लखनऊ। उसके घर में बंकर है। वह जेसीबी से दूसरों के घर तोड़ता था। उसके यहां प्रतिबंधित हथियार थे। जब तब वह पुलिस पर हाथ उठा देता था। उसने तो एक जज को भी धमका दिया था। पुलिस उसकी चेरी थी। पुलिस विभाग में उसके मुखबिर थे। वह यहां भागा, वह वहां भागा। अब छोड़ा नहीं जाएगा। अब उसके दिन गिनती के रह गए हैं। ऐसे कितने ही जुमले पिछले तीन दिनों से हवा में हैं। दुनिया को भले ही आज पता चला है, लेकिन चौबेपुर और कानपुर में हरेक जानता था विकास दुबे की कहानी।
विकास को रोकने का साहस कोई नहीं दिखा सका: नेताओं का प्रिय शब्द है विकास। जिसको जहां मौका लगा, विकास कराने लग पड़ता है। शिक्षा का विकास, किसान का विकास, राज्य और देश का विकास, लेकिन विकास छलना भी है। जल्दी हाथ नहीं रखने देता अपने ऊपर। कई बार हवा में ही रह जाता है। इसी तरह चौबेपुर के विकास ने भी अपने ऊपर किसी को हाथ नहीं रखने दिया। या अधिक बेहतर होगा यह कहना कि इस विकास को रोकने का साहस कोई नहीं दिखा सका। इसीलिए दो जुलाई की रात की स्याही का अंधेरा अनेक निदरेष पुलिस वालों के परिवारों को डस ले गया।
पिछले 27 वर्षो में 60 मुकदमे जिस अपराधी पर लगे, जिस पर थाने में घुसकर भारतीय जनता पार्टी के एक नेता की हत्या का आरोप लगा, न उस पर कभी रासुका लग सका और ना वह एसटीएफ की प्राथमिकता सूची में जगह बना सका।
विकास दुबे ने उत्तर प्रदेश में नेताओं और अपराधियों के गठजोड़ को ऐसा उघाड़ा है कि वर्षो तक इसकी मिसाल दी जाती रहेगी। वैसे इस पूरे प्रकरण में अच्छी बात यह है कि मुख्यमंत्री ने सख्ती की है और माफिया पर टूट पड़ने को कहा है। अब पुलिस के पास मौका है माफिया को धर दबोचने का। यह काम उसे अपने साथियों की शहादत को सम्मान देने के लिए दिल से करना चाहिए।