लंदन। Covid-19 की वजह से बेहाल हो रही अर्थव्यवस्थाओं को रोकने का एक ही तरीका है कि इस वक्त एक ऐसी वैक्सीन (Vaccine) मिले जो लोगों को वास्तव में बीमार होने या मरने से बचाए. लेकिन क्या ये लोगों को कोरोना वायरस होने से रोक सकती है?
दवा की खोज पर काम कर रहे इंपीरियल कॉलेज लंदन के प्रोफेसर रॉबिन शैटॉक के अनुसार लक्ष्य तो यही होना चाहिए कि वायरस के खिलाफ हमला हो, लेकिन शुरुआती वैक्सीन इसके वितरित हो सकती हैं. उनका कहना है कि ‘क्या ये संक्रमण से सुरक्षा देती हैं? क्या ये बीमारी से सुरक्षा देती हैं? क्या ये गंभीर बीमारियों से सुरक्षा देती है? यह हो सकता है कि वो टीका जो केवल गंभीर बीमारी से बचाता है, वो बहुत उपयोगी हो.’
जैस-जैसे देशों में लॉकडाउन हटाया जा रहा है, देश कोई ऐसी दवा चाहते हैं कि दोबारा महामारी से पहले के जीवन में लौटा जा सके. सरकारें इसपर पानी की तरह पैसा बहा रही हैं. छोटी से लेकर दिग्गज कंपनियां सभी वैक्सीन बनाने में जुटी हुई हैं.
कुछ दवाओं के मानव ट्रायल भी शुरू हो गए हैं, विशेषज्ञों का कहना है कि अगर ये दवाएं अप्रूव हो जाती हैं तो इन्हें व्यापक रूप से उपयोग किया जाएगा, क्योंकि इनकी क्षमता भले ही कितनी हो लेकिन बाजार में इनसे बेहतर दवा नहीं होगी.
दवा बनाने के काम में जुटे विशेषज्ञ डॉ. माइकल किंच, जो सेंट लुइस में वाशिंगटन विश्वविद्यालय में एसोसिएट वाइस-चांसलर हैं, उनका कहना है कि- ‘मेरा मानना है कि टीका लगवाने के बाद वे सोचेंगे कि वो वापस सामान्य हो सकते हैं. सब ठीक हो जाएगा. लेकिन वे ये जरी भी महसूस नहीं करेंगे कि वे अभी भी संक्रमण के लिए अतिसंवेदनशील हो सकते हैं.’
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, टीके संक्रामक बीमारियों के खिलाफ सबसे प्रभावी हथियारों में से एक हैं, और इनसे एक साल में करीब 30 लाख मौतें रोकी जा सकती हैं. लेकिन ये 100 प्रतिशत प्रभावी नहीं हैं. उदाहरण के लिए, खसरे के टीके लगवाने वाले लगभग 3 प्रतिशत लोगों में इस बीमारी का हल्का रूप विकसित हो जाता है, और यह दूसरों में फैल सकता है.
तेजी से बढ़ते खतरे का सामना करने के अपने प्रयासों में, डेवलपर्स उन तकनीकों की ओर रुख कर रहे हैं जो कभी भी मनुष्यों में सफलतापूर्वक उपयोग नहीं की गई हैं. WHO के अनुसार, कोविड-19 की रोकथाम के लिए 130 से ज्यादा दवाओं पर काम किया जा रहा है.
टीका संक्रमण को कैसे प्रभावित करता है ये अभी भी स्पष्ट नहीं है. हार्वर्ड विश्वविद्यालय के एक पूर्व एचआईवी शोधकर्ता डॉ. विलियम हैसेल्टाइन ने फोर्ब्स के लिए एक ब्लॉग में बताया कि जानवरों के सिसिटम में भी एक जैसी वायरल जैनेटिक सामग्री, RNA होती है, जो कि चाहे उन्हें दवा मिले या नहीं. वायरस के खिलाफ एंटीबॉडीज का स्तर उतना नहीं था जितना कि बहुत अधिक सुरक्षात्मक टीकों में होता है.
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इंफेक्शियस डिजीज के निदेशक डॉ. एंथोनी फौसी के अनुसार, उच्च संक्रमण दर और निमोनिया जैसे गंभीर संक्रमण के नैदानिक संकेत टीका देने वाले बंदरों में बेहतर थे. जो अभी भी इस तरह के शॉट को उपयोगी बना सकता है. उन्होंने कहा – ‘यह वैक्सीन संक्रमण से बचाने के लिए तो इतनी कारगर नहीं है, लेकिन यह वास्तव में बीमारी से बचाने के लिए बहुत अच्छी है.’
जॉनसन एंड जॉनसन के साथ एक टीका विकसित कर रहे डॉ. बरोच ने कहा कि प्रभावी टीके कुछ कोशिकाओं को संक्रमित होने दे सकते हैं, लेकिन दूसरों तक प्रसारित होने से पहले ही वायरस के विकास को नियंत्रित कर सकते हैं.
यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (FDA) एक वैक्सीन के विकल्पों पर विचार कर रहा है जो बीमारी से बचाता है. FDA के प्रवक्ता माइकल फेलबरबम ने कहा कि लाइसेंस प्राप्त टीके जैसे काली खांसी के टीकों में ये प्रदर्शित नहीं किया गया है कि वो बीमारी पैदा करने वाले पैथोजन के संक्रमण से सुरक्षा करता है, बल्कि ये रोगसूचक बीमारी से बचाव के लिए प्रदर्शित किया गया है.
डॉ. किंच का कहना है कि- अपूर्ण टीके (imperfect vaccine) और थैरेपी के उपयोग करने की धारणा ठीक है. यह सिर्फ व्यावहारिकता है. और हम उन लोगों का अनुसरण कर सकते हैं जो ज्यादा परिपूर्ण हैं. पूरी तरह से परफैक्ट वैक्सीन तो कभी नहीं बन सकती.’
कैलिफोर्निया के ला जोला के स्क्रिप्स रिसर्च के इम्यूनोलॉजिस्ट और वैक्सीन शोधकर्ता डॉ. डेनिस बर्टन ने कहा- ‘वैक्सीन की जरूरत बीमारी से बचने के लिए है, न कि संक्रमण से.’