अनुपम कुमार सिंह
मनोरंजन इंडस्ट्री में दशकों से जमे इकोसिस्टम को देखें तो ये तो मानना ही पड़ेगा कि इनमें से काफ़ी लोग प्रतिभाशाली और क्रिएटिव रहे हैं। एक ऐसी चीज, जो दक्षिणपंथी निर्माता-निर्देशकों-लेखकों में या तो है नहीं या फिर उन्हें इसे दिखाने के उचित मौके नहीं मिले। हम बात कर रहे हैं अमेजन प्राइम पर आए वीडियो सीरीज ‘पाताल लोक’ की, जिसमें हिन्दू-घृणा कूट-कूट कर भरी हुई है। अगर कथित सवर्णों के प्रति घृणा को भी जोड़ दें तो ‘पाताल लोक’ कई अवॉर्ड्स जीत सकती है।
आख़िर क्या है ‘पाताल लोक’? कहानी आउटर जमुना पार पुलिस स्टेशन की है। यही है पाताल लोक, जहाँ पुलिस अधिकरी पोस्टिंग होने से भागते हैं। शुरू में ही बता दिया जाता है कि कहाँ-कहाँ पोस्टिंग होना स्वर्ग लोक के समान है और कहाँ पृथ्वी लोक के सामान। ‘पातल लोक’ का एक बना बनाया सिस्टम है, जो वैसे ही चला आ रहा है। अधिकतर मामलों में केस की जाँच शुरू होने से पहले ही फ़ैसला सुनाया जाता है और फिर परिणाम तक पहुँचा जाता है।
इंस्पेक्टर हाथीराम चौधरी इस सीरीज के मुख्य किरदार हैं, जिसे जयदीप अहलावत ने अदा किया है। हमने उन्हें अक्षय कुमार के ‘गब्बर इज बैक’ में एक जाँच अधिकारी के किरदार में देखा था। उस किरदार में से ग्लैमर हटा कर उसे और ग़रीब बना दिया जाए तो ‘पाताल लोक’ का उनका किरदार बन जाता है। वही मध्यम वर्गीय पुलिस अधिकारी जिसकी बीवी भी रुपए कमाने की जुगत में लगी है, जो अपने बेटे को किसी तरह महँगे स्कूल में पढ़ा रहा है, जिसका सालों से प्रमोशन नहीं हुआ, जिसे पुलिस विभाग में कम बुद्धि वाला माना जाता है।
यहाँ हम कहानी की चर्चा नहीं करेंगे। अनुष्का शर्मा ने इस सीरीज को प्रोड्यूस किया है, जिन्हें सोशल मीडिया पर सितारों की बधाइयों का ताँता लगा हुआ है। जयदीप की एक्टिंग सही में शानदार है। और हाँ, वामपंथ की यही ख़ासियत है कि चीजों को इतनी बारीकी से आपके समक्ष पेश किया जाता है कि वो वास्तविकता से भी ज़्यादा वास्तविक लगने लगता है। निर्देशन में मेहनत की जाती है, दृश्यों के बदलने में क्रिएटिविटी दिखाई जाती है- जैसे बंदूक का चलना और अगले ही दृश्य में कैमरे का चमकना।
‘पीके’ वाला फंडा: तब भगवान शंकर थे, अब नरसिंह हैं
वैसे तो ये दृश्य अंतिम एपिसोड में आता है लेकिन इसका जिक्र सबसे पहले करना ज़रूरी है। जब आमिर ख़ान से पूछा गया था कि उन्होंने ‘पीके’ में हिन्दू देवी-देवताओं का मजाक क्यों बनाया तो उन्होंने जवाब दिया कि ऐसा तो होता है, नसीरुद्दीन शाह की फिल्म ‘जाने भी दो यारों’ में ऐसा हुआ था। बता दें कि उस फ़िल्म के अंतिम दृश्य में महाभारत और अनारकली वाले नाटक को मिक्स कर दिया जाता है। इसी तरह ‘पाताल लोक’ में भी जब इंस्पेक्टर चौधरी भागते रहते हैं तो एक मेले चल रहे भक्त प्रह्लाद वाले नाटक में पहुँच जाते हैं।
गुंडे उनका पीछा कर रहे होते हैं, जिनसे भागते-भागते वो स्टेज पर चढ़ जाते हैं। संयोग देखिए कि ठीक उसी समय खम्भे को फाड़ कर हिरण्यकश्यप राक्षस के समक्ष भगवान विष्णु के अवतार नरसिंह प्रकट होते हैं। नरसिंह के किरदार को भागते हुए इंस्पेक्टर चौधरी जोर का धक्का देकर निकल जाते हैं। नरसिंह सीधा हिरण्यकश्यप के ऊपर गिरते हैं। सोचिए, अगर ऐसा किसी और धर्म या मजहब के ईश्वर के साथ किया गया रहता तो क्या होता? क्या ये सीरीज रिलीज हो पाती?
