तृप्ति शुक्ला
पिछली एक पोस्ट में मैंने कहा था कि एक कम्युनिस्ट आदमी क्रिया पर नहीं, बल्कि प्रतिक्रिया पर प्रतिक्रिया देता है। मगर कभी सोचा है कि वो ऐसा करता क्यों है? क्योंकि वो बहुत मजबूर होता है।
एक कम्युनिस्ट आदमी किसी क्रिया पर प्रतिक्रिया इसलिए नहीं देता क्योंकि वो और उसकी विचारधारा प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से उस क्रिया में कैटलिस्ट का काम करती है।
जब तीन महीने देश के अलग-अलग हिस्सों में धरनाधारियों का उत्पात ब्रेक डांस कर रहा था, तब ये उन धरनों में जा-जाकर कैटलिस्ट की भांति आगे की क्रिया का कोर्स तय कर रहे थे। अब कौन सा नया जाया लीडर देश को काटने की बात करेगा, कौन डंब फिल्म सिलेब्रिटी लोगों का हुजूम बुलाएगा, वगैरह-वगैरह।
फिर जब धरनाधारियों के विरोध में सीएए समर्थक सड़क पर उतर आए तो ये रोने लगे। बाद में इन समर्थकों के विरोधस्वरूप देश ने जो नुकसान झेला, उसमें भी ये खुद को विक्टिम दिखाने लगे। लोगों की छत पर रखे पेट्रोल बम को ये दीवाली के मुर्गाछाप पटाखे साबित करने लगे।
अब जब इन जाहिल हरकतों का खामियाजा कुछ निर्दोष लोगों को भुगतना पड़ रहा है। अब जब कुछ लोग धर्म पूछकर सब्जी खरीदने लगे हैं। अब जब देश में अविश्वास की दरारें दूसरी तरफ़ भी दिखने लगी हैं, तो ये फिर ज़रूरी ऊर्जा जुटाकर छाती पीटना शुरू कर चुके हैं।
तो दोस्तो, अपने कैटलिस्ट मित्रो की मजबूरी समझिए और उनसे प्रेम से पेश आइए।