भागवत कथा के नाम पर ‘अली मौला’ क्यों जप रहे हैं कथावाचक?,अली मौला की मिलावट के खतरे
लंबे समय से हिंदू धर्म चौतरफा आक्रमणों के बीच में है। पहले मुग़लों और अंग्रेजों के हमले होते थे और तलवार की नोक पर धर्मांतरण कराया जाता था। अब भी उन्हें तरह-तरह के लालच देकर और बहला-फुसलाकर हिंदू धर्म से दूर करने का काम जारी है। ऐसा लगता है कि इसकी ज़िम्मेदारी अब कुछ सम्मानित कथावाचकों ने उठाई है। पिछले कुछ समय में ऐसे कथावाचकों के ढेरों वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं जो रामकथा के नाम पर इस्लाम या ईसाईयत की शिक्षा दे रहे हैं। चूंकि इन्होंने हिंदू धर्म के कथावाचक के तौर पर बरसों से अपनी पहचान बनाई है इसलिए लोग उनकी बातों को मानते भी हैं। मशहूर राम कथावाचक मोरारी बापू तो बाकायदा राम की जगह ‘अली मौला, अली मौला’ का जाप कराते देखे जा सकते हैं। इसी तरह कई जगह भागवत कथाओं में नमाज पढ़ने के फायदे और यहां तक कि भौंडा नाच-गाना भी शुरू हो चुका है। शक जताया जा रहा है कि कथावाचकों की शक्ल में हिंदुओं के बीच बड़ी संख्या में ऐसे तत्व घुसाए गए हैं जो लोगों के बीच एक खास तरह की राय बनाने में जुटे हैं। साथ ही लड़कियों और नाचगाने का भी इस्तेमाल किया जा रहा है ताकि युवाओं को खींचा जा सके।
रामकथाओं में इस्लाम के बारे में शिक्षा देने का यह चलन पहले मोरारी बापू ने किया। पिछले कुछ साल से वो यह काम कर रहे थे। शुरू में लोगों ने इसे बहुत गंभीरता से नहीं लिया, लेकिन अब यह उनका नियमित काम बन गया है। कई बार तो वो काफी देर तक ‘अली मौला अली मौला’ पर ही अटके रहते हैं। वो कहते हैं कि यह उनके अंदर से निकलता है और अल्लाह उनसे बुलवाते हैं। उनका एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ है, जिसमें वो ‘मुहम्मद की करुणा’ के बारे में बता रहे हैं। इसमें उन्होंने मोहम्मद साहब को दयालु और करुणावान बताते हुए एक ऐसी कहानी सुनाई जिसका ज़िक्र इस्लाम में भी नहीं मिलता है। क्या यह बात किसी से छिपी है कि देश और पूरी दुनिया में इस्लाम तलवार के दम पर फैलाया गया? जिस मज़हब के कारण हमारे देश में लाखों-करोड़ों लोगों की जान ली गई हो, उसकी करुणा की झूठी कहानी सुनाने के पीछे नीयत क्या है? मोरारी बापू मुस्लिम परिवारों को खाना खिलाने और उन्हें हज पर भेजने जैसे कामों में भी सक्रिय रहते हैं। इस बात को वो बड़े गर्व के साथ बताते भी हैं।
समस्या सिर्फ़ मोरारी बापू तक नहीं है। बीते कुछ साल में ढेरों रहस्यमय कथावाचक पैदा हुए हैं, जो भागवत और राम कथा के नाम पर इस्लाम और ईसाई धर्म की शिक्षा बाँट रहे हैं। उनके प्रवचनों में जाने वाले सौ फ़ीसदी लोग हिंदू ही होते हैं तो वहाँ पर मोहम्मद साहब या ईसा मसीह की महानता के बारे में बताने या नमाज़ पढ़ने की शिक्षा देने का मतलब समझ नहीं आता। हरियाणा के पलवल की एक देवी चित्रलेखा नाम की कथावाचिका हैं, जिनके कई वीडियो सोशल मीडिया पर चर्चा में हैं। चित्रलेखा के फ़ेसबुक पर 20 लाख से ज़्यादा फ़ॉलोअर हैं और उनके