिल्ली में 20 से 25 जगह पर आंदोलन शुरू करवा रही है और इस आंदोलन का मकसद भारत सरकार की ऐसी छवि को प्रस्तुत करना है, कि भारत सरकार, मुस्लिमों के खिलाफ है. लेकिन प्रोफेसर ने ये कहा कि ये तभी होगा जब विरोध प्रदर्शन के बहाने दंगे करवाए जाएं.
अब आप सोचिए कि देश की छवि खराब करने के लिए ये लोग किस हद तक जाने की प्लानिंग कर रहे थे और इन्होंने आखिरकार इस प्लानिंग को अंजाम भी दे दिया. गुलफिशा ने अपने बयान में कहा है कि जामिया कॉर्डिनेशन कमेटी के साथ मिलकर उसे सीलमपुर के इलाके में 24 घंटे के प्रदर्शन के लिए जगह देखने को कहा गया.
पिंजरा तोड़ ग्रुप ने दंगों में की मदद
गुलफिशा ने सीलमपुर में ये जगह देखी और उसी पर विरोध प्रदर्शन हुआ. इसके लिए गुलफिशा की मदद दिल्ली यूनिवर्सिटी के पिंजरा तोड़ ग्रुप की महिला सदस्यों ने की और फिर इसी वर्ष 5 जनवरी से सीलमपुर फल मंडी में योजना के तहत विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया. गुलफिशा के मुताबिक सीलमपुर में विरोध प्रदर्शन के दौरान उसे जामिया कॉर्डिनेशन कमेटी के सदस्य हर तरह की मदद करते थे.
गुलफिशा ने बताया कि ये लोग पैसों से मदद करते थे और विरोध प्रदर्शन में आकर भड़काऊ भाषण देते थे, जिससे लोग धरने से जुड़े रहे. ये लोग सीक्रेट मीटिंग करते थे, जिसमें प्रोफेसर अपूर्वानंद, उमर खालिद और दूसरे लोग शामिल होते थे. उमर खालिद ने गुलफिशा से कहा था कि उसके पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया PFI से भी अच्छे संबंध हैं और पैसे की कोई कमी नहीं है और इससे ये लोग मोदी सरकार को उखाड़ फेकेंगे.
प्रोफेसर अपूर्वानंद को पिता मानता था उमर खालिद
गुलफिशा के मुताबिक प्रोफेसर अपूर्वानंद को उमर खालिद पिता समान मानता था. प्रोफेसर ने ही दंगों के लिए इन लोगों को संदेश दिया था, और इन लोगों को दंगों के लिए पत्थर, खाली बोतलें, एसिड और चाकू इकट्ठा करने को कहा था. सभी महिलाओं से ये कहा गया था कि वो अपने साथ सूखी लाल मिर्च रखें, जिसे दंगों के दौरान आंखों में झोंकने के लिए इस्तेमाल किया जा सके.
गुलफिशा ने बताया कि 22 फरवरी को चक्का जाम की साजिश के तहत महिलाओं को इकट्ठा किया गया और बहाना ये बनाया गया कि ये लोग कैंडल मार्च करेंगे, लेकिन ये लोग दिल्ली में जाफराबाद मेट्रो स्टेशन के नीचे धरना देकर बैठ गए और रोड ब्लॉक कर दिया. यानी ये सब जानबूझ कर किया गया और इसी के कुछ दिन बाद दिल्ली के सीलमपुर और जाफराबाद में दंगे हो गए थे.
भारत को शर्मिंदा करने की थी साजिश
इसी दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप का भी भारत दौरा होने वाला था. इन लोगों को भारत की छवि खराब करनी थी, इसलिए ट्रंप के दौरे के समय ही दंगा करवाने का पूरा प्लान पहले से बना लिया गया था. इसी को ध्यान में रखते हुए चक्का जाम हैशटैग से वॉट्सऐप और सोशल मीडिया पर पोस्ट किए गए. इसको भी दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अपूर्वानंद मॉनिटर कर रहे थे. गुलफिशा ने ये भी बताया कि धरना देकर सड़क पर जाम करने के पीछे दंगाईयों का मकसद ये था कि वहां पर हिंदू फंस जाएंगे और इससे जब लोग गुस्से में आ जाएंगे तो पथराव करके दंगे करा दिए जाएं, जिससे ट्रंप की यात्रा के समय भारत को हर जगह पर शर्मिंदगी होगी.
दंगों की इस साजिश को बहुत गोपनीय तरीके से अंजाम दिया गया था और इसके लिए कई तरह के कोड वर्ड्स भी रखे गए थे उदाहरण के लिए एक कोड वर्ड था – ईद पर नैनीताल चलो. इसका अर्थ था सड़कों को ब्लॉक करना. दूसरा कोड वर्ड था चांद रात- जिसका मतलब था चक्का जाम करने से पहले की रात. ये कोड वर्ड भी गुलफिशा और उसकी टीम ने दिए थे. इस बात का खुलासा दिल्ली दंगों के आरोपी ताहिर हुसैन ने पुलिस को दिए अपने बयान में किया था.
प्रोफेसर अपूर्वानंद ने दी सफाई
अपने खिलाफ लगे आरोपों पर दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अपूर्वानंद ने भी सफाई दी है और ये कहा है कि उन्हें हैरानी है कि किसी विरोध प्रदर्शन को समर्थन देने वाले लोगों को ही पुलिस समझ रही है कि ये लोग दंगों में शामिल हैं और उन्हें उम्मीद है कि पुलिस निष्पक्ष होकर इस मामले की जांच करेगी.