नई दिल्ली। हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन (hydroxychloroquine) को लेकर एक बड़ी खबर आई है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भारत के आगे घुटने टेक दिए हैं और हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के कोरोना वायरस (Coronavirus) ट्रायल को फिर से शुरू करने के लिए कहा है. बुधवार को WHO ने ट्वीट कर इसकी जानकारी दी. आपको बता दें कि हाल ही में WHO ने सदस्य देशों को निर्देश जारी किया था कि कोरोना वायरस के इलाज में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन खतरनाक साबित हो सकती है. इसीलिए इसके ट्रायल बंद कर दें.
WHO ने ट्वीट कर कहा- उपलब्ध मृत्यु दर आंकड़ों के आधार पर समिति के सदस्यों ने सिफारिश की है कि परीक्षण प्रोटोकॉल को संशोधित करने का कोई कारण नहीं है. इसलिए हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन ट्रायल को फिर से शुरू किया जा सकता है. संगठन ने कहा कि कार्यकारी समूह इसपर बारीकी से नजर रखेगा.
“The Executive Group will communicate with the principal investigators in the trial about resuming the hydroxychloroquine arm of the trial”-@DrTedros #COVID19 https://t.co/oarCCl4y4q
— World Health Organization (WHO) (@WHO) June 3, 2020
हाल ही में WHO ने सदस्य देशों को निर्देश जारी किया था कि कोरोना वायरस के इलाज में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन खतरनाक साबित हो सकती है. इसीलिए इसके ट्रायल बंद कर दें. लेकिन भारतीय वैज्ञानिकों ने न सिर्फ इस दवा पर शोध किया बल्कि देश के डाक्टरों से कहा है कि कोरोना वायरस इलाज में इस दवा से बचाव हो सकता है. इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने अपने ताजा शोध में कहा है कि हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन की दवा लेने पर कोरोना वायरस संक्रमण के खतरे में कमी देखी गई है.
इसके बाद कोरोना वायरस महामारी से लड़ाई में भारत ने WHO के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. भारत ने अपने नए निर्देश और शोध से WHO को संकेत दिया कि कोरोना वायरस से लड़ाई में अब देश अकेले ही चलेगा. देश के हित में जो शोध और इलाज जरूरी हो वही करेगा. साथ ही भारत के वैज्ञानिकों से साफ कर दिया कि उन्हें WHO के सुझाव की कोई जरूरत नहीं है.
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के एक अधिकारी के मुताबिक ज्यादातर पश्चिमी देशों के वैज्ञानिक और दवा कंपनियां भारत के बेहद सस्ती दवाओं के उपचार को लेकर हमेशा नीचा दिखाने की कोशिश में रहती हैं. कोरोना वायरस का इलाज मलेरिया से बचाव के लिए बनी हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन से संभव है. अगर कोरोना वायरस से बचाव के लिए इस सस्ती दवा का उपयोग बढ़ जाए तो पश्चिमी देशों की दवा कंपनियों को करोड़ो रुपयों का नुकसान हो सकता है. यही कारण है कि इनकी लॉबी WHO पर दबाव बनाकर हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के सभी ट्रायल बंद करना चाहती थी.