नुपुर शर्मा
फ़रवरी के अंत में हुए दिल्ली में हुए हिन्दू विरोधी दंगों में मुस्लिम भीड़ ने जम कर कहर बरपाया था। सीएए विरोध के नाम पर भड़काए गए इन दंगों में 53 लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हुए। इनमें से एक ताहिर हुसैन भी है, जो आम आदमी पार्टी का निलंबित निगम पार्षद है। करावल नगर में दंगे भड़काने में उसकी भूमिका सबसे अहम थी।
सबसे पहले आपको ले चलते हैं अमन इ-रिक्शा की दुकान पर, जो हर्ष ट्रेडिंग कम्पनी द्वारा संचालित किया जाता था। इसे फ़रवरी 25, 2020 को जला दिया गया। चार्जशीट की एफआईआर नंबर 114 में ताहिर हुसैन और उसके गुर्गों द्वारा हिन्दुओं की दुकानें जलाने के डिटेल्स हैं। इसमें बताया गया है कि ताहिर हुसैन ने कैसे दिल्ली में हुए हिन्दू विरोधी दंगों में हिन्दुओं की संपत्ति को जम कर नुकसान पहुँचाया और इसके लिए साजिश रची।
अमन इ-रिक्शा दुकान को जला दिया गया। शिकायतकर्ता के अनुसार, उसे कुल 30 लाख का रुपए नुकसान हुआ क्योंकि दुकान में जो भी था उसे जला डाला गया। उससे पहले दुकान को पूरी तरह लूट भी लिया गया था। चाँदबाग़ पुलिया के पास स्थित मस्जिद से ताहिर हुसैन ख़ुद मुस्लिम भीड़ का नेतृत्व कर रहा था। इस दौरान वो कह रहा था कि शेरपुर चौक पर एक भी हिन्दू को बख्शा नहीं जाना चाहिए।
दुकानें लूट ली गईं, उन्हें जला डाला गया, हिन्दुओं पर पत्थरबाजी की गई और पेट्रोल बम फेंके गए। चार्जशीट में स्पष्ट लिखा है कि ताहिर हुसैन ने ही मुस्लिम भीड़ को ये कह कर के भड़काया था कि हिन्दुओं ने मुसलमानों की दुकान को आग लगाया है, इसीलिए उन्हें छोड़ा नहीं जाना चाहिए। दरअसल, ताहिर हुसैन ने उमर खालिद और खालिद सैफी के साथ मिल कर 8 जनवरी को ही दंगों की साजिश रच ली थी।
इन सबके अलावा शेल कंपनियों के माध्यम से भी पैसों का भारी लेनदेन किया गया था। फर्जी कंपनियों के माध्यम से हुए लेनदेन और ताहिर हुसैन के अकाउंट में आए संदिग्ध रुपयों से पता चलता है कि दंगे कराने के लिए उसके पास कई संगठनों द्वारा धनराशि प्रदान की गई थी। जेएनयू के छात्र नेता रहे उमर खालिद ने ताहिर हुसैन को आश्वस्त किया था कि ‘पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया’ उसे दंगों के लिए वित्त मुहैया कराएगा।
दंगों से पहले 22 फ़रवरी को ताहिर हुसैन ने थाने से अपने 100 राउंड्स वाली पिस्टल भी छुड़ा ली थी, जो जनवरी से ही थाने में जमा रखी हुई थी। चार्जशीट के अनुसार, दंगों से ठीक पहले पिस्तौल ले जाने के सम्बन्ध में उसने कोई संतुष्ट करने वाला जवाब नहीं दिया। उसके पास से 64 लाइव कारतूस मिले थे और 22 खाली कारतूस जब्त किए गए थे। बाकी कारतूसों को कहाँ प्रयोग में लाया गया था, इस सम्बन्ध में उसके पास कोई जवाब नहीं था।
24-25 फ़रवरी की रात ताहिर हुसैन ने अपने परिवार की ‘सुरक्षा’ के बहाने मुस्तफाबाद स्थित अपने घर पर रखा था लेकिन वो खुद अपनी इमारत में मौजूद रहा। चार्जशीट के अनुसार, हिन्दुओं के खिलाफ मुस्लिम भीड़ का नेतृत्व करने और ‘स्थिति पर नज़र रखने के बहाने’ वो वहाँ मौजूद रहा। उसने पुलिस को कई कॉल्स किए, ताकि उसकी दंगों में भागीदारी पर किसी को शक न हो। मई 5 को उसने अपने कबूलनामे पर साइन किया, जिसमें उसने इलाक़े के सारे कैमरों को तोड़ डालने की बात स्वीकार की है।
ताहिर हुसैन ने कबूल किया है कि सीएए के समर्थन में भी रैलियाँ होने वाली थीं, इसीलिए उसने ‘हिन्दुओं को सबक सिखाने’ के लिए दंगों की साजिश रची। इसी क्रम में उसने अपने घर को इस्लामी भीड़ के लिए लॉन्चपैड बनाया, ताकि हिन्दुओं को निशाना बनाया जा सके। उसने ईंट-पत्थर व अन्य हथियार जमा करने की बात भी कबूल की। उसने बताया कि उसके समर्थक ‘अल्लाहु अकबर’ और ‘काफिरों को मारो’ चिल्ला रहे थे।
