कोरोना: प्लाज्मा थेरेपी को ICMR ने बताया खतरनाक, लिबरल गिरोह साबित कर रहा था तबलीगी जमात का मानवता पर उपकार

नई दिल्ली।  प्लाज़्मा थेरेपी से कोरोना वायरस (COVID-19) के उपचार की बात पर स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने कहा है कि यह थेरेपी अभी तक साबित नहीं हुई है और अभी सिर्फ प्रायोगिक चरण में ही है। इसके साथ ही उन्होंने कहा है कि कोरोना वायरस के उपचार में यदि प्लाज्मा थेरेपी का प्रयोग दिशानिर्देशों के अनुसार नहीं हुआ तो यह जान के लिए भी नुकसानदायक हो सकता है।

जानलेवा हो सकता है प्लाज्मा थेरेपी का उपयोग – ICMR

स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय के संयुक्‍त सचिव लव अग्रवाल ने कहा – “आइसीएमआर (ICMR) द्वारा प्लाज्मा थेरेपी का प्रयोग किया जा रहा है। हालाँकि, इस बात का कोई सबूत नहीं है कि इसे उपचार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके प्रभाव का अध्ययन करने के लिए आइसीएमआर (ICMR) द्वारा राष्ट्रीय स्तर का अध्ययन शुरू किया गया है। जब तक आइसीएमआर (ICMR) अपने अध्ययन का समापन नहीं करता है और एक मजबूत वैज्ञानिक प्रमाण उपलब्ध नहीं होता है, तब तक प्लाज्मा थेरेपी का उपयोग केवल अनुसंधान या परीक्षण के उद्देश्य के लिए किया जाना चाहिए। यदि उचित दिशा-निर्देश के तहत प्लाज्मा थेरेपी का सही तरीके से उपयोग नहीं किया जाता है तो यह जीवन के लिए खतरा भी पैदा कर सकता है।”

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Until ICMR concludes its study & a robust scientific proof is available, Plasma therapy should be used only for research or trial purpose. If plasma therapy is not used in proper manner under proper guideline then it can also cause life threatening complications: Lav Aggarwal,MHA https://twitter.com/ANI/status/1255087424658501633 

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Plasma therapy is being experimented, however no evidence that this can be used as a treatment. National level study launched by ICMR to study efficacy: Lav Aggarwal, Joint Secretary, Ministry of Health

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इसके साथ ही आइसीएमआर ने यह भी सुझाव दिया है कि प्लाज्मा थेरेपी के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण का महत्त्व आवश्यक है। दरअसल, सार्स-सीओवी (SARS-CoV), एच1एन1(H1N1) और मर्स सीओवी (MERS-CoV) जैसे खतरनाक वायरस के इलाज में प्लाज्मा थेरेपी का इस्तेमाल किया गया था।

भारत में भी कोरोना वायरस का पहला प्लाज्मा परीक्षण (Plasma for Corona Treatment) देश में सफल रहा है। लेकिन इसके बाद स्वास्थ्य विभाग द्वारा यह जानकारी भी दी गई कि यह थेरेपी अभी सिर्फ और सिर्फ ट्रायल और टेस्टिंग के लिए ही अप्रूव हुई है और इसका इलाज के लिए प्रयोग खतरनाक हो सकता है।

प्लाज़्मा थेरेपी पर लिबरल मीडिया गिरोह की रूचि

प्लाज़्मा थेरेपी के चर्चा में आते ही अचानक से ‘सेक्युलर’ राजनेता और ‘वाम-उदारवादी’ लिबरल गिरोह सक्रीय हो उठे। प्लाज्मा डोनेट करते हुए एक तबलीगी की तस्वीर को आधार बनाकर बहस का मुद्दा यह बना दिया गया कि मुस्लिम भी कोरोना वायरस के इलाज के लिए आगे आ रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि जो लोग आज तक यह स्वीकार करने में कतराते रहे कि देश में कोरोना वायरस के संक्रमण का सबसे बड़ा स्रोत तबलीगी जमात रहा है, वह भी इस बात पर गद्य लिखते नजर आने लगे।

सोशल मीडिया पर शेयर की जा रही हैं तस्वीरें

मीडिया के वाम-उदारवादी वर्ग ने तबलीगियों की एक तस्वीर को इतना भुनाने का प्रयास किया कि यदि प्लाज्मा पर ICMR का स्पष्टीकरण न आता तो शायद अब तक प्लाज़्मा को सेक्युलर साबित कर दिया गया होता। इस वर्ग ने प्रलाप कर के ‘तबलीगी जमात’ के बदले ‘सिंगल सोर्स’ लिखने पर मजबूर किया।

