नई दिल्ली। सरकार के दावों और जमीनी हकीकत में क्यों है इतना फर्क? क्या एक देश के तौर पर हम फेल हो चुके हैं. सरकार ने आज भारी भरकम नाम यानी “ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स” की बैठक की. वहां से आंकड़ा जारी किया गया है कि भारत में विदेशों से 12 हजार भारतीयों को वापस लाया गया है. अब आपको जमीन पर ले चलते हैं.
गाजीपुर बॉर्डर की भीड़ को देखकर लगता है. इनमें से कुछ लोग हफ्तों के इंतजार के बाद बारी आने पर श्रमिक ट्रेन से तो कई लोग हजारों के टिकट लेकर किसी तरह दिल्ली तो पहुंच गए लेकिन अब सड़कों पर पड़े हैं.
गांव यूपी में पड़ते हैं सो पैदल चलकर नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से 15-20 किलोमीटर दूर गाजीपुर बॉर्डर भी पहुंच गए लेकिन बॉर्डर पर दो दिन से पुलिस ने रोक रखा है कि दिल्ली से यूपी नहीं जाने देंगे.
विदेश से आने वालों की छोड़िये, जो बेचारा दिनभर सड़क पर बैठा है, उसको कोई घर पहुंचाने वाला नहीं है. और ऐसा वो एक नहीं, वहां सैकड़ों बैठे हैं.
ओडिशा के सुंदरबन में फंसे 5 मजदूरों की दास्तान
ओडिशा के सुंदरबन में फंसे 5 मजदूरों की दास्तान सुनिए. वहां प्लांट में मजदूरी कर रहे ये सभी यूपी के बरेली लौटने की आस में घर से निकले. टिकट लेने के लिए सभी ने अपनी जमा पूंजी से बचे 2-2 हजार खर्च कर डाले. लेकिन उड़ीसा के सुंदरबन से भुवनेश्वर पहुंचने के लिए फिर प्रति व्यक्ति 2 हजार का खर्चा आ गया. इस बार अपने गांव वालों से उधार लेकर अकाउंट में पैसे मंगवाए. यानी 5 लोग कुल 20 हजार खर्च करके दिल्ली तो आ गए लेकिन एक बार फिर सड़क पर हैं.
सरकारी आंकड़े क्या कहते हैं
कोरोनावायरस के मामलों को लेकर भी सरकार ने एक एक्सीलेंट ग्राफ सामने रखा है. सरकार के मुताबिक दुनिया भर में COVID-19 पॉजिटिव मामलों की कुल संख्या 2,94,046 मौतों के साथ 42,48,389 है और मृत्यु दर 6.92% आंकी गई है, जबकि भारत में, COVID-19 पॉजिटिव मामलों की कुल संख्या 2,649 मौतों और 81,970 के साथ है. भारत में खतरनाक मामलों की दर 3.23% आंकी गई.
सरकार के मुताबिक, अब तक कुल 27,920 लोग ठीक हो चुके हैं. पिछले 24 घंटों में 1,685 मरीज ठीक हो गए. सक्सेस दर 34.06% है. लॉकडाउन का डबलिंग रेट देखा जाए, जो कि प्री-लॉकडाउन सप्ताह में 3.4 दिनों का था तो अब 12.9 दिनों का हो चुका है.
सरकार के मुताबिक, 30 नगरपालिका इलाके ऐसे हैं जो भारत के 79% मामले का भार उठा रहे हैं.
919 डेडिकेटिड COVID अस्पताल, 2,036 COVID हेल्थ केयर सेंटर और 5,739 COVID केयर सेंटर यानी कुल संख्या 8,694 है. गंभीर मामलों के लिए कुल 2,77,429 बेड, 29,701 ICU बेड और 5,15,250 आइसोलेशन बेड हैं. देश में COVID-19 का मुकाबला करने के लिए 18,855 वेंटिलेटर उपलब्ध हैं.
