सत्ता में बैठा शासक कितना क्रूर या कितना दूरदर्शी हो सकता है यह उसके किसी अन्य देश में हो रहे नरसंहार पर प्रतिक्रिया से स्पष्ट हो जाता है। विश्व में कई नरसंहार हुए हैं लेकिन कम्युनिस्टों द्वारा किया गया नरसंहार इतिहास में काले अक्षरों से लिखा जाता है। इन्हीं में से एक है 1989 में चीन की सत्ता द्वारा किया गया, Tiananmen Square (तियानानमेन चौक) नरसंहार जिसमें 10 हजार से अधिक लोग मारे गए थे। इस नृशंस घटना पर कई देशों ने चीन पर प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन भारत ने क्या किया था? भारत की क्या प्रतिक्रिया थी?
शीत युद्ध के इस आखिरी चरण में भारत अपने संबंध सभी देशों से बनाए रखने की कोशिश में था। इसी कड़ी में राजीव गांधी ने सत्तावदी कम्युनिस्ट चीन का 1988 में दौरा भी किया था। तब भारत- चीन सीमा विवाद को सुलझाने की कोशिश चल रही थी। यह सभी को पता होना चाहिए कि 1989 में चीन आर्थिक प्रगति की ओर अपना कदम बढ़ा चुका था जिसे आज दुनिया The Great Leap Forward कहती है।
इसके बाद गले की फांस बन चुके इस प्रदर्शन को कुचलने के लिए 3-4 जून को चीन की सेना ने शांतिपूर्वक प्रदर्शन कर रहे निहत्थे नागरिकों पर बंदूकों और टैंकों से कार्रवाई की। इस कार्रवाई में 10 हजार से अधिक प्रदर्शनकारी मारे गये। इस दौरान चीनी सेना के एक टैंक को रोकने की कोशिश करते हुए एक युवक की तस्वीर प्रकाशित होने के बाद यह स्थान पूरी दुनिया में मशहूर हो गया।
पूरे विश्व में इस घटना की जमकर आलोचना हुई और चीन पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गयी। अमेरिका को छोड़कर फ्रांस, जापान, ब्रिटेन जैसे देश चीन से अपने रिश्ते तोड़ने की बात कर चुके थे। लेकिन भारत के प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने इस मामले पर न सिर्फ चुप रहना सही समझा बल्कि रिपोर्ट के अनुसार देश के राष्ट्रीय टेलीविज़न को भी इस प्रदर्शन के ऊपर कवरेज नहीं करने का निर्देश दिया था। कहा जाता है कि राजीव गांधी ने चीन से अपने संबंध बचाने के लिए इस तरह का फैसला लिया था।
चीनी इतिहासकर Tan Chung ने अपनी किताब Across the Himalayan Gap: An Indian Quest for Understanding China में बताया है कि Tiananmen Square पर हुए नरसंहार के कारण सभी देश चीन को अलग-थलग कर रहे थे तो वहीं भारत के साथ चीन के रिश्ते न सिर्फ सामान्य रहे, बल्कि और प्रगाढ़ होना शुरू हो गये। 1989 और 1990 के बीच भारत और चीन के बीच 10 दौरा हुआ जिसमें चीन के Vice Premier और विदेश मंत्री का भारत दौरा भी शामिल था।
यानि देखें तो राजीव गांधी ने न सिर्फ चीन में हुए नरसंहार पर चुप्पी साध कर समर्थन किया, बल्कि 10 हजार निहत्थे लोगों को टैंक से कुचलने वाली सरकार के साथ अपने रिश्ते भी बढ़ाने लगे। इससे तो यही स्पष्ट होता है कि लोकतंत्र और अपने अधिकारों के लिए मारे गए लोगों के लिए राजीव गांधी के मन में कोई सहानुभूति नहीं थी। एक विरोध प्रदर्शन जिसका अंत 10 हजार मासूम लोगों की मौत के साथ हुआ है, ऐसे मामले पर राष्ट्रीय टेलेविजन के कवरेज को रोकने का क्या मतलब था?
राजीव गांधी ने एक लोकतंत्र देश के प्रधानमंत्री हो कर भी लोकतंत्र की मांग करने वालों का समर्थन नहीं किया। इससे यह भी साबित होता है कि वह भी चीन के सत्तावदी सरकार से कम नहीं थे। यह ठीक उसी तरह था जब चीन के माओ ने तिब्बत पर आक्रमण किया था और भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने कुछ नहीं किया था जिसका खामियाजा भारत को अक्साई चिन के रूप में चुकाना पड़ा था। आखिर राजीव गांधी भी नेहरू के ही पोते थे और उन्होंने भी लोकतंत्र को धोखा देते हुए एक कम्युनिस्ट शासन और नरसंहार का साथ देने के लिए हिन्दी चीनी भाई-भाई पार्ट 2 दिखा दिया था। आज फिर से चीन हाँग-काँग में वही कर रहा है, लेकिन आज उन प्रदर्शनों को वैश्विक स्तर पर कवरेज मिल रही है। आज फिर से सभी देश चीन के खिलाफ हो चुके हैं ऐसे में भारत को भी एक मजबूत स्टांस ले ना चाहिए जिससे भविष्य इस पीढ़ी से यह सवाल न करे कि जब सभी चीन के खिलाफ थे तो भारत ने किया।