हिन्दू-मुस्लिम मुद्दों को भुनाकर आज दिल्ली की सत्ता पर बैठे अरविन्द केजरीवाल ने भी फ़ौरन प्लाज्मा को गंगा-जमुनी तहजीब की ही अगली योजना साबित करने का प्रयास करते हुए बयान दिया कि हिंदू का प्लाज्मा मुस्लिम और मुस्लिम का प्लाज्मा हिंदू की जान बचा सकता है।

उल्लेखनीय है कि तबलीगी जमात का तांडव महीने भर से ही पहले से जारी है, बावजूद इसके किसी भी नेता और सेक्युलर मीडिया ने यह हिम्मत नहीं जुटाई कि वह मुस्लिमों की हरकतों पर खुलकर कह सके। इस देश के बुद्धिजीवी वर्ग के हालात यह हैं कि उन्हें यह कहने में रत्ती भर भी संकोच नहीं हुआ कि उन्हें यह साबित करने का प्रयास करना पड़ रहा है कि मुस्लिम भी चाहते हैं कि कोरोना ठीक हो जाए।

वास्तव में यह तो स्पष्ट सन्देश है कि मुस्लिम यदि कुछ सकारात्मक पहल करते हैं तो यह उनकी तरफ से समाज पर उपकार माना जाने लगा है। वरना मुस्लिमों के अलावा शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जिसने निरंतर शासन और व्यवस्था के साथ तालमेल बनाने के बजाए उन्हें बदतर बनाने की कोशिश की हो।

उदाहरण के तौर पर यदि तबलीगी जमात को ही लिया जाए तो 2002 में कारसेवकों को साबरमती एक्सप्रेस में जिन्दा जलाने से लेकर अलकायदा के हर दूसरे आतंकी अभियान में मौजूद यह संगठन इस बार भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के बड़े हिस्से में कोरोना का प्रमुख स्रोत बनता गया। प्लाज़्मा थेरेपी में मुस्लिमों की एक तस्वीर से मीडिया का जो वर्ग बवाल काट रहा है उसमें आज तक इतना भी दम विकसित नहीं हो सका है कि वह इन सभी मुद्दों पर चर्चा भी कर सके।

अच्छे मुस्लिम-बुरे मुस्लिम

देश ही नहीं बल्कि दुनियाभर के लोगों ने अच्छे और बुरे मुस्लिमों के मुद्दे पर जमकर साहित्य लिखा है। एक पीढ़ी ने जहाँ अब्दुल कलाम के नाम पर मुस्लिमों के गुनाहों को ढकने की कोशिश कर दी वहीं दूसरी पीढ़ी भी एक ऐसे मुस्लिम को तलाश रही है जिसके आधार पर वो अगली दो-तीन पीढ़ियाँ काट दें। इस बीच सभी जानते हैं कि इन गिने-चुने नामों को छोड़कर बाकी के 99.99% मुस्लिम क्या कर रहे होंगे।

यह ऐसे ही है जैसे एक ताजमहल की भव्यता को मिसाल बनाकर इसी लिबरल गिरोह की जमात ने नालंदा की बर्बादी को गायब कर दिया। इसी तरह मुस्लिमों की एक बिरियानी को इस तरह से पेश किया जाता रहा है जैसे भारतीय इसके बिना कुपोषण से मर रहे थे। कुछ समय पहले ही सबा नक़वी मुस्लिमों द्वारा समाज पर किए गए एहसानों को गिनाती हुई नजर आ रहीं थीं। हालाँकि, यह उन्हें महंगा ही पड़ा।

प्लाज्मा थेरेपी का प्रयोग होना एक बात है। यह भी हो सकता है कि यह प्रयोग आगे सफल भी हो या असफल भी, लेकिन तमाम लिबरल गिरोह की कवरेज की भाषा ऐसी है मानो कोरोना वायरस का एकमात्र समाधान यही है और वो भी इस समय सिर्फ तबलीगियों के पास है, जैसा कि दिखाया भी जा रहा है।

फिलहाल ICMR ने प्लाज़्मा थेरेपी की सार्वजानिक इस्तेमाल पर प्रतिबंध की बात कही है। तब तक कम से कम लिबरल गिरोह को इसे मुस्लिमों द्वारा मानवता पर किया गया उपकार साबित करने की जल्दबाजी से बचना चाहिए।

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