कुछ और आंकड़े
केंद्र ने राज्यों / संघ राज्य क्षेत्रों / केंद्रीय संस्थानों को 84.22 लाख एन 95 मास्क और 47.98 लाख व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई) भी प्रदान किए हैं. GoM को यह भी बताया गया कि घरेलू निर्माता प्रति दिन लगभग 3 लाख PPE की उत्पादन क्षमता और लगभग 3 लाख N-95 मास्क प्रति दिन तक पहुंच चुके हैं जो निकट भविष्य में देश की आवश्यकता को पूरा करने के लिए पर्याप्त है. इसके अलावा, घरेलू निर्माताओं द्वारा वेंटिलेटर का निर्माण भी शुरू हो गया है और ऑर्डर दिए गए हैं.
COBAS 6800, 24 घंटों में 1200 नमूनों के साथ परीक्षण के एक उच्च थ्रूपुट के साथ गुणवत्ता, उच्च मात्रा परीक्षण प्रदान करेगा. परीक्षण किट की वर्तमान उपलब्धता पर्याप्त है और इसे ICMR के 15 डिपो के माध्यम से राज्यों / केंद्रशासित प्रदेशों में वितरित किया जा रहा है.
मरीज खा रहे अस्पतालों के धक्के
ये सब सरकार के दावे हैं. अब आप मरीजों का दुखड़ा मरीजों से ही सुनें. किसी की मां पॉजिटिव है लेकिन वह एडमिशन के लिए राजधानी के चार अस्पतालों से धक्के खाता—खाता दिल्ली के लोकनायक अस्पताल पहुंचा है. घर में किसी और का टेस्ट तक करने की जहमत नहीं उठाई गई है.
हमारे ही एक जानने वाले को सेकेंड टेस्ट में भी पॉजिटिव आने के बावजूद दिल्ली सरकार के एक अस्पताल से ये कहकर छुट्टी दे दी गई कि अब आपको लक्षण नहीं है. उसने दलील दी कि उसके एक कमरे के घर में उसकी पत्नी और बेटा भी रहते हैं ऐसे में वो घर पर आइसोलेट यानी अकेले रह ही नहीं सकता. लेकिन सरकार को उससे क्या, अब तो यही नई गाइडलाइंस हैं. वो फिलहाल किराए पर एक और कमरा लेकर रह रहा है.
वैसे सरकारी आंकड़े अभी खत्म नहीं हुुए हैं. देश में 509 सरकारी और निजी प्रयोगशालाओं के माध्यम से परीक्षण क्षमता प्रति दिन 1,00,000 तक बढ़ गई है.
लेकिन इसी तरह दर्द और मजबूरी की दास्तान की जमीनी हकीकत की कहानियां भी हमारे पास कम नहीं हैं. दिल्ली से सटे नोएडा में आप अपना कोरोना का टेस्ट पैसे देकर भी नहीं करवा सकते. क्योंकि कोई प्राइवेट लैब टेस्ट के लिए मंजूर ही नहीं की गई. प्राइवेट जेपी अस्पताल की लैब आज ही चालू की गई है लेकिन बिना लक्षणों वालों के लिए.
अब अगर आप अपना टेस्ट करवाना चाहते हैं तो प्रशासन यानी सीएमओ और डीएम के दफ्तर से तय किया जाएगा कि आपका टेस्ट होगा या नहीं.
ग्रेटर नोएडा इंस्टीट्यूट आॅफ मेडिकल साइंसेज, कासना नेशनल बायोलॉजिकल लैब, अंबेडकर गर्वमेंट हॉस्पिटल तीन सरकारी अस्पताल टेस्ट कर रहे हैं लेकिन रिजल्ट आने में 2 से 10 दिन तक लग सकते हैं. ये इस बात से तय होगा कि आप रसूख वाले हैं या आम आदमी.
जहां तहां सड़कों पर पलायन करते, राजधानी दिल्ली से बिहार के पटना, महाराष्ट्र के मुंबई से यूपी के बनारस तक चप्पलें घिसकर पैदल चलते जा रहे ये लोग पागल नहीं हैं. ये बता रहे हैं कि एक देश के तौर पर हम किस कदर फेल हो गए हैं.
अगर आप अब भी सरकारी आंकड़ों के भरोसे रहना चाहते हैं तो जरूर रहिए. इस दौर में आशावादी होना ही सबसे बड़ा सहारा है.