दयानंद पांडेय
यह छुपी बात तो है नहीं कि मैं निजी तौर पर अंबेडकर के निंदकों में से हूं। सर्वदा से रहा हूं। ख़ास कर उन की जातीय नफरत के मद्दे नज़र। जैसा कि अंबेडकर कहते रहे हैं कि समाज में समता मार्क्स की हिंसा के बिना भी लाई जा सकती है , बुद्ध की तरह। इसी तरह अंबेडकर खुद भी जातीय नफरत के मुर्दे उखाड़े बिना भी भेदभाव खत्म करने की बात कर सकते थे। लेकिन उन्हों ने नफरत की नागफनी बोई। अपने कुछ ख़ास हितों के लिए। अपनी दुकान सजाने के लिए। इसी लिए मैं अंबेडकर का निंदक हूं। परम निंदक। खुल्ल्मखुल्ला।
नेहरू नहीं चाहते थे कि राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रपति बनें। नेहरू सी राजगोपालाचारी को राष्ट्रपति बनते देखना चाहते थे। लेकिन गांधी का दबाव यहां भी काम आया। संविधान सभा के अध्यक्ष थे राजेंद्र प्रसाद। तीन सौ से अधिक लोग थे इस संविधान सभा में। एक से एक प्रकांड विद्वान , एक से एक अनुभवी। राजेंद्र प्रसाद जैसे योग्यतम व्यक्ति अध्यक्ष। तो अकेले अंबेडकर कैसे संविधान निर्माता हो गए ? बाकी लोग क्या घास छील रहे थे। अगर अंबेडकर संविधान निर्माता थे ही तो तमाम हिंदू देवी , देवताओं की फ़ोटो कैसे आने दी उन्हों ने संविधान के पन्नों पर । मैं फिर जोर दे कर बड़ी जोर से कहना चाहता हूं कि अंबेडकर संविधान निर्माता नहीं हैं। अंबेडकर को संविधान निर्माता कहना , संविधान के साथ छल और कपट है। पाखंड है। चार सौ बीसी है। इस मामले में भी मैं अंबेडकर का परम निंदक हूं। लेकिन दलित वोट की गोलबंदी के लिए कांग्रेस ने यह छल किया और प्रपंच रचा कि अंबेडकर संविधान निर्माता। नरेंद्र मोदी और भाजपा ने भी अंबेडकर के संविधान निर्माता का प्रपंच और पाखंड अपने राजनीतिक हितों और व्यापक हिंदू गोलबंदी खातिर जारी रखा है। जब कि वामपंथियों , अंबेडकरवादियों और मुस्लिम समाज ने मिल कर जय भीम , जय मीम की नफरत और जहर भरी मुहिम अपने हितों खातिर चला रखी है। तो सब के अपने-अपने हित और अपने-अपने पाखंड हैं ,अपने-अपने अंबेडकर हैं। लेकिन मुझे इस पाखंड और इन पाखंडियों से क्या लेना-देना भला।