राजेश श्रीवास्तव
इन दिनों देश को आत्मनिर्भर बनाने की बात चल रही है लेकिन वर्तमान की मोदी सरकार आत्मनिर्भर बनाने के कितने प्रयास कर रही है, इसका अगर आकंड़ों की लिहाज से खोजबीन करेंगे तो लगेगा कि यह सिर्फ भाषण भर हैं, क्योंकि इसके कोई प्रयास होते नहीं दिखते। 2०13 में जब मोदीजी केंद्र की सत्ता में आने का रोडमैप तैयार कर रहे थे, तब दिल्ली के श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स में एक भाषण के दौरान उन्होंने नए भारत में विकास का रोडमैप पेश करते हुए पानी से आधे भरे गिलास को उठाकर कहा था कि कुछ लोग इसे आधा भरा या आधा खाली कहेंगे, लेकिन वे इस गिलास को भरा कहेंगे, जो आधा पानी और आधा हवा से भरा है। इस हवाबाजी वाले जुमले का असर ऐसा हुआ कि वे लगातार दो बार भारी बहुमत से सत्ता में आए। भाजपा, आरएसएस के मन की बहुत सी बातें उनके शासनकाल में पूरी हुईं, लेकिन गरीब जनता आधे गिलास के खालीपन में अपनी जिदगी की उम्मीदें तलाशती ही रह गई। मोदीजी ने चुनौती को अवसर में बदलने का उपदेश दिया, आत्मनिर्भर भारत अभियान का जिक्र किया और बताया कि 2०2० में 2० लाख करोड़ के राहत पैकेज का ऐलान किया। 2० की गिनती उन्होंने बीस बार तो शायद नहीं की, लेकिन इतने बार 2० कहा मानो बार-बार कहने से लोगों के खाते में पैसे अपने आप आ जाएंगे बहरहाल, अभी भी जिस शान से उन्होंने ये बताया है कि ये कितना बड़ा राहत पैकेज है और इससे कैसे भारत की सारी मुसीबतें दूर हो जाएंगी, वो आधे खाली गिलास की हवा जैसी ही है, जो दिखाई नहीं देती है और जिसके होने का कोई अर्थ भी नहीं है।
1947, जब देश आजाद हुआ था। नई नवेली सरकार और उनके मंन्त्री देश की रियासतों को आजाद भारत का हिस्सा बनाने के लिए परेशान थे। तकरीबन 562 रियासतों को भारत में मिलाने के लिए साम दाम दंड भेद की नीति अपना कर अपनी कोशिश जारी रखे हुए थे। क्योंकि देश की सारी संपत्ति इन्हीं रियासतों के पास थी। कुछ रियासतों ने नखरे भी दिखाए, मगर कूटनीति और चतुरनीति से इन्हें आजाद भारत का हिस्सा बनाकर भारत के नाम से एक स्वतंत्र लोकतंत्र की स्थापना की। और फिर देश की सारी संपत्ति सिमट कर गणतांत्रिक पद्धति वाले संप्रभुता प्राप्त भारत के पास आ गई। धीरे धीरे रेल, बैंक, कारखानों आदि का राष्ट्रीयकरण किया गया और एक शक्तिशाली भारत का निर्माण हुआ ।
अगर नंबरों की बात करें तो 67 सालों में भारत की जीडीपी 2.7 लाख करोड़ रुपए से 57 लाख करोड़ रुपए पहुंच गई। जीडीपी के सकल घरेलू बचत साल 2००8 में अपने उच्चतम स्तर 36.8 फीसदी पर पहुंच गया ।
साल 2०14 से लेकर 2०19 के बीच देश भर में कंपनियों की कुल 114 इकाइयां बंद हो गई हैं। इसकी वजह से करीब 16,००० कर्मचारी प्रभावित हुई हैं। श्रम और रोजगार राज्य मंत्री संतोष गंगवार ने बीते 25 नवंबर 2०19 को लोकसभा में ये जानकारी दी। बसपा सांसद दानिश अली ने सदन में पूछा था कि क्या ये सच है कि बीते पांच साल में बड़ी संख्या में कंपनियां बंद हुई हैं और अगर ऐसा हुआ है तो इसका कारण और ब्यौरा दिया जाए। दानिश अली के सवाल के जवाब में संतोष गंगवार ने बताया कि 2०14 में 34, साल 2०15 में 22, साल 2०16 में 27, साल 2०17 में 22, साल 2०18 में आठ और साल 2०19 में सितंबर तक में कुल 114 इकाइयां बंद हो चुकी हैं। इन इकाइयों के बंद होने की वजह से साल 2०14 में 4,726, साल 2०15 में 1,852, साल 2०16 में 6,०37, साल 2०17 में 2,74०, साल 2०18 में 537 और साल 2०19 में सितंबर तक में कुल 45 कर्मचारी प्रभावित हुए हैं. हालांकि अभी ये आंकड़ें अनंतिम यानी कि प्रोविजिनल हैं। गंगवार ने कहा कि ऐसे प्रभावित मजदूरों के हितों की रक्षा औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 के तहत मुआवजा दे कर की जाती है। वित्त मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, सितंबर 2०18 तक के डेटा के हिसाब से केंद्र सरकार पर कुल 82.०3 लाख करोड़ का कर्ज हो चुका है। 2०14 में यही आंकड़ा 54.9० लाख करोड़ का था।