प्रवचनों में भारी भीड़ जुटती है। वो अपने प्रवचनों में जो ज्ञान देती हैं उसका असर पहली नज़र में पकड़ना आसान नहीं होगा। वो बताती हैं कि “सारे धर्म एक जैसे हैं। अगर हम मुसलमानों की नमाज़ का सम्मान कर लेंगे तो क्या हो जाएगा।” सोशल मीडिया पर कई लोगों ने यह सवाल उठाया है कि नमाज़ में जो अल्ला हू अकबर पढ़ा जाता है उसका मतलब ही यही होता है कि अल्लाह के सिवा कोई दूसरा ईश्वर नहीं है। क्या उस धर्म को बराबर कहा जा सकता है जो कहता है कि आपका ईश्वर ग़लत है और आप काफिर हैं? इसी तरह एक चिन्मयानंद बापू हैं जो “तुझको अल्ला रखे” जैसे फ़िल्मी गानों को रामकथा के मंच से सुनाते हैं।
दिल्ली और एनसीआर में रामकथाओं का आयोजन करने वाले एक जाने-माने व्यापारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि कथावाचकों का ये सेकुलर अवतार वास्तव में खाड़ी देशों के साथ जुड़ा हुआ है। पिछले कुछ साल में बहरीन, कुवैत और यूएई जैसे देशों में उनके प्रवचन के कार्यक्रमों की संख्या बढ़ी है। ये सभी इस्लामी देश हैं और वो हिंदू धार्मिक कार्यक्रमों को इतनी आसानी से अनुमति नहीं देते। ऐसे में अगर कथावाचकों को खाड़ी देशों में आसानी से प्रोग्राम की छूट मिलती है तो यह शक पैदा करता है। आप ध्यान देंगे तो पाएँगे कि ऐसे ज़्यादातर कथावाचकों की इस्लाम के बारे में बातें एक जैसी हैं। यानी उनका कंटेंट किसी एक ही स्त्रोत से आ रहा है। हालाँकि ऊपर जिन कथावाचकों के बारे में हमने बात की है उनके बारे में हम ऐसा कोई दावा नहीं करते।
रामकथा प्रवचनों में इस्लाम और ईसाईयत की मिलावट से संत समाज भी दुखी है। कई साधु-संतों ने खुलकर इसका विरोध किया है। श्रीपंचायती अखाड़ा के स्वामी चिदंबरानंद सरस्वती ने इसके ख़िलाफ़ जनजागरण का अभियान शुरू किया है। उन्होंने फ़ेसबुक पर लिखा है कि “कई लोग मुझे फ़ोन करके मुँह बंद रखने को कह रहे हैं, लेकिन मैं अपना काम जारी रखूँगा। कथा के पावन मंच से अगर कोई विधर्मियों का गुणगान करेगा तो इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती।” यहाँ यह जानना ज़रूरी है कि कथावाचक कोई हिंदू धर्म के ज्ञानी या सिद्धपुरुष नहीं होते। वो सिर्फ़ कहानियाँ सुनाने के लिए होते हैं ताकि लोगों में धर्म के लिए जागृति पैदा की जा सके। लेकिन कुछ कथावाचकों ने आडंबर की सारी हदें तोड़ दीं। आसाराम बापू, राधे माँ जैसे लोग इसी का उदाहरण हैं।
ऐसा नहीं है कि ये कथावाचक हिंदू धर्म के बारे में नहीं बताते, लेकिन समस्या यह है कि वो हिंदू समाज के दिमाग़ में यह बिठा रहे हैं कि ईश्वर और अल्लाह में कोई फ़र्क़ नहीं है। दूसरी तरफ़ मुसलमानों को बचपन से ही कट्टरता की सीख दी जाती है। ऐसे में हिंदू समाज इस्लाम का पीड़ित होने के बावजूद उसे अपने जैसा उदार समझने लगता है। जिसका नतीजा लव जिहाद और धर्मांतरण के रूप में सामने आता है।
प्रवचन के नाम पर चल रहे इस विचित्र गतिविधि की झलक आप नीचे के वीडियो पर क्लिक करके देख सकते हैं। ध्यान रहे इसे कम समय में समेटने के लिए हमने एडिट किया है।