राजेश श्रीवास्तव
देश में इन दिनों एक ही खबर है विकास दुबे, विकास दुबे। 3०० करोड़ के साम्राज्य का मालिक विकास दुबे, जिसने 17 साल की उम्र में जरायम की दुनिया में कदम रखा तो किसी ने कल्पना नहीं की थी कि वह एक समय ऐसा बन जायेगा जब पूरा देश उसे जान जायेगा। शातिर, बुद्धिमान, चालाक, क्रूर, निर्दयी, और जुगाड़ी विकास दुबे ने ऐसे-ऐसे ख्ोल रचे कि हर पार्टी को उससे संबंध जोड़ने में दिक्कत नहीं हुई। अपने ही कालेज के प्राचार्य की हत्या रही हो या प्रापर्टी डीलर बनने की राह में पहली बार रोड़े अटकाने वाले किसान की हत्या हो या फिर सियासत में लोगों को अपनी पहचान दिखाने के लिए भाजपा के राज्य मंत्री की थाने के सामने हत्या हो या फिर लोगों में अपना दहशत कायम करने के लिए सीओ समेत आठ पुलिस कर्मियों की हत्या कर उनका शव दफनाने की तैयारी तक हो। सभी जगह विकास ने अपने दुस्साहस का परिचय दिया।
लेकिन इसी उहापोह मंे वह इतना दंभी हो गया कि यह भूल गया कि जिस सियासत दां के बल पर इतना आगे बढ़ा है वह किसी का आज तक हुआ नहीं। जानकारों की मानें तो किसी मंत्री ने उसे जब यह यकीन दिला दिया कि वह किसी सार्वजनिक जगह पर अपने आपको पुलिस को सौंप दे तो वह उसे बचा लेगा। इसी के चलते उसने उज्ज्ौन के महाकाल में समर्पण तो किया और जब उसे गार्ड ने परिचय देने के बाद टीप मारी तो उसने धमकाया कि यूपी होता तो इतने पर तुम्हारे घर पर आग लगा देता। यही नहीं, जब उसे पकड़ कर एसटीएफ की टीम उत्तर प्रदेश के कानपुर ला रही थी तो रास्ते में उसने यही कहा कि कोई उसका कुछ बिगाड़ नहीं सकता। इसीलिए वह पुलिस की गिरफ्त में बैठकर भी मुस्कुरा रहा था क्योंकि उसे पूरा यकीन था कि वह बचा लिया जायेगा और कुछ दिन बाद फिर जेल से छूट जायेगा । लेकिन उसे मालुम नहीं था कि सियासत में उसके जैसे लोगों का कोई मोल नहीं होता। सियासतदां ऐसे लोगों को जब चाहें तब खड़ा कर लेते हैं। उन्हें विकास जैसे लोगों को बनाने में देर नहीं लगती। वह अगर किसी भी मनबढ़ के सिर पर हाथ रख देते हैं तो विकास सरीखी बहुत लोग खड़े हो जाते हैं।
लेकिन विकास को कहां पता था कि नेताओं को उसकी जरूरत अब खत्म हो गयी है। अगर उज्जैन में पकड़े जाने के बाद भी उसने यह नहीं कहा होता कि उसके संबंध सिर्फ चौबेपुर नहीं कई थानों की पुलिस और अन्य माननीयों से हैं तो शायद आज भी वह किसी जेल में होता और कुछ महीनों बाद जेल से बाहर निकलता और माननीय बन जाता। लेकिन हर अपराधी के पटकथा का अंत तो होता ही है। इसीलिए जो भी अपराधी ने बाद में माननीय का रूप रखा वहीं जिंदा रहा ल्ोकिन जिसने इन्हें उखाड़ने की कोशिश की वह ऐसे ही किसी गाड़ी के पलटने से मर गया। विकास लंगड़ा था लेकिन भागा क्योंकि उसे यह नहीं पता था कि सियासत दां चाहें तो बिन पैर वालों को भगा सकते हैं। फिर वह तो लंगड़ा ही था। अब सवाल बहुत हैं और सवालों पर चर्चा चलती रहेगी। विकास की पत्नी ने विकास की अंत्येष्टि के मौके पर एक बात कही कि जिसने विकास को मरवाया और जिसने यह सब कराया वह भी मारा जायेगा। जरूरत पड़ी तो वह बंदूक उठाने से भी नहीं चूकेगी।
विकास की पत्नी ऋचा दुबे का यह बयान बेहद अहम है आखिर वह किससे बदला लेना चाहती है वह तो खुद विकास के अपराध की दुनिया से त्रस्त थी। इसलिए जब उसने मंत्री की हत्या की थी तो वह नाराज होकर मायके चली गयी थी और जब विकास ने आश्वस्त किया कि वह अपराध की दुनिया छोड़ देगा तभी वह विकास की जिंदगी में वापस लौटी। लेकिन विकास ने जरायम की दुनिया तो नहीं छोड़ी, अलबत्ता अपनी पत्नी और बेटों को लखनऊ शिफ्ट कर दिया अपने से दूर। ताकि वह उसके षड़यंत्र का हिस्सा बनने से बची रहे। ऐस्ो में शायद वह यह जानती है कि किसके कहने पर विकास ने समर्पण किया और किसने धोखा दिया,शायद यह धमकी उसी के लिए हो। ख्ौर यह सब समय बतायेगा। अब चूंकि विकास को विकास दुबे बनाने वाले लोग अभी भी उतने ही पावर में हैं।
उनके ऊपर जांच नहीं हो रही है। भले ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एसआईटी का गठन कर दिया है और वह इस मामले की तह तक जाना चाहते हैं लेकिन सियासत में कई तरह के दबाव होते हैं। ऐसे में यह खुलासा किस हद तक हो पायेगा, यह भविष्य के गर्भ में है। भले ही जांच में कुछ और पुलिसकर्मी फंसे पर कोई सियासतदां फंसेगा, ऐसा न आज तक हुआ है और न होगा। क्योंकि अगर मुख्यमंत्री के कहे पर अमल होता तो आज विकास कानपुर के टॉप टेन अपराधियों में शुमार होता लेकिन उनकी तो पुलिस तक ने नही सुनी ऐसे में एसआईटी में भी मानव ही हैं उनके कहे पर कितना अमल होगा, यह बड़ा सवाल है।