sach ki talaash ke saare jawab milenge aaj #PaatalLok mein
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— amazon prime video IN (@PrimeVideoIN) May 14, 2020
निर्देशक फराह खान, अभिनेत्री रवीना टंडन और कॉमेडियन भारती सिंह ने एक शो के दौरान बाइबिल के किसी शब्द को लेकर हल्का सा मजाक कर दिया था तो इतना विरोध हुआ था कि उन तीनों को माफ़ी माँगनी पड़ी थी। इतने पर भी बात नहीं बनीं तो भारत में वेटिकन के आर्कबिशप के पास जाकर लिखित माफ़ीनामा सौंपना पड़ा था। यही सेलेब्रिटीज हिन्दुओं के मामले में ख़ुद के न झुकने का दिखावा करते हुए निडरता का स्वांग भरते हैं। मुसलमानों या ईसाईयों का एक समूह भी विरोध कर दे तो इनकी घिग्घी बँध जाती है।
हिंदूवादियों से लोग डरते हैं, वो मारकाट मचाते रहते हैं
अगर अपराधियों के महिमामंडन की कोई प्रतियोगिता होगी तो ‘पाताल लोक’ को सबसे ऊपर की श्रेणी में रखा जाएगा। ट्रेन में एक महिला अपनी युवा बेटी के साथ बैठी होती है। सामने कुछ मुसलमान बैठे होते हैं, जिनमें से एक युवक से युवती प्रभावित हो रही है और बार-बार उसकी तरफ देखती है। जैसे ही वो खाने की पोटली निकालते हैं, उसमें माँस देखते ही महिला को चक्कर आ जाता है और उलटी आने लगती है। ‘अच्छे’ मुसलमान उसे पानी ऑफर करते हैं, जिसे वो ‘घृणा’ के कारण ठुकरा देती है।
शायद इस दृश्य से हम हिन्दुओं के इस ‘घटिया’ व्यवहार का पता चलता है। अरे, हमलोग तो बिना किसी कारण के न मुसलामानों को हमेशा हेय दृष्टि से देखते हैं न। अब आते हैं एक अपराधी कबीर एम पर। जिन चार अपराधियों के इर्दगिर्द ये फ़िल्म घूमती है, वो उनमें से एक है। एक मुसलमान, एक दलित, एक हिन्दू और एक ट्रांसजेंडर- 4 अपराधियों का ऐसा कॉकटेल है कि इनके ‘मानवीय पक्षों’ को उभार कर इन्हें सिर्फ़ इसीलिए बेचारा साबित किया जाता है क्योंकि इन्हें आईएसआई-पाकिस्तान वगैरह के केस में ‘फँसाया’ जा रहा है।
तो कबीर एम मुसलमान है लेकिन किसी को बताता नहीं। उसके पास ऑपरेशन का एक मेडिककल सर्टिफिकेट मिलता है। उसके पिता हाथीराम से कहते हैं कि उनके बड़े बेटे को मुसलमान होने के कारण मार डाला गया था। उस दृश्य में भगवा झंडा लिए हिंदूवादी कत्लेआम मचाते दिखते हैं। कबीर के पिता कहते हैं कि इसी कारण उन्होंने अपने दूसरे बेटे को मुसलमान तक नहीं बनने दिया लेकिन आपलोगों ने उसे आतंकवादी बना दिया।
