नई दिल्ली। भारत ने जिस तरह से चीन के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंधों को लेकर कदम बढ़ाने शुरु किये हैं, उससे चीन की बेचैनी बढ़ती जा रही है। पहले 59 चीनी मोबाइल एप को प्रतिबंध लगा और उसके बाद इनके क्लोन 47 एप को और प्रतिबंधित कर दिया गया है। इसके अलावा करीब 200 और मोबाइल एप को चिन्हित किया गया है, जिन्हें भारतीय बाजार से बाहर का रास्ता कभी भी दिखाया जा सकता है। इन कदमों पर नई दिल्ली स्थित चीन के दूतावास ने बेहद सख्त बयान जारी करते हुए इसे चीन की कंपनियों के कानूनी अधिकार का उल्लंघन बताया है और यह भी धमकी दी है कि चीनी कंपनियों के हितों की रक्षा के लिए हरसंभव कदम उठाये जाएंगे।
इसके पहले भी जब भारत की तरफ से चीन की कंपनियों को मंदी का फायदा उठाते हुए भारतीय कंपनियो के अधिग्रहण करने से रोकने के लिए कानूनी प्रावधान किये गये थे तब चीन ने डब्लूटीओ जाने की धमकी दी थी। चीनी दूतावास की प्रवक्ता शी रोंग ने इस बारे में सवाल पूछने पर कहा, ‘भारत सरकार ने जिस तरह से चीन की वीचैट समेत 59 ऐप को प्रतिबंधित किया है वह चीनी कंपनियों के कानूनी अधिकारों का उल्लंघन है और उनके हितों को प्रभावित करता है। हमने भारतीय पक्ष के सामने अपनी बात रखी है और उनसे कहा है कि वे इस कदम में सुधार करें। हम यह भी बताना चाहते हैं कि चीन की सरकार की तरफ से अपनी कंपिनयों को साफ साफ यह निर्देश दिया गया है कि वे जिस भी देश में काम करें वहां के कानून का पूरी तरह से पालन करें।’
चीन आवश्यक कदम उठाएगा- रोंग
रोंग ने आगे कहा, ‘यह भारत सरकार का कर्तव्य है कि वह चीनी कंपनियों के कानूनी अधिकार व चीनी निवेशकों समेत तमाम अंतरराष्ट्रीय निवेशकों के हितों का बाजार के नियमों के मुताबिक संरक्षण करें। भारत व चीन के बीच प्रायोगिक सहयोग दोनो देशों के हितों के अनुरूप है, लेकिन इस तरह का हस्तक्षेप इसे नुकसान पहुंचाता है और यह भारतीय हितों के मुताबिक भी नहीं है।’ अंत में रोंग ने कहा है कि चीन अपनी कंपनियो के हितों की रक्षा के लिए आवश्यक कदम उठाएगा।
चीन की इस बेचैनी के पीछे वजह यह है कि अभी तक जिन देशों में चीनी मोबाइल एप को लेकर अंदर ही अंदर सुगबुगाहट थी वहां भी भारत के कदम के बाद आवाज बुलंद होने लगी है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण अमेरिका है जहां चीन के सबसे प्रसिद्ध मोबाइल एफ टिक-टॉक को प्रतिबंधित करने पर विचार हो रहा है। यूरोप के कई देशों में भी चीन के मोबाइल एफ को प्रतिबंधित करने की मांग होने लगी है। यह स्थिति कुछ चीन की दूसरे देशों में इंफ्रास्ट्रक्चर विकास करने की योजना बीआरआइ के भारतीय विरोध जैसी है। भारत ने ही सबसे पहले इस परियोजना का विरोध करना शुरु किया है और इस पर चीन की तरफ से बुलाये गये सेमिनार में हिस्सा नहीं लिया। धीरे धीरे कई देशों ने इसका विरोध किया। आज की तारीख में अमेरिका, फ्रांस, जापान, आस्ट्रेलिया जैसे बड़े देश भारतीय रुख को सही मानते हैं।