हालाँकि, यहाँ ताहिर हुसैन की ये बात विश्वास लायक नहीं है कि अफवाह के बाद मुस्लिमों ने हिंसा की क्योंकि जाँच में पता चल चुका है कि दंगों की तैयारी लम्बे समय से हो रही थी, इसीलिए इस्लामी भीड़ ही इसके लिए जिम्मेमदार थी। ये लोग इसकी साजिश लम्बे समय से रच रहे थे और तैयार भी बैठे थे। अब आते हैं वामपंथी मीडिया पर, जिसने ताहिर हुसैन को बचाने के लिए उसके द्वारा पुलिस को कॉल्स करने का बहाना बनाया।
‘द वायर’ ने तो ताहिर हुसैन का इंटरव्यू तक लिया था, जिसमे उसने पुलिस को ‘बचाव के लिए’ कई कॉल्स करने का दावा किया था। एनडीटीवी ने भी किया था। उसी वीडियो में इसने कोर्ट में सरेंडर करने की बात करते हुए न्यायपालिका में भरोसा जताया था। इसके अलावा उसके ट्वीट्स को भी मीडिया ने बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया था, जिसमे उसने खुद के ‘फँसे होने’ और दंगों का शिकार होने की बात कही थी।
जहाँ ताहिर हुसैन पहले कह रहा था कि दंगों से 2 दिन पहले ही पुलिस ने उसे बचाया था, कबूलनामे में वो साफ़ बताता है कि वो अपने परिचितों के यहाँ छिपता फिर रहा था और उसने अपने घर पर अर्धसैनिक बलों को तैनात देख कर वापस भीड़ को भड़काने का काम किया था। आम आदमी पार्टी के कई नेताओं ने ताहिर हुसैन का बचाव किया था। अमानतुल्लाह खान ने तो अब भी ताहिर के बचाव में मोर्चा खोल रखा है।
बाद में ताहिर हुसैन ने ख़ुद एक वीडियो जारी कर दावा किया कि भीड़ ने उसके घर पर कब्जा कर के उसे हमले का लॉन्चपेड बना दिया है और वो खुद दंगों का शिकार है क्योंकि 2 दिन पहले ही पुलिस ने उसे बचाया था। ‘द वायर’ ने इन्हीं तर्कों की बात करते हुए उसके द्वारा पुलिस को बार-बार कॉल किए जाने का मुद्दा बनाया था। ताहिर ने ख़ुद अपने कबूलनामे में बताया दिया है कि वो ख़ुद को निर्दोष दिखाने के लिए ऐसा कर रहा था।
क्या ये वामपंथी मीडिया पोर्टल अब इसके लिए माफ़ी माँगेंगे? उसने ख़ुद को ‘दंगों में फँसा हुआ’ दिखाने के लिए और अपने पक्ष में सबूत बनाने के लिए ये ड्रामा रचा था, ऐसा उसने ख़ुद स्वीकार किया है। साथ ही उसने कहा कि उसे पता था कि हथियारों से लैस मुस्लिम भीड़ पुलिया के पास से ही पुलिस को भगा देगी। एक और आश्चर्यजनक बात उसने ये कही है कि उसने 24-25 फरवरी की रात पुलिस के साथ क्षेत्र में घूम कर लोगों से ‘शांति की अपील’ भी की थी।
यानी उसने ‘काफिरों को मारने’ और ‘हिन्दुओं को सबक सिखाने’ के लिए ये सब किया। आपको पता है कि अपने बयान के अंत में ताहिर हुसैन ने क्या कहा- ‘मुझसे गलती हो गई। मुझे माफ़ कर दीजिए।‘ ऑपइंडिया ने आईबी में कार्यरत रहे अंकित शर्मा हत्याकांड में भी ताहिर हुसैन की संलिप्तता को लेकर कई लेख और ख़बरें प्रकाशित की थी। अब चार्जशीट के बाद इसकी एक के बाद एक परत खुल रही है।
दिल्ली में हुए हिन्दू-विरोधी दंगों के मुख्य आरोपित ताहिर हुसैन ने न्यायिक हिरासत के दौरान पुलिस के समक्ष अपना बयान दर्ज कराया था, जिसमें उसने जानकारी दी है कि वो मूल रूप से उत्तर प्रदेश के अमरोहा का निवासी है। उसके तीन और भाई हैं, जिनके नाम हैं- नजर अली, शाह आलम और शाने आलम। 8वीं तक पढ़ा ताहिर हुसैन 1993 में अपने पिता के साथ दिल्ली आया था और दोनों पिता-पुत्र बढ़ई का काम करते थे।
ताहिर हुसैन ने जानकारी दी कि उसने मुस्लिम भीड़ को अपनी छत पर खड़े होकर गोलीबारी और पत्थरबाजी करने को कहा क्योंकि उसे लगता था कि उसका घर ऊँचा है तो वो हिंदुओं को आसानी से निशाना बना सकता है। उसने कबूल किया है कि भीड़ पेट्रोल बम लेकर आई थी। उसने बताया कि उसके भाई शाह आलम ने समर्थकों संग मिल कर महक सिंह की पार्किंग में आग लगाई थी।
साभार ………………………..