दरअसल, ये वही था जिसने माँस खाने के लिए निकाला था ट्रेन में। कुछ याद आया? जुनैद हत्याकांड के बारे में प्रचारित किया गया था कि उसे बीफ के कारण ट्रेन में मारा गया जबकि वो सीट का झगड़ा था। बस इसी दृश्य को एक तरह से प्रोपेगंडा के अनुसार रीक्रिएट किया गया है। उस देश की कहानी है, जहाँ मुस्लिमों के 20 करोड़ से भी अधिक होने का दम्भ उसी समाज के तथाकथित ठेकेदारों द्वारा भरा जाता है और 15 मिनट के लिए पुलिस हटाने की धमकी दी जाती है।
इस्लामोफोबिया से ग्रसित है ये देश
‘पाताल लोक’ एक और सन्देश ये देती है कि आप चाहें कितने भी ऊपर चले जाओ, देश आपको मुसलमान होने का एहसास पग-पग पर दिलाता रहेगा। इसके लिए हाथीराम के अंतर्गत काम करने वाले पुलिसकर्मी इमरान अंसारी का किरदार गढ़ा गया है। वो यूपीएससी क्लियर कर लेता है, और काफ़ी सौम्य है। यानी, हर हिसाब से एक अच्छा मुसलमान। जब सीबीआई की महिला अधिकारी को पता चलता है कि इमरान ने यूपीएससी निकाला है तो वो कहती हैं- “आजकल काफ़ी आ रहे हैं न इनके कम्युनिटी से?”
जब वो इंटरव्यू देकर निकलता है तो एक दूसरा प्रतियोगी उस पर तंज कसते हुए कहता है, “अरे तेरा तो हो ही जाएगा। उनलोगों को भी तो रिप्रजेंटेशन दिखानी होती है।” यहाँ तक कि इंटरव्यू लेने वाले भी उसे ‘पॉजिटिव’ होने की सलाह देते हैं, जब उससे मुस्लिम समुदाय के उत्थान को लेकर सवाल पूछा जाता है। उसके सामने हाथीराम कबीर को ‘कटुआ’ कहता है। हाँ, उसका पैंट खोल कर चेक करना होता है कि वो मुसलमान है। बेचारा इमरान! हिंदूवादी सिस्टम के बीच फँसा हुआ है।
पत्रकारों पर हो रहे हैं जुल्म, ख़तरे में मीडिया की स्वतंत्रता
इस सीरीज में आपको बार-बार एहसास दिलाया जाएगा कि समय बदल गया है। हम सभी को पता है कि लिबरल गैंग के लिए समय मई 2014 के बाद से ही बदला है। एक पत्रकार है, जो सत्ता से सवाल पूछता है। ये किरदार नीरज काबी ने काफ़ी अच्छे से निभाया है। चैनल की टीआरपी गिर रही है, मालिक दबाव बना रहा है कि उसे निकल जाना चाहिए। लेकिन हाँ, वो जैसे ही आईएसआई और पाकिस्तान की बातें शुरू करता है, उसे टीआरपी आने लगती है। जानते हुए कि ये तो सीबीआई की बनी बनाई बातें हैं।
चाहे वो ‘ट्रोल आर्मी’ की बात हो या फिर या फिर रोज मिल रही धमकियों की, इस अँग्रेजी पत्रकार के किरदार को यूँ गढ़ा गया है जैसे वो ये दिखा रहें हों कि मोदी युग में पत्रकार सुरक्षित नहीं हैं। साथ ही सीधा सन्देश है कि अगर किसी मामले को आईएसआई या पाकिस्तान से जुड़ा पाया जाए तो उस पर शक कीजिए, इन्वेस्टीगेशन पर शक कीजिए। क्यों? क्योंकि आजकल एकाध दर्जन ख़ून करने वाले ‘बेचारे अपराधियों’ को भी ऐसे मामलों में घसीट कर आतंकवादी बता दिया जा रहा है।
मनोरंजन इंडस्ट्री का सवर्णोफोबिया
