ब्रिटेन। कोरोना के बाद से ही अमेरिका अपने सभी साथियों पर चीन के खिलाफ कड़ा रुख अपनाने का दबाव बना रहा है। अमेरिका ने पहले 5जी तकनीक क्षेत्र में चीन को दरकिनार करने के लिए UK और कनाडा जैसे देशों पर दबाव बनाया, इसके बाद अमेरिका ने जी7 को जी10 बनाकर चीन को घेरने का प्लान भी सामने रखा। हालांकि, यूरोपीय देशों और खासकर जर्मनी का रुख शुरू से ही चीन को लेकर काफी नर्म रहा है। जिस जी7 बैठक को राष्ट्रपति ट्रम्प ने रद्द किया, उसमें जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्कल ने शामिल होने से पहले ही इंकार कर दिया था। अब अमेरिका ने जर्मनी को बड़ा झटका देते हुए जर्मनी से अपने करीब 10 हज़ार सैनिक निकालने का फैसला लिया है। इस फैसले के जरिये अमेरिका ने जर्मनी को यह साफ संदेश दे दिया है कि या तो जर्मनी अमेरिका के साथ हो सकता है, या फिर चीन के साथ! जर्मनी की यह monkey balancing अब और नहीं चलने वाली है।
चीन को लेकर शुरू से ही जर्मनी का रवैया बड़ा ढीला-ढाला रहा है। जब कोरोना के बाद जी7 देशों की पहली बैठक हुई थी, तो उसमें अमेरिका संयुक्त बयान में Chinese virus शब्द शामिल करवाना चाहता था, लेकिन तब जर्मनी ने सबसे ज़्यादा बवाल बचाया था और उसका नतीजा यह निकला था कि जी7 तब कोई संयुक्त बयान जारी ही नहीं कर पाया था।
इसके अलावा यूके अब हुवावे के खिलाफ 10 लोकतंत्र देशों का समूह यानि D 10 संगठन बनाने का प्रस्ताव भी पेश कर चुका है। वहीं, अमेरिकी दबाव के बाद ही कनाडा ने भी अपने यहां से हुवावे को चलता कर दिया है। अमेरिका अभी चीन को सबक सिखाने के लिए अपने साथियों पर किसी भी हद तक का दबाव बना सकता है। इसके साथ ही अमेरिका ने यह भी साफ कर दिया है कि वह ऐसे किसी भी “साथी” को बर्दाश्त नहीं करेगा जो चीन के प्रति नर्म रुख दिखाएगा। जर्मनी के खिलाफ अमेरिका का यह कदम इसलिए भी बड़ा महत्वपूर्ण है, क्योंकि जर्मनी NATO का एक बड़ा partner है। अमेरिका ने उन सभी देशों को कडा संदेश दे दिया है, जो अभी भी चीन को लेकर नर्म रुख दिखा रहे हैं।