नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (मई 05 2020) को उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक (DGP) विक्रम सिंह की उस जनहित याचिका (PIL) को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने कोरोना वायरस के कारण देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान अलग-अलग अपराधों और नियमों के उल्लंघन में आईपीसी की धारा 188 के तहत दर्ज 75000 से अधिक एफआईआर (FIR) को रद्द करने की माँग की थी।
न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने सिंह की जनहित याचिका को खारिज करते हुए कहा – “आप चाहते हैं कि कोई एफआईआर न हो और यह (धारा 188 आईपीसी) लागू न हो, तो फिर लॉकडाउन कैसे लागू किया जा सकता है? मुझे आश्चर्य है कि इस तरह की याचिकाएँ आखिर इस अदालत में क्यों आ रही हैं?”
जस्टिस अशोक भूषण, संजय किशन कौल और बी आर गवई की पीठ ने सिंह के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायण से पूछा कि धारा 188 (आईपीसी के एक लोक सेवक द्वारा घोषित आदेश की अवज्ञा) को आखिर क्यों लागू नहीं किया जाना चाहिए?
सुप्रीम कोर्ट के सवाल पर DGP विक्रम सिंह ने स्पष्ट करने की कोशिश की कि वह किसी भी तरह से लॉकडाउन के उल्लंघन को बढ़ावा नहीं दे रहे हैं। उन्होंने सिर्फ लॉकडाउन के उल्लंघन में दायर 75000 से अधिक एफआईआर (FIR) को रद्द करने की माँग PIL के माध्यम से की थी।
उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी ने कहा कि एक ओर सुप्रीम कोर्ट ने जेलों में कैदियों को भीड़भाड़ को कम करने के लिए रिहा करने का निर्देश दिया और दूसरी ओर, पुलिस ने गैरकानूनी तरीके से छोटे अपराधों में एफआईआर के माध्यम से आपराधिक न्याय प्रणाली को बोझ बनाना जारी रखा हुआ है, जिस पर कि कम से कम छह महीने की जेल की सजा का प्रावधान है।
ज्ञात हो कि देशभर में कोरोना के कारण जारी लॉकडाउन के उलंघन के मामलों में कई लोगों पर एफआईआर दायर की गई हैं। इनमें वो लोग भी शामिल हैं, जिन्होंने पुलिसकर्मियों के साथ अभद्रता करने के साथ-साथ पथराव और जाँच में व्यवधान उत्पन्न करने की कोशिशें की हैं।
क्या है धारा-188
आईपीसी की धारा 188 में उन लोगों पर एफआईआर दर्ज की जाती है, जिनके द्वारा नियमों का पालन न करने से मानव जीवन, स्वास्थ्य और सुरक्षा को खतरा पैदा होता है। इसके तहत दोषी को छह महीने तक जेल व एक हजार जुर्माने का प्रावधान है।