‘मिर्जापुर’ में त्रिपाठी खानदान ने आतंक मचा रखा था। ‘आर्टिकल-15’ में तो जानबूझ कर उन्नाव गैंगरेप व हत्या केस के असली आरोपितों की पहचान छिपा कर उनकी जगह पर कथित उच्च-जाति के लोगों को फिट किया गया। ‘सेक्रेड गेम्स’ में त्रिवेदी सबसे बड़े विलेन्स में से एक होता है। गायतोंडे मुसलमानों को मारता है। ठीक इसी तरह, ‘पाताल लोक’ में भी जगह-जगह सवर्ण दलितों पर अत्याचार करते दिखते हैं। पंजाब में तो एक सवर्ण समूह एक दलित एक्टिविस्ट का सिर काट लेता है। दूसरे की माँ के साथ सबके सामने बलात्कार करता है।
‘वाजपेयी’ (अनूप जलोटा ने ये किरदार निभाया है) दलितों के सबसे बड़े नेता बन कर बैठे हैं, जो छिपा कर अपनी गाड़ी में गंगाजल लेकर चलते हैं। दलितों के साथ खाने का दिखावा कर वो उसी से नहा कर ‘पवित्र’ होते हैं। शुक्ला उनके लिए काम करता है। त्यागी सबसे बड़ा हत्यारा है। यानी, जहाँ भी कथित सवर्ण दिखें, वहाँ वो किसी न किसी दलित पर अत्याचार कर रहे होते हैं। एक तरह से इस इंडस्ट्री ने जांतिवाद की खाई को और बढ़ाने का ठेका ले रखा है। एक ‘साधु महाराज’ माँ की गालियाँ बकते हैं और माँस खाते-परोसते हैं, वो भी मंदिर के प्रांगण में।
#patalok
After torturing us with her shit n illogical roles in RNBDJ, JTHJ, SULTAN, PK, BOMBAY VELVET, SANJU, PARI, Phillauri, ADHM, Sui Dhaga, JHMS, ZERO, Overrated actress @AnushkaSharma is back with a anti-hindu series.
Wat a shame
शुक्ला कान पर जनेऊ रख कर होटल में पराई स्त्री के साथ सेक्स करता दिखता है। वैसे अगर ये लोग चाहते तो इमरान को यूपीएससी के इंटरव्यू की जगह किसी बम ब्लास्ट की प्लानिंग करने भी भेज सकते हैं, लेकिन ऐसा नहीं किया गया है। मुसलमान तो हर जगह पीड़ित ही है, दलित जहाँ है वहाँ कथित सवर्णों के अत्याचार ही झेल रहा है बेचारा। इमरान भी बेचारा है।
दक्षिणपंथ विरोधी प्रोपेगेंडा है ‘पाताल लोक’
कुछ और चीजों को देखें तो एक कुतिया का नाम सावित्री है। गुंडों का कनेक्शन चित्रकूट से है, जहाँ दत्तात्रेय, वाल्मीकि, मार्कण्डेय और अत्रि जैसे ऋषियों ने क़दम रखे थे। क्या जानबूझ कर रामायण से जुड़े स्थान को गुंडों से जोड़ कर दिखाया गया? इन सबके बारे में सोशल मीडिया पर भी चर्चा चल रही है। वैसे बॉलीवुड पहले से ही गुंडों को चन्दन-टीका करने वाला और महादेव या देवी का भक्त बताता रहा है। हाँ, ‘अच्छे मुसलमान’ ज़रूर पाँच वक़्त नमाज पढ़ते हैं।
इसका अर्थ क्या निकाला जाए? यही कि जो ज्यादा शास्त्र पढ़ लेता है या फिर मंदिरों वगैरह से जिसका ज़्यादा जुड़ाव है- वो गुंडा और कातिल बन जाता है? वामपंथी पत्रकार को पाकिस्तान जाने धमकियाँ मिलती है। इन चीजों से पता चलता है कि ये सीरीज पूरी तरह वामपंथी प्रोपेगेंडा है।