ऐसा नहीं कि आत्मनिर्भर बनाने के प्रयास पूर्व में नहीं हुए। 1954 में स्टील उत्पादन के क्षेत्र में भारत को आत्म निर्भर बनाने के लिए सेल बनाया गया। 1956 में इंजीनियरिग के क्षेत्र में भारत को आत्म निर्भर बनाने के लिए आईआईटी बनाया गया। 1956 में मेडिकल साइंस के क्षेत्र में भारत को आत्म निर्भर बनाने के लिए एम्स बनाया गया। 1958 में रक्षा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत को आत्म निर्भर बनाने के लिए डीआरडीओ बनाया गया। 1964 में एयरक्राफ्ट उत्पादन के क्षेत्र में भारत को आत्म निर्भर बनाने के लिए एचएएल बनाया गया। 1965 में खाद्य सामग्री के क्षेत्र में भारत को आत्म निर्भर बनाने के लिए हरित क्रांति को लाया गया। 1965 में विद्युत उपकरण के क्षेत्र में भारत को आत्म निर्भर बनाने के लिए भ्ोल बनाया गया। 1969 में स्पेस प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत को आत्म निर्भर बनाने के लिए इसरो बनाया गया। 1975 में कोल उत्पादन के क्षेत्र में भारत को आत्म निर्भर बनाने के लिए सीसीएल बनाया गया। 1975 में बिजली उत्पादन के क्षेत्र में भारत को आत्म निर्भर बनाने के लिए एनटीपीसी बनाया गया। 1984 में गैस उत्पादन के क्षेत्र में भारत को आत्म निर्भर बनाने के लिए गेल बनाया गया। 199० में आईटी के क्षेत्र में भारत को आत्म निर्भर बनाने के लिए साफ्टवेयर पार्क बनाया गया। भारतीय अर्थव्यवस्था अपनी तेजी धीरे-धीरे खो रही है। अर्थव्यवस्था का हर क्षेत्र मांग की कमी से प्रभावित है। आरबीआई ने भी अपनी मौद्रिक समिति की बैठक में भारतीय अर्थव्यवस्था के जीडीपी ग्रोथ रेट के पूर्वानुमान को घटाकर 6.9% कर दिया है। भारतीय अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों के आंकड़ों पर गौर करें तो निष्कर्ष निकल रहा है कि वह धीरे-धीरे मंदी की तरफ बढ़ रही है।
एक दौर में प्रभावशाली निजी विमान सेवा कंपनी जेट एयरवेज आज बंद हो चुकी है। एयर इंडिया बड़े घाटे में चल रही है। किसी दौर में टेलीकॉम सेक्टर की पहचान रही बीएसएनल आज अपने अस्तित्व के लिए जूझ रही है। रक्षा के क्षेत्र में सरकारी कंपनी हिदुस्तान एयरोनॉटिक्स ने हाल ही में बाजार से 1००० करोड़ रुपये का कर्ज अपने कर्मचारियों को वेतन भुगतान के लिए लिया है। यह इस दशक में पहली बार था। भारतीय डाक सेवा का वित्त वर्ष 2०19 में वार्षिक घाटा ?15००० करोड़ हो चुका है। वर्तमान में यह सबसे बड़ी नुकसान वाली सरकारी कंपनी बन चुकी है । भारत की सबसे बड़ी कच्चे तेल और नेचुरल गैस की कंपनी ओएनजीसी का अतिरिक्त कैश रिजर्व तेजी से घट रहा है। सरकार द्बारा गैर-जरूरी अधिग्रहण के चलते आज यह कंपनी एक बड़े कर्ज के दबाव में आ गई है। भारतीय बैंकिग व्यवस्था अभी एनपीए की त्रासदी को झेल रही है। वर्तमान में कुल एनपीए 9,49,279 करोड़ रुपये का है। एनपीए का 5०% हिस्सा तो महज देश के 15० बड़े पूंजीपतियों की वजह से हुआ है। यह भी याद रखना होगा कि पिछले 5 सालों में मोदी सरकार ने बड़े पूंजीपतियों के ?5,55,6०3 करोड़ के लोन माफ कर दिए हैं।
ऐसे तमाम आंकड़े हैं जो बताते हैं कि बीते छह वर्षों में भारत की कंपनियों की स्थिति बेहद खराब है। इन छह सालों में किसी नयी कंपनी का निर्माण तो नहीं हुआ। योजनाओं का ऐलान भी खूब हुआ। लेकिन उन योजनाओं की किरण कहीं तक नहीं पहुंची। मेक इन इंडिया से लेकर आत्मनिर्भर भारत तक लेकिन भारत आत्मनिर्भर होता नहीं दिखता। देश आंकड़ों में नहीं सच की धरती पर आत्मनिर्भर होना चाहता है। सरिता प्रवाह ने सीध्ो 2.5 हजार लोगों से बात की लेकिन कोई भी इस बीस लाख करोड़ के पैकेज से सीध्ो लाभान्वित होता नहीं दिखा। किसी शायर ने खूब लिखा है-
जो मेरे ख्ोत के गांव में भूख उगने लगी
मेरे किसान ने शहरों ने नौकरी कर ली।।
सच तो बस यही है। दावे चाहे जितने हों किसी सरकार ने एक रुपये देकर 15 पैसे पहुंचने की बात कही तो किसी ने पूरा रुपया लेकिन आम आदमी की झोली तो बस खाली ही है।