डा. मोहम्द कामरान
5 अगस्त 2020, आखिर वो दिन आ ही गया जिसका हिंदुस्तान की सरजमी को बेसब्री से इंतजार था। एक लंबी कानूनी लड़ाई और हजारों बेगुनाहों के बलिदानों के बाद, बेहद न्याय प्रिय भाजपा सांसद एवं पूर्व मुख्य न्यायाधीश द्वारा फ़ैसले पर मोहर लगाने के बाद अयोध्या में भव्य मंदिर के निर्माण का कार्य शुरू होगा, बदलते वक्त के साथ सियासत ने अनेक रंग खेले लेकिन हर मज़हबी रंग ने इस फैसले का दिल खोलकर स्वागत किया और अब हर एक भारतीय उस स्मरणीय पल का गवाह बनने को आनन्दित हैं जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं अन्य महान हस्तियों द्वारा अयोध्या में शिलान्यास किया जाएगा।
इस पल को यादगार बनाने के लिए कोई देसी घी के दिए जलाएगा तो कहीं आसमान में पटाखे जलाकर दिवाली मनाई जाएगी, सबसे महत्वपूर्ण होगा 5 अगस्त का बुधवार का दिन जब रामलला हरे रंग के वस्त्र पहनेंगे और पूरे ब्रह्मांड में अयोध्या नगरी से नज़र आएंगे और सम्पूर्ण वातावरण हरे राम, हरे राम, राम राम राम हरे हरे के मंत्रों से गुंजायन होगा।
इस आयोजन को लेकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी ने भी दुनिया भर के राम भक्तों से अपील की है कि कोविड की सावधानियों के साथ आयोजन से जुड़े और 4 और 5 अगस्त को अपने अपने घरों पर दीपक जलाएं, अखंड रामायण का आयोजन करें और इस उत्साह के बीच संयम रखते हुए वर्तमान परिस्थितियों के दृष्टिगत शारीरिक दूरी बनाए रखें।
हम सबको भी 5 अगस्त को हरे रंग के वस्त्र धारण करने चाहिए और अपने अपने घरों की छत पर हरे हरे रंग का ध्वज लहराना चाहिए। वैसे भी हरे रंग की अपनी उपयोगिता है, हरा रंग खुशहाली, शांति, समृद्धि और विकास का प्रतीक है। कोरोना महामारी में भी हरे रंग की बहुत अधिक महत्ता है, जिस जिले को हरे रंग से दर्शाया जाता है उसका मतलब खुशहाल है, न तो कोई कोरोना संक्रमण है और न ही कोरोना का ख़ौफ़, ट्रैफिक सिग्नल पर भी हरे रंग को देखकर ही हमारी गाड़ी आगे खिसकती है वरना गाड़ी खड़ी रह जाती है।
वैसे तो हमारी जिंदगी हर वक्त एक नया रंग दिखाती है, सुबह होते ही सूरज की किरणें जब अपना रंग बिखेरते हैं तो हम सबकी जिंदगी सतरंगी नजर आती हैं लेकिन रंगों को सियासी और मजहबी खेमों में बांटने का सिलसिला जब से शुरू हुआ तो जिंदगी सतरंगी ना होकर दो चार रंगों में ही सिमट जाती है, कहीं केसरिया रंग, कहीं काला तो कहीं लाल, कही नीला और कही हरा रंग अपनी अपनी सियासी जुबान बोलने लगते हैं।
हरे रंग को अगर इस्लाम से जोड़कर देखा जाता है तो भगवा या केसरी रंग को हिंदू धर्म के साथ जोड़ दिया गया है, नीले रंग को मौजूदा राजनीतिक संदर्भ में दलित आंदोलन के साथ जोड़कर देखा जाता है और लाल रंग को कामरेड के साथ परिभाषित किया गया है, काला अगर विद्रोह दर्शाता है तो सफ़ेद आत्मसमर्पण, शांति का प्रतीक है।
रंगों को सांप्रदायिक रंग में रंगने की सियायत 1857 के बाद अंग्रेजों ने शुरू की। 1857 से पहले हिंदुस्तान की सियासत में ना तो संप्रदायिकता थी और ना ही किसी तरीके की भेदभाव की नीति अपनाई जाती थी। 1857 के महासंग्राम के बाद अंग्रेजों की “फूट डालो और राज करो” की नीति के कारण हिंदू और मुसलमान में एक अलगाववाद की परंपरा का प्रारंभ हुआ जो आज के सियासी दलों ने भी अपना लिया है और धर्म के प्रतीक माने जाने वाले रंगों को सियासी और संप्रदायिक रंग में रंग दिया है, अंग्रेजों का बोया हुआ ये बीज आज एक विशाल पौधा बन चुका है और स्वतंत्र भारत के लोकतंत्र में हमने कदम तो रख दिया लेकिन सांप्रदायिक भेदभाव की उस नीति को जो एक बीज से आज पौधे के रूप में दिखाई दे रही है कभी भी काटने की कोशिश नहीं की क्योंकि देश की वर्तमान राजनीति ऐसे हरे भरे पेड़ को काटकर वर्तमान राजनीतिक पर्यावरण के लिए नुकसानदेह समझती है।
लेकिन यह एक ऐसा मौका आया है कि हम सब को सांप्रदायिक एकता सौहार्द और हिंदुस्तान की अखंडता को दर्शाने का मौका मिला है। एक तरफ घी के दिए जल रहे होंगे तो वही हरे वस्त्रों में राम जी नजर आ रहे होंगे और हम सबके घरों पर हरे हरे झंडे लहरा रहे होंगे और इस मौके पर रंगों की सियासत और सांप्रदायिक भेदभाव की नीति को हम सब दफन कर खुशियां मना रहे होंगे, तभी साकार होगा मोदी जी के विकास का स्वप्न, सबका साथ, सबका विकास। ।। सावन के हरे भरे वातावरण में , हरे राम हरे राम के मंत्रोच्चरण के बीच हरे वस्त्र धारण करे रामलला के उमंग, उत्साह भरे पर्व पर हरे हरे झंडे लहराए और नफ़रत की सियासत को दिये कि आग